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न्यूज क्लिपिंग्स् | पर्यावरण की कीमत पर विकास मंजूर नहीं

पर्यावरण की कीमत पर विकास मंजूर नहीं

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published Published on Nov 22, 2009   modified Modified on Nov 22, 2009

बिलासपुर। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन ने शनिवार को कहा कि न्यायपालिका विकास और अधोसंरचना को बढ़ावा देने का विरोधी नहीं है, लेकिन यह पर्यावरण को नष्ट किए जाने की शर्त में नहीं होना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश बालकृष्णन ने आज बिलासपुर च्च्च न्यायालय परिसर में दिवंगत डीपी श्रीवास्तव की स्मृति में पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका विषय पर आयोजित व्याख्यान में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि न्यायपालिका विकास, अधोसंरचना को बढ़ावा देने का विरोधी नहीं है लेकिन यह पर्यावरण को नष्ट किए जाने की शर्त में नहीं होना चाहिए। मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि उद्योगों की स्थापना मुख्यत: लाभ को ध्यान में रखकर की जाती है, लेकिन यह आवश्यक है कि वह सामाजिक उत्तरदायित्व की दिशा में भी अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।

उन्होंने न्यायपालिका द्वारा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में समय-समय पर देश में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि सार्वजनिक परिवहन की दिशा में देश में 1998 में सीएनजी के इस्तेमाल को अनिवार्य किया गया।

उन्होंने कहा कि उस दौरान न्यायपालिका की सैद्धांतिक आलोचना भी की गई थी, लेकिन आज सभी लोग उस निर्णय के लाभ से भली भांति परिचित हैं।

बालकृष्णन ने कहा कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास बहाल होना सबसे जरूरी है। इसकी अवधारणा है कि सभी व्यक्ति को स्वस्थ, स्वच्छ जीवन के साथ रोजगार के अवसर भी सुलभ हो।

उन्होंने कहा कि समय-समय पर स्वयंसेवी संगठनों द्वारा पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए जो जनहित याचित दायर की जाती है। उस पर विस्तृत दिशा-निर्देश भी जारी किए जाते रहे हैं। देश में पुनर्वास नीति जो आज नीति निर्देशक तत्व के रूप में उभर कर आई है वह इसी का परिणाम है।

उन्होंने मध्यप्रदेश के सरदार सरोवर बांध निर्माण के दौरान विस्थापितों और पर्यावरण की दिशा में लिए गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षण एवं जीने के अधिकार के प्रति न्यायपालिका बेहद संवेदनशील है।

बालकृष्णन ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लिए यह गर्व की बात है कि देश का 44 फीसदी वन यहां है। इसलिए इस दिशा में सभी का यह प्रयास होना चाहिए कि वन न केवल संरक्षित किए जाएं बल्कि उसमें निवास करने वाले पशु-पक्षी भी निर्भय होकर जीवन यापन कर सकें।

इस दौरान कार्यक्त्रम में उपस्थित मुख्यमंत्री रमनसिंह ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस केजी बालकृष्णन का छत्तीसगढ़ की जनता की ओर से स्वागत किया और कहा कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं की बेहतरी के लिए राज्य शासन हरसंभव प्रयास करेगा।

सिंह ने बताया कि कार्य के दौरान अधिवक्ताओं की आकस्मिक मृत्यु पर पूर्व में 75 हजार रुपए की सहायता राशि बार एसोसिएशन द्वारा दी जाती थी। इसमें 75 हजार रुपए का और योगदान राज्य सरकार द्वारा दिया जा रहा है, जिससे पीड़ित परिवार को और अधिक आर्थिक राहत मिल सके।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6271340.html
 

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