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न्यूज क्लिपिंग्स् | नन्हे हाथों में हथियार- रतनदीप चौधरी की रिपोर्ट.

नन्हे हाथों में हथियार- रतनदीप चौधरी की रिपोर्ट.

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published Published on Jul 23, 2012   modified Modified on Jul 23, 2012

घटते स्थानीय जनसमर्थन के चलते मणिपुर के भूमिगत विद्रोही संगठन अब बच्चों का अपहरण करके उन्हें जंग में झोंक रहे हैं.रतनदीप चौधरी की रिपोर्ट. 

इंफाल के सिंगजामी में रहने वाले वाई राकेश मीति इन दिनों बेहद डरे हुए हैं. वे कहते हैं, ‘मणिपुर के लोग टकराव के बीच रहने के आदी हो चुके हैं. लेकिन पिछले तीन महीने की कहानी अलग है. आज मेरे जैसे तमाम मां-बाप भय के साये में जी रहे हैं.'उनका डर अकारण नहीं. दरअसल सिर्फ इंफाल घाटी में ही पिछले तीन महीनों में नाबालिग बच्चों के अपहरण के दस मामले सामने आए हैं. इन बच्चों के माता-पिता का आरोप है कि विद्रोही संगठन जबरन या फिर बहला-फुसला कर उन्हें अगवा कर रहे हैं ताकि उन्हें हथियार थमा कर बाल सैनिक बना सकें. 

लोगों की भारी नाराजगी और विरोध के बाद विद्रोही गुटों ने हाल ही में तीन बच्चों को आजाद तो कर दिया है लेकिन मसला खत्म नहीं हुआ है. बाल अधिकार कार्यकर्ता मोंटू ऐन्थेम के मुताबिक इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. वे कहते हैं, 'राज्य सरकार को इसे कानून व्यवस्था का मामला न मानकर इसके प्रति एक सामाजिक दृष्टिकोण अपनाना होगा.' 

राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग की अध्यक्ष शान्ता सिन्हा ने अपने हालिया मणिपुर दौरे के बाद इबोबी सिंह सरकार की आलोचना की थी. उनका कहना था कि राज्य सरकार विद्रोही गुटों द्वारा की जा रही बच्चों की तस्करी पर लगाम नहीं लगा पा रही. दूसरी जगहों की बात करें तो गारो नेशनल लिबरेशन आर्मी ऑफ मेघालय और नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा सैकड़ों की संख्या में  बच्चों की भर्ती करते हैं. आयोग के सदस्य योगेश दुबे बताते हैं, ‘मणिपुर और त्रिपुरा में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए बाल आयोग ने इस मसले का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के सामने यह मुद्दा उठाने का फैसला लिया है.' 

इस बीच मणिपुर सरकार ने राज्य के हर जिले के एसपी को विशेष टीम बनाकर बाल सैनिकों के मसले पर नजर बनाए रखने का आदेश दिया है. गौरतलब है कि इस राज्य में पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने वाले छात्रों का औसत बहुत ज्यादा है है. प्राइमरी स्तर पर 64 फीसदी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं जबकि जूनियर स्कूल के स्तर पर यह आंकड़ा 70 फीसदी है. राज्य के गृहमंत्री जी गाइखांगम कहते हैं, ‘विद्रोही स्थानीय लोगों का समर्थन खोते जा रहे हैं. मणिपुर में उग्रवाद ढलान पर है. बच्चों को वे आसान शिकार समझते हैं.' 

सेंटर फॉर ऑर्गेनाइजेशन रिसर्च ऐंड एजुकेशन (मणिपुर) के डॉ. लाइफंगबाम देबब्रत रॉय के मुताबिक मणिपुर के बच्चे कच्ची उम्र में ही बंदूक संस्कृति से जुड़ जाते हैं. वे कहते हैं, ‘बच्चे सोचते हैं कि बंदूक से ताकत मिलती है. वे देखते हैं कि किस तरह से सुरक्षा बल अमानवीय सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम का इस्तेमाल करते हैं. साथ ही वहां गरीबी भी है जिसकी वजह से विद्रोही गुटों के लिए बच्चों को फुसलाना आसान हो जाता है'. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता और पत्रकार बाचस्पतीमयूम सान्जू  कहते हैं, 'मैं तमाम विद्रोही गुटों में मौजूद बाल सैनिकों पर डॉक्युमेंट्री बना चुका हूं लेकिन यह काम खतरनाक है.'   

नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक प्रतिबंधित संगठन के कमांडर कहते हैं, 'नाबालिगों को प्रशिक्षित करना बेहद आसान होता है. शुरुआत में वे रोते-चिल्लाते हैं लेकिन बाद में लाइन पर आ जाते हैं. प्रशिक्षण पूरा होने के बाद वे पार्टी की लंबे समय तक सेवा भी कर सकते हैं. हम लड़कियों को भी भर्ती करते हैं लेकिन उन्हें हथियारों का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता. कुछ बिचौलिए हैं जो हमारे लिए यह काम करते हैं. बदले में उन्हें कमीशन मिलता है.'  मणिपुर में 35 विद्रोही गुट सक्रिय हैं. अलग-अलग आंकड़ों के मुताबिक 2009 से 2012 के बीच मणिपुर के 338 नाबालिग बच्चों को दूसरे राज्यों से छुड़ाया गया है. लेकिन राज्य के अंदर से एक भी बच्चा बरामद नहीं हो सका है. तहलका ने उन चार परिवारों से बात करने की कोशिश की जिनके बच्चे 2008 में अगवा कर लिए गए थे. सबने बात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके बच्चे अब ‘बागी’ बन गए हैं.

सपन सुरंजय, 14 वर्ष

साइरेमखुल, मणिपुर

छठी कक्षा की पढ़ाई बीच में ही छोड़ चुके सपन का परिवार सात लोगों का है. महीने की कमाई है सिर्फ 2,500 रु. एक स्थानीय व्यक्ति ने उसे प्रतिबंधित संगठन में शामिल होने का लालच दिया था. जनता के भारी विरोध के बाद सपन को उसके दो साथियों संजय और शांतिकुमार के साथ छोड़ दिया गया.

सोराइसम संजय, 14 वर्ष

साइरेमखुल, मणिपुर

संजय का बड़ा भाई पहले से ही एक प्रतिबंधित विद्रोही संगठन का हिस्सा है. इसके बावजूद वह एक भूमिगत संगठन का सदस्य बनने के लिए तैयार हो गया. संजय कहता है, ‘गरीबी में दिन काटने से अच्छा है विद्रोही बन जाना’.

यामबेम निंगथेम, 16 वर्ष

साइरेमखुल, मणिपुर

निंगथेम अपनी शादी के एक महीने बाद ही गायब हो गया. हालांकि उसके परिवारवाले इससे इनकार करते रहे. स्थानीय लोगों का कहना है कि उसने अपनी इच््छा से हथियार उठाए हैं. उसकी मां कहती है, ‘मेरा बेटा ऐसा नहीं है. वह काम के चक्कर में दूसरे गांवों में घूमता रहता है.’ 

आइबाम जॉनसन, 12 वर्ष

ताकयेल कोलम लिकाई, मणिपुर

जॉनसन को आखिरी बार एक आत्मसमर्पण कर चुके विद्रोही कन्हाई के साथ देखा गया था. इसके पिता का 2009 में देहांत हो चुका है. मां भी घर छोड़कर जा चुकी है. दादी पूरनमासी ने उसे पाला-पोसा था जो आज भी उसकी वापसी का इंतजार कर रही हैं.

चानम शांतिकुमार, 14 वर्ष

साइरेमखुल, मणिपुर

चानम और उसके दोस्तों को एक स्थानीय व्यक्ति ने भर्ती करने का लालच दिया था. पैसा, मोबाइल और कुछ कोरे वादों के लालच में चान अपने साथियों के साथ बिना सोचे-समझे विद्रोहियों के कैंप में चला गया. लोगों के विरोध के बाद उसे एक हफ्ते बाद रिहा कर दिया गया. 


http://www.tehelkahindi.com/indinoo/national/1311.html


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