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न्यूज क्लिपिंग्स् | धुएं में खांसती आबादी पर मंडराते खतरे - अनिल प्रकाश जोशी

धुएं में खांसती आबादी पर मंडराते खतरे - अनिल प्रकाश जोशी

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published Published on Nov 17, 2014   modified Modified on Nov 17, 2014
सर्दी ने अभी पूरी तरह दस्तक नहीं दी, लेकिन हमारे शहरों, कस्बों और गांवों ने सुबह-शाम के धुंध और धुंधलके में खांसना-खखारना शुरू कर दिया है। इसका कारण है स्मॉग, जिस पर इस समय पूरी दुनिया में चिंता जताई जा रही है। यह धुएं और ओस से बनता है। जाड़ों में हवा में छोटे-छोटे जलकण धुंध कहलाते हैं, उनके साथ धुएं का जोड़ स्मॉग बन जाता है, जो धरती, यानी फसल और सूर्य के बीच में एक बड़ी बाधा के रूप में भी आ जाता है। फसलों को पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा नहीं मिल पाती और इसका सीधा प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।

स्मॉग के पिछले 30 वर्षों के विश्लेषण के आधार पर वैज्ञानिकों ने एक सांख्यिकी मॉडल तैयार किया। इस मॉडल के आधार पर सघन स्मॉग व्याप्त राज्यों में गेहूं की फसल के उत्पादन में 50 प्रतिशत की कमी देखी गई है। अन्य फसलों पर भी ऐसा ही असर हुआ है। इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता कैलिफोर्निया के जेनिफर बर्की का कहना है कि दुनिया भर की सरकारों को पर्यावरण के साथ खेती पर पड़ते इसके प्रतिकूल असर का भी अध्ययन करना चाहिए। अपना देश पहले से ही कई तरह के खाद्यान्न संकटों से जूझ रहा है और इस बढ़ते स्मॉग से यह संकट और भी गहरा हो रहा है। हमारे यहां स्थिति ज्यादा भयावह इसलिए है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के नियंत्रण का कोई रास्ता नहीं है। और न ही सरकार कहीं से इसे लेकर चिंतित दिखाई देती है। कृषि-उपज के अलावा भी यह स्मॉग कई तरह से घातक है।

इसका बेहद गंभीर असर हमारे श्वसन-तंत्र पर पड़ता है। बड़े शहरों में सांस से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं और इसका सीधा कारण यह स्मॉग ही है। फेफड़ों की कई तरह की बीमारियां इस स्मॉग से जुड़ी हैं। इसके चलते लोगों को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाती है, जो कई तरह की समस्याएं खड़ी करती है। स्मॉग के छा जाने के कारण सूर्य का प्रकाश पूरी तरह धरती पर नहीं आ पाता, जिसका असर हमारी त्वचा पर पड़ता है। हमारा शरीर सूरज की धूप से ही अपने लिए ‘विटामिन डी' बनाता है। भारत में परंपरागत रूप से बहुत छोटे बच्चों के शरीर को धूप दिखाने के लिए सर्दियों का इंतजार किया जाता है। लेकिन अब सर्दियों की यह धूप बुङी-बुङी-सी रहती है। न उसमें ज्यादा ताप होता है और न ही ज्यादा प्रकाश।

स्मॉग की समस्या कुछ हद तक खेती के उस तरीके से भी जुड़ी हुई है, जिसे इन दिनों देश के कई हिस्सों में अपनाया जा रहा है। किसान अक्सर फसल की कटाई के बाद उसके बाकी बचे हिस्से को खेत में ही जला देते हैं। यह काम सबसे ज्यादा अक्तूबर और अप्रैल महीने में किया जाता है। चिंता की बात यह है कि अदालत के आदेश के बावजूद सरकारें इसे रोकने में नाकाम रही हैं। बढ़ती धुंध को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इसे प्राथमिकता न बनाने का अर्थ बाद में पछताना भी पड़ सकता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-Cold-knock-cities-towns-villages-57-62-460573.html


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