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न्यूज क्लिपिंग्स् | निर्यात और विनिर्माण की स्थिति कैसे सुधरे-- जयंतीलाल भंडारी

निर्यात और विनिर्माण की स्थिति कैसे सुधरे-- जयंतीलाल भंडारी

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published Published on Feb 28, 2016   modified Modified on Feb 28, 2016
मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में यह संभावना उभर रही है कि इस वर्ष निर्यात और विनिर्माण के क्षेत्र को बजट आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। पिछले 14 महीनों से देश के निर्यात में लगातार गिरावट आ रही है। वर्ष 2015 में निर्यात बढ़ाने के प्रयास कारगर सिद्ध नहीं हुए हैं। पिछले वर्ष 2015 में निर्यात में वर्ष 2014 की तुलना में 20 फीसदी कमी आई है और मंद होती वैश्विक अर्थव्यवस्था में निर्यात में सुधार कर पाना मुश्किल है। वाहन निर्माण, इंजीनियरिंग वस्तु, परिष्कृत हीरे और चमड़े की वस्तुएं आदि उद्योगों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसका असर रोजगार पर भी दिखाई दे रहा है। नए बजट में निर्यात प्रोत्साहनों के साथ विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) को केंद्र सरकार टैक्स छूट समेत अन्य रियायतें मुहैया करा सकती है। वस्तुत: केंद्र सरकार विश्व में व्यापारिक दखल बढ़ाने के लिए देश में निर्यात और निर्माण को बढ़ावा देने का खाका तैयार कर चुकी है। जिसके लिए बजट में न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) और लाभांश वितरण कर (डीडीटी) में भारी रियायत दिए जाने की संभावना है। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, ‘मेक इन इंडिया' और ‘स्टार्टअप' जैसे कार्यक्रमों के लिए नए एसईजेड सबसे अहम हैं। ऐसे में मैट और डीडीटी जैसे करों में सरकार पांच से दस प्रतिशत की कटौती कर सकती है।

गौरतलब है कि एक अप्रैल, 2015 को केंद्र सरकार ने वर्ष 2015-20 के लिए बहुप्रतीक्षित विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) की घोषणा की। इस नीति के तहत 2020 तक वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा दो फीसदी से बढ़ाकर 3.5 फीसदी पर पहुंचाने तथा वर्ष 2019-20 में देश का निर्यात करीब 900 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। निर्यात में हर साल 14 फीसदी बढ़त हासिल करने की कोशिश की जाएगी। निर्यात परिदृश्य को देखें, तो चुनौतियां बड़ी हैं। मसलन 2014-15 में निर्यात लक्ष्य 340 अरब डॉलर के मुकाबले वास्तविक निर्यात 300 अरब डॉलर का ही रहा। यह निर्यात वित्तीय वर्ष 2015-16 में 300 अरब डॉलर से भी कम दिखाई दे रहा है।

नए बजट के माध्यम से विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के निराशाजनक प्रस्तुतीकरण को बदलने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। देश में कुल 416 मंजूरी प्राप्त सेज हैं, जिनमें महज 202 सेजों में ही औद्योगिक इकाइयां काम कर रही हैं। शेष 214 सेजों में से 113 की तो अभी अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है। यदि हम इसका अध्ययन करें, तो पाते हैं कि बड़ी संख्या में सेज की अधिसूचना रद्द किए जाने तथा अधिसूचित सेजों के खाली पड़े रहने का कारण इसके तहत दिए जाने वाले कर लाभ एवं छूट को लेकर नीतियों की अस्थिरता, प्रमुख कारण है। ऐसे में नए बजट के माध्यम से सेजों को प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी है।

देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 15 फीसदी है, जबकि चीन में यह 30 फीसदी है। देश में विनिर्माण क्षेत्र की सालाना वृद्धि दर, जो वर्ष 2000 से 2010 के बीच करीब 10 फीसदी थी, अब निराशाजनक हो गई है। विनिर्माण में एफडीआई को सुगम बनाने के लिए नियामकीय व्यवस्था सुनिश्चित की जानी होगी, जिसके तहत राष्ट्रीय स्तर पर एकल खिड़की और समय सीमा पर विशेष ध्यान हो। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि ‘मेक इन इंडिया' का नारा सुनकर दुनियाभर की कंपनियां विनिर्माण के गढ़ के तौर पर भारत को प्राथमिकता नहीं देने जा रही हैं, इसके लिए विशेष प्रोत्साहन जरूरी होंगे।

उम्मीद है कि बढ़ती हुई वैश्विक मंदी की आहट के बीच विनिर्माण परिदृश्य को सुधारने और निर्यात बढ़ाने के मद्देनजर बजट में रणनीतिक प्रभावी कदमों की पहल दिखाई देगी।


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/columns/how-the-export-and-manufacturing-situation-improved-hindi/


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