Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | परंपरा और आधुनिक गणराज्य की खिचड़ी- एडवर्ड ए रॉड्रिग्ज, दिलीप मंडल

परंपरा और आधुनिक गणराज्य की खिचड़ी- एडवर्ड ए रॉड्रिग्ज, दिलीप मंडल

Share this article Share this article
published Published on Nov 7, 2015   modified Modified on Nov 7, 2015
हरियाणा के सुनपेड़ की घटना के बाद केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने जो बयान दिया था, उसे लेकर गुबार अब थम चुका है। इस घटना को लेकर अब तमाम तरह की व्याख्याएं भी आ रही हैं। लेकिन जिस समय यह बयान दिया गया था, उस समय इस घटना की एक ही कहानी थी और वह बेहद दर्दनाक है। पुलिस में दर्ज एफआइआर के मुताबिक एक दलित परिवार के घर में आग लगा दी गई थी, जिसमें दो बच्चे जल कर मर गए और बच्चों की मां गंभीर रूप से झुलस गई। अखबारों और चैनलों की पहली रिपोर्टिंग इसी रूप में हुई थी। जनरल वीके सिंह और उनसे इस बारे में सवाल पूछने वाले पत्रकार के दिमाग में इस घटना की ऐसी ही हृदय-विदारक छवि बनी होगी, या बननी चाहिए। वीके सिंह के बयान को समझने के लिए इस संदर्भ को ध्यान में रखना आवश्यक है। हमारे प्रधानमंत्री जिन देशों की यात्रा करते रहते हैं, खासकर जिन पश्चिमी देशों की, वहां ऐसी किसी भी घटना पर कैसी प्रतिक्रिया होती है, इससे हम सब वाकिफ हैं। पुलिस की गैरजरूरी फायरिंग में एक अश्वेत बच्चे की मौत पर राष्ट्रपति बराक ओबामा राष्ट्र के समक्ष लगभग रोते हुए प्रस्तुत होते हैं और ऐसा सिर्फ अमेरिका में नहीं होता। आधुनिक देशों में ऐसी घटनाएं सार्वभौमिक निंदा और शोक को जन्म देती हैं, जिसमें शामिल होकर अक्सर पूरा राष्ट्र रोता है। आधुनिक राष्ट्र की सबसे ज्यादा स्वीकृत परिभाषाओं में अर्नेस्ट रेनन की परिभाषा को रखा जाता है, जिसमें राष्ट्र बनने के लिए साझा सुख, साझा दुख और साझा सपनों का बहुत ज्यादा महत्त्व है। लेकिन जैसा कि डॉ बीआर आंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के आखिरी दिन अपने समापन भाषण में कहा था कि भारत दरअसल एक बनता हुआ राष्ट्र है, जहां सामाजिक असमानता और आपसी कटुता की वजह से सौहार्द और बंधुत्व के वैश्विक विचार जड़ नहीं जमा पाए हैं। इसलिए, हम पाएंगे कि सुनपेड़ जैसी घटनाएं- और ऐसी घटनाओं की देश में कमी नहीं है- राष्ट्र के सामूहिक शोक का कारण नहीं बनतीं। यह कहा जा सकता है कि दरअसल हम जिन आधुनिक राष्ट्रों की कतार में खड़े होने का सपना देखते हैं, उसके लिए हमारी तैयारी नहीं है। आधुनिकता को राष्ट्रीय विचार के तौर पर आत्मसात करने की हमारी कोशिशों में कमी रह गई है। इसलिए किसी का दुख अक्सर उस समुदाय का दुख बन कर रह जाता है। कहना मुश्किल है कि जनरल सिंह ने इस घटना पर बयान दिया ही क्यों? वे देश या हरियाणा के गृहमंत्री नहीं हैं। वे हरियाणा से सांसद भी नहीं हैं। आमतौर पर ऐसी घटनाओं को लेकर केद्रीय मंत्री बयान देते भी नहीं हैं। वे गाजियाबाद में अपने चुनाव क्षेत्र में थे। एकमात्र संभावित वजह यह हो सकती है, जिसके बारे में सोशल मीडिया में काफी शोर मचा कि इस घटना के अभियुक्त उसी सामाजिक समूह से आते हैं, जिस सामाजिक समूह से जनरल सिंह का ताल्लुक है। इस बयान को दिए जाने के कारणों के बारे में पक्के तौर पर कह पाना हमारे लिए मुमकिन नहीं है। खैर, इसके बाद जैसा कि भारत में अब चलन हो गया है कि टीवी चैनलों पर तूफान मच गया और पक्ष और विपक्ष को स्टूडियो में बुला कर एक दूसरे की खूब छीछालेदर कराई गई। बहस के नाम पर टेलीविजन चैनलों में हर रात होने वाले इस तमाशे का अंतिम नतीजा मुद््दे को सनसनीखेज और अगंभीर बनाने और प्रकारांतर में जनता के मन में राजनीति के प्रति वितृष्णा पैदा होने की शक्ल में होता है। दर्शकों के लिए, समाचार के मनोरंजन बन जाने की प्रक्रिया, इस तरह हर रोज टेलीविजन स्क्रीन पर संपन्न होती है। इन तूफानी बहसों के बावजूद, भारतीय समाज की संरचना की वजह से दलितों पर अत्याचार और क्रूरता उसी तरह जारी हैं, जिस तरह धार्मिक अल्पसंख्यकों को हिंसक हमलों का निशाना बनाने और उन्हें हाशिए पर धकेलने की कोशिश। इसकी सफाई में, सत्ताधारी वर्ग की जो भी प्रतिनिधि पार्टी शासन में होती है, वह पूरी ठसक के साथ यह कहती है कि पिछली सरकार में भी तो यही या इससे भी बुरा होता रहा है। घटनाओं की निरंतरता को देखते हुए उनका यह कहना गलत भी नहीं है। इस सब के बीच देश के सामाजिक वातावरण में कड़वाहट लगातार बढ़ रही है और तमाम तरह की ‘सेनाएं' और दल देश पर उस विचार को थोपने की कोशिश में जुट जाते हैं, जो उनके हिसाब से असली राष्ट्रीय संस्कृति है। यहां एक सवाल यह भी उठता है कि सुनपेड़ की घटना के संदर्भ में जनरल सिंह के कुत्ता वाले बयान पर सिविल सोसायटी और खासकर दलित संगठनों ने इतनी तीखी प्रतिक्रिया क्यों जताई। यहां तक कि चुनाव के दौरान बिहार में राजग के सहयोगी जीतन राम मांझी ने जनरल सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग प्रधानमंत्री से कर डाली। कुत्ते में ऐसा क्या खास है? बल्कि इस सवाल को इस तरह भी पूछा जा सकता है कि दलित बच्चों के मरने की बात सुन कर, जनरल सिंह के दिमाग में कुत्ते की बात आई ही क्यों? अगर हम हिंदू धर्मशास्त्रों को देखें तो शायद हम किसी किस्म का जवाब देने की स्थिति में पहुंच पाएंगे। इन ग्रंथों में कुत्ते या श्वान का जिक्र बार-बार आया है। मिसाल के तौर पर, वेंडी डोनिगर की जिस विवादित किताब ‘द हिंदूज: एन आल्टरनेटिव हिस्ट्री' को पेंगुइन प्रकाशन ने रद्दी बना कर निबटा दिया है, उस किताब में कुत्ता शब्द कम से कम 91 बार आया है। जाहिर है, इन शास्त्रों को पढ़ कर या इनके बारे में सुन कर बड़े होने वाले हर व्यक्ति के दिमाग में इस जानवर के बारे में एक छवि है। और यह छवि अच्छी नहीं है। हिंदू धर्म-दर्शन के दो बुनियादी तत्त्व हैं, जो विवादों से परे हैं और जिन्हें अंगीकार किए बिना किसी का हिंदू होना संभव नहीं है। इसमें पहला तत्त्व है आत्मा का अविनाशी होना और उसके नए शरीर में जाने की संकल्पना, और दूसरा तत्त्व है कर्म का सिद्धांत, जिसके मुताबिक व्यक्ति इस जन्म में जो कर्म करता है उसके हिसाब से उसे अगले जन्म में शरीर मिलता है। अगर किसी ने अपने वर्ण-धर्म के हिसाब से कर्म किया है तो उसकी आत्मा को अच्छा शरीर मिलेगा और किसी ने ऐसा नहीं किया है तो उसे सांप या कुत्ता या कीड़े जैसी निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ेगा। पुनर्जन्म की तमाम कहानियों से भरे पड़े धर्मशास्त्रों में नीच योनि में जिन जानवरों का जिक्र है, उनमें कुत्ता प्रमुख है। इस सूची में गाय और घोड़ा जैसे अच्छे जानवर शामिल नहीं हैं। इसलिए यह श्राप दिया जा सकता है कि ‘अगले जन्म में कुत्ता बनोगे।' लेकिन यह श्राप नहीं दिया जा सकता कि ‘अगले जन्म में गाय बनोगे।' कुत्ते को लेकर ऐसी और तमाम तरह की कहानियां सिर्फ संस्कृत या हिंदी में ही प्रचलित नहीं हैं। तेरहवीं सदी के तेलुगू धर्मशास्त्र ‘विज्ञानेश्वरमु' में यह व्यवस्था दी गई है कि ‘अगर कोई ब्राह्मण ऐसा कर्म करता है जिसके लिए दूसरे वर्ण के अपराधी के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है, तो उस ब्राह्मण का सिर मुड़ाकर उसकी ललाट पर कुत्ते के पंजे से निशान लगवा देना चाहिए।' जाहिर है कि जहां पश्चिमी संस्कृति या भारत में भी आदिवासी संस्कृति में कुत्ते को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त माना जाता है, वहीं भारत की मुख्यधारा संस्कृति में कुत्ता घृणा का पात्र है। इसलिए जिसे नीच माना जाता है, उसकी तुलना कुत्ते से की जाती है। दर्जनों मुहावरे और लोकोक्तियां भारतीय जनमानस में व्याप्त इस धारणा की पुष्टि करती हैं। क्या जनरल सिंह के दिमाग में भी ऐसी ही छवियां रही होंगी? या फिर जिन लोगों को कुत्ते वाली बात बुरी लगी, क्या उनके दिमाग में भी कुत्ते की ऐसी ही छवि नहीं है? क्या कुत्ते के बारे में यह पूरे भारतीय जनमानस की सामूहिक छवि है? यहां यह सवाल भी उठता है कि आधुनिक शिक्षा और फिर सेना या कॉरपोरेट कंपनियों जैसी आधुनिक संस्था के बड़े पदों पर काम करने के बावजूद क्या ऐसी छवियां बरकरार रह जाती हैं? समाजशास्त्रीय दृष्टि से यह जरूरी नहीं, पर संभव है। प्राथमिक समाजीकरण का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में अक्सर जीवनपर्यंत बना रहता है। आधुनिकता को हम भारतीय लोग अक्सर आवरण की तरह ओढ़ते हैं और अंदर से वैसे ही बने रह जाते हैं, जैसे कि हम थे। हम सबको अपने आप से पूछना चाहिए और खुद को जांच के दायरे में लाना चाहिए कि आधुनिक राष्ट्र और उसकी अनुषंगी संस्थाएं, हमें किस हद तक आधुनिक बना पाई हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम रणनीतिक तौर पर, मौका देख कर आधुनिकता का स्वांग रचते हैं और बाकी समय में अपने अपने जातीय और कबीलाई गिरोहों में लौट जाते हैं? ठीक वैसे ही, जैसे सबसे आधुनिक टेक्नॉलॉजी के साथ अमेरिकी कंपनी में काम करने वाला सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी जाति की घरेलू, सुशील कन्या को वधू बनाने के लिए भारत आता है। या इंटरनेट पर ‘हम भारत के लोग' कम्युनिटी मेट्रेमनी डॉट कॉम बना डालते हैं। अगर हमारा सामाजिक सच यह है, तो आधुनिकता हमारे लिए जीवन मूल्य नहीं, रणनीति है, चालबाजी है।

- See more at: http://www.jansatta.com/politics/vk-singh-pm-narendra-modi-vk-singh-statement-on-haryana/48088/#sthash.AEdZcaB8.dpuf


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close