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न्यूज क्लिपिंग्स् | नाबालिग की उम्र तय करने पर सुप्रीम कोर्ट करेगा गौर

नाबालिग की उम्र तय करने पर सुप्रीम कोर्ट करेगा गौर

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published Published on Feb 5, 2013   modified Modified on Feb 5, 2013
नई दिल्ली । सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र से कहा कि वह बाल न्याय कानून में निहित प्रावधानों की ‘संवैधानिक वैधता’ की रक्षा करे।

इन प्रावधानों के तहत अठारह साल तक की उम्र के व्यक्ति को नाबालिग माना गया है।
केंद्र से विस्तृत जवाब मांगते हुए न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि अदालत न्यायिक आधार पर इस कानून की वैधता पर गौर करेगा।  इसलिए सरकार की ओर से गठित वर्मा समिति सिफारिशों में, इस मामले में दायर जनहित याचिका का जवाब नहीं मिल सकता।
याद रहे, दिल्ली बलात्कार कांड के बाद नाबालिग की उम्र अठारह से घटाने पर बहस चली है और बाबत एक याचिका दायर की गई है। बहरहाल किशोर न्याय कानून में ‘किशोर’ की परिभाषा की संवैधानिक वैधता के सवाल पर अब सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। मौजूदा कानून में संगीन अपराध करने के बावजूद 18 साल से एक-दो हफ्ते कम आयु वाले अपराधियों को भी नाबालिग ही माना जाता है और इस नाते वह कई तरह की रियायतों का हकदार है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि हम इस मामले पर गौर करेंगे क्योंकि यह किशोर की उम्र तय करने से संबंधित है।
पीठ ने कहा कि यह कानून का सवाल है और गंभीर अपराध में आरोपी पर बालिग के रूप में मुकदमा चलाने का फैसला करते समय उसकी आयु के निर्धारण का अपराध की गंभीरता से कुछ तो तालमेल होना चाहिए। न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले में उठाए गए मसलों पर विचार के लिए अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती से सहयोग करने का आग्रह किया है। इस याचिका में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून में प्रदत्त किशोर की परिभाषा को खारिज करने की गुजारिश भी की गई है। शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल को इस मामले में विधि मंत्रालय और गृह मंत्रालय की ओर से 29 मार्च तक हलफनामा और संबंधित रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अब तीन अप्रैल को आगे सुनवाई होगी।
यह याचिका कमल कुमार पांडे और सुकुमार नाम के वकीलों ने दायर की है। याचिका में किशोर न्याय कानून की धारा 2 (एल), धारा 10 और 17 के प्रावधानों के तर्कहीन, मनमाना और असंवैधानिक होने का दावा किया गया है।
अटार्नी जनरल ने कहा कि न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति की रिपोर्ट ने सभी बिंदुओं पर गौर किया है लेकिन उसने किशोर का वर्गीकरण करने के लिए उसकी उम्र कम करने की सिफारिश करने से परहेज किया है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि वे न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट पर गौर नहीं करेंगे क्योंकि उसके समक्ष शुद्ध रूप से कानून का मसला था। अटार्नी जनरल वाहनवती ने कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में न्यायालय के साथ सहयोग के लिए तैयार है और राज्य सरकारों से भी इस विषय पर गौर करने के लिए कहा जा सकता था। उन्होंने कहा कि कुछ गैर सरकारी संगठन भी इस मुद्दे पर काफी सक्रिय हैं।
न्यायाधीशों ने इस पर कहा कि राज्यों की इसमें कोई भूमिका नहीं है और हम गैरसरकारी संगठनों को नहीं सुनेंगे। न्यायालय ने कहा कि यह मामला किशोर की उम्र तय करने से संबंधित है और किशोर न्याय कानून अंतरराष्ट्रीय सहमति पर आधारित है। ऐसे भी कई देश हैं जिन्होंने किशोर की उम्र 16 साल तय कर रखी है तो कुछ ने इसे 18 साल ही रखा है। न्यायाधीशों ने कहा कि हम सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के संदर्भ में ही इस पर विचार कर रहे हैं।
इससे पहले, जनहित याचिका में कहा गया कि आरोपी व्यक्ति को ‘किशोर’ के रूप में वर्गीकृत करना विधि के विपरीत है और किशोर न्याय कानून में प्रदत्त संबंधित प्रावधान नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं। याचियों के वकील ने कहा कि इस कानून में प्रदत्त किशोर की परिभाषा कानून के प्रतिकूल है। उनका तर्क है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 82 और 83 में किशोर की परिभाषा में ज्यादा बेहतर वर्गीकरण है। धारा 82 के मुताबिक सात साल से कम आयु के किसी बालक की ओर से किया गया कोई भी कृत्य अपराध नहीं है जबकि धारा 83 के मुताबिक सात साल से ज्यादा और 12 साल से कम आयु के ऐसे बच्चे द्वारा किया गया कोई भी कृत्य अपराध नहीं है जो किसी कृत्य को समझने या अपने आचरण के स्वरूप और उसके नतीजे को समझने के लिए परिपक्व नहीं हुआ है। 
न्यायालय का यह निश्चय दिल्ली में पिछले साल 16 दिसंबर को 23 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार की घटना में शामिल छह आरोपियों में से एक के नाबालिग होने की बात सामने आने की पृष्ठभूमि में खासा अहम है। इस वारदात के बाद से ही किशोर न्याय कानून के तहत किशोर की आयु का मामला चर्चा में है।
वाहनवती ने कहा कि इस मसले पर गौर करते समय यह ध्यान रखना होगा कि यह किशोर के कृत्य का सवाल नहीं है बल्कि यह भी सोचना होगा कि उसने ऐसा क्यों किया और यह भी संबंधित तथ्य है कि समाज ने उसे विफल घोषित कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि किशोर को वर्गीकृत करते समय उसकी उम्र सीमा कम करके 16 साल की जाए या फिर इसे 18 साल रखा जाए,  इस पर फैसला अदालत के विवेक पर छोड़ना होगा।
याचियों के मुताबिक राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की 2011 की रिपोर्ट के अपराध के आंकड़ों से पता चलता है कि 18 साल से कम आयु के किशोरों की ओर से किए गए अपराधों में कुल   मिलाकर करीब दो फीसद का इजाफा हुआ है। यही नहीं, 2011 में किशोरों ने 33,887 अपराध किए जिसमें से 4443 अपराध करने वाले किशोरों ने उच्चतर माध्यमिक तक शिक्षा प्राप्त की थी। 27577 किशोर अपराधी अपने परिवारों के साथ रह रहे थे जबकि सिर्फ 1924 किशोर ही बेघर थे।
याचिका के मुताबिक इन किशोर अपराधियों में से लगभग दो तिहाई किशोर 16 से 18 आयु वर्ग के हैं। साथ ही 2010 के मुकाबले 2011 में किशोरों के हाथों हुए अपराधों में 34 फीसद का इजाफा हुआ है।


http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/38187-2013-02-05-05-14-59


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