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न्यूज क्लिपिंग्स् | पहले नहीं अंत में खाते हैं शिक्षक

पहले नहीं अंत में खाते हैं शिक्षक

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published Published on Jul 29, 2013   modified Modified on Jul 29, 2013
बिहार के मशरक प्रखंड में मिड -डे मिल खाने से हुई 23 बच्चों की मौत के बाद इस योजना को लेकर राष्ट्रीय बहस छिड़ी हुई है. देश के विभिन्न भागों से पहले भी मध्याह्न् भोजन खाने से मौत की खबरें आती रही हैं. लेकिन, बिहार की घटना अब तक की सबसे बड़ी घटना बतायी जा रही है. इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इस घटना से सबक लेते हुए विभिन्न राज्यों ने मध्याह्न् भोजन योजना को लेकर नये दिशा-निर्देश जारी किये हैं. पूर्व के निर्देशों का कड़ाई से पालन पर ध्यान दिया गया है. झारखंड से भी यह खबर आयी है कि सभी स्कूलों में टेस्टिंग रजिस्टर यानी चखनी पंजी की व्यवस्था अनिवार्य की गयी है. सभी स्कूल के प्रभारियों एवं शिक्षा अधिकारियों को इस बारे में सख्त आदेश दिया गये हैं कि बच्चों को खाना खिलाने से पहले शिक्षक उसे जरूर चखें. इस व्यवस्था का कितना पालन हो रहा है. यह जानने के लिए हमारे संवाददाता उमेश यादव ने कुछ स्कूलों का जायजा लिया. पेश है आंखों देखा हाल.

दिन मंगलवार. समय दोपहर एक बजे. स्थान रांची जिला अंतर्गत कांके प्रखंड का प्राथमिक विद्यालय कामड़े. मध्याह्न् भोजन योजना का हाल जानने के लिए मैं विद्यालय परिसर में था. प्रवेश करते ही पहले विद्यालय के भौतिक संसाधनों पर नजर दौड़ी. विद्यालय पत्थर के टीले पर अवस्थित है. परिसर की साफ -सफाई सुंदर लगी. स्कूल के पास दो-दो कमरे का तीन पुराना भवन नजर आया. एक निर्माणाधीन भी है. मध्याह्न् भोजन पकाने के लिए अलग किचन शेड है. बालक एवं बालिका के लिए अलग-अलग शौचालय है. स्कूल के पास अपना चहारदीवारी है जो अभी पूर्ण नहीं हुआ है. मुख्य प्रवेश द्वार पर गेट नहीं लगा है. काम चल ही रहा है. स्कूल को अभी पूरी तरह निहार ही रहा था कि प्रभारी प्रधानाध्यापक अर्पण तिर्की वर्ग कक्ष से निकलते नजर आये. वे टोकते कि इससे पहले मैंने उन्हें नमस्ते कहा. फिर अपना परिचय एवं आने का उद्देश्य बताया.

इस पर उन्होंने कहा, ‘आप थोड़ी देर रूक जाइये. अभी तो एक ही बज रहा है. हमलोग डेढ़ बजे बच्चों को भोजन कराते हैं. तब तक इतने देर में मैं अध्यक्ष जी के पास से होकर आता हूं. कुछ जरूरी काम हैं.' वे निकलने वाले ही थे कि मैंने दो-चार सवाल पूछ दिया. इस पर उन्होंने बताया कि स्कूल में 106 बच्चे नामांकित हैं. इसमें आज की उपस्थिति 72 है. शिक्षकों की संख्या तीन है. दो सरकारी हैं. एक पारा शिक्षिका हैं. लेकिन, आज एक नहीं आये हैं. हम और पारा शिक्षिका सुशांति कुजुर उपस्थित हैं. ‘ सर मध्याह्न् भोजन कहां और कैसे पक रहा है. क्या मैं वहां जाकर देख सकता हूं. ' मेरे इस सवाल पर प्रभारी प्रधानाध्यापक श्री तिर्की मुङो अपने साथ किचन शेड में ले गये. वहां पर देखा कि किचन शेड का रंग-रोगन किया हुआ है. दिवाल पर मोटे-मोटे अक्षरों में मीनू लिखा हुआ है. मीनू में मंगलवार के सामने दाल, भात, सब्जी एवं आचार लिखा हुआ है. अंदर झांकने पर पता चला कि दाल एवं चावल बन तैयार है और अच्छे तरीके से ढक कर रखा हुआ है. सब्जी चुल्हे पर चढ़ी हुई थी. सब्जी में सिर्फ आलू था. हरी सब्जी के बारे में पूछता कि इससे पहले ही प्रभारी बोल पड़े, ‘3 रुपये 51 पैसे मिलते हैं. कहां से करें.

यह पैसा बहुत कम है. आप लोग खुद भी यह समझते होंगे कि आज के समय में इतने पैसे में क्या हो सकता है.' शेड में दो रसोइया थी. एक सब्जी पलट रही थी और दूसरा एक थाली में थोड़ी सब्जी लेकर उसे चख रही थी. किचन शेड की सफाई व्यवस्था चकाचक थी. मैंने फोटो लेने के लिए कैमरा ऑन किया कि तभी प्रभारी ने रसोइयों को एलर्ट किया. ‘आपकी व्यवस्था अच्छी है. आप जिस तरह बैठे हुए हैं और काम कर रहे हैं, उसी तरह रहिये. ' मेरे यह कहने के बाद भी एक रसोइया दीदी ने नहीं माना और प्रभारी का इशारा पाते ही झट से एप्रॉन पहन लिया. ताकि लगे कि सब कुछ नियम पूर्वक है. इतना होते-होते 15 मिनट बीत गया. प्रभारी साहब वर्ग कक्ष की ओर बढ़े. फिलहाल दो वर्ग कक्ष में ही पढ़ाई हो रही थी. मैं फिर फोटो लेने के लिए तैयार हुआ. इसी बीच उन्होंने पारा शिक्षका श्रीमति कुजूर को बच्चों को कतारबद्ध करने का इशारा किया. हालांकि वर्ग कक्ष की व्यवस्था भी अच्छी थी. बच्चे शांत थे. हां, कुछ बच्चे इधर-उधर उल्टा-सीधा बैठे हुए थे. लेकिन, बच्चों से आप हमेशा सीधी बैठे रहने की अपेक्षा नहीं कर सकते. इसलिए सब कुछ ठीक ही था. फोटो लेने के बाद अब मैं बरामदे पर खड़ा था. इंतजार कर रहा था डेढ़ बजने की. इसी बीच प्रभारी साहब ने कहा, ‘अब मैं अभी अध्यक्ष जी के पास नहीं जाऊंगा. आपको फोटो लेनी है तो मैं 15 मिनट पहले ही टिफिन कर देता हूं.' मैंने उन्हें रोका और कहा, ‘सर मुङो कोई हड़बड़ी नहीं है. आप सब कुछ तय समय पर वैसा ही करें जैसा हर दिन करते हैं. ' इस पर वे माने गये. इसके बाद मेरे बैठने के लिए ऑफिस खुलवाया. इसी बीच और सवाल जवाब हुआ. प्रभारी साहब मुङो बताने लगे कि ‘ तीन भवन जरूर है. लेकिन, एक का दोनों कमरा पूरी तरह जजर्र है और एक भवन का एक कमरा जजर्र है. इसलिए कहिये तो सिर्फ तीन ही कमरे फिलहाल ठीक हैं. निर्माणाधीन भवन के बारे में उन्होंने बताया, ‘पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में कार्य शुरू हुआ है. दूसरा किस्त यही जून महीने में मिला है. इसलिए पूरा नहीं हो पाया है. चहारदीवारी का भी काम साथ में ही शुरू हुआ है.

इससे भी वर्ग कक्ष निर्माण कार्य पूर्ण करने में विलंब हुआ है. स्कूल में पानी की व्यवस्था के बारे में कहा, ‘ पत्थर पर विद्यालय अवस्थित होने के कारण परिसर में तीन-तीन सामान्य बोरिंग फेल हो गया था. इसके बाद पूर्व के प्रभारी प्रधानाध्यापक ने ही ग्रामीणों की सहमति से स्कूल की जमीन के बाहर दूसरे की जमीन पर बोरिंग करवाया. यह संयोग हुआ कि वहां पानी निकल गया. हमेशा पानी निकलता है. गरमी के दिनों में थोड़ी दिक्कत हुई. पानी में कभी-कभी कचरा आ जाता था. चापानल ज्यादा दूरी पर नहीं है. उत्तर दिशा में है, इसलिए कोई खतरा नहीं है. वरना दक्षिण की तरफ मेन रोड बहुत खतरनाक है. वैसे हमलोगों ने सभी बच्चों को हिदायत दी है कि स्कूल आने के बाद कोई रोड की तरफ नहीं जायेगा. रसोइया खाना बनाने के लिए पानी भी वहीं से लाती हैं.' शौचालय के बारे में पूछने पर वे वहां दिखाने ले गये. शौचालय साफ नजर आया. लेकिन, लगा कि कुछ बच्चे इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं. हालांकि उन्होंने बताया कि हर शनिवार को बच्चों से ही इसमें पानी डलवाते हैं. स्कूल परिसर की सफाई भी करवायी जाती है. फिर उन्होंने चापानल दिखाया. चापानल भी साफ - सुथरा था. इतना होते- होते डेढ़ बज गया. भोजन से पहले बच्चों को कतार में थाली लेने का निर्देश हुआ. बच्चे लाइन में लगकर थाली लेने लगे. थाली में एक-एक चम्मच वाशिंग पाउडर भी दिया जा रहा था.

थाली लेकर बच्चे चापानल पर दौड़ पड़े. प्रभारी ने बताया कि खाना खाने से पहले थाली बच्चे स्वयं धोते हैं. थाली धोने के बाद बच्चे खाना लेने के लिए रसोई के सामने कतार में खड़े हुए. सभी को खाना मिलना शुरू हुआ. थाली में दाल, भात एवं आलू की सब्जी थी. आचार का नामोनिशान नहीं था. बच्चे अभी कतार में ही खड़े थे कि तभी मैंने देखा, दो बच्चे पूरब दिशा में एक पत्थर पर बैठकर कुछ खा रहे हैं. उनके नजदीक गया तो पता चला कि वे घर से चावल, दाल एवं आचार लेकर आये थे. पूछने पर बच्चों ने बताया कि एक बार चावल में कीड़ा निकल गया था तभी से वे लोग स्कूल का खाना नहीं खाते हैं और घर से खाना लाते हैं. खैर, सभी बच्चे भूखे थे और खाने पर टूट पड़े थे. इसी बीच एक संकुल साधन सेवी आये. उनसे परिचय के बाद हमलोग फिर ऑफिस की तरह बढ़े. ऑफिस में बैठा, साधन सेवी ने कुछ रिपोर्ट लिया और चले गये. इस दौरान मैंने देखा कि बच्चे खाना चुके हैं. लेकिन, अभी तक प्रभारी प्रधानाध्यापक एवं पारा शिक्षिका ने बच्चे के खाने को चखा तक नहीं है. ग्राम शिक्षा समिति के भी कोई सदस्य नजर नहीं आये. इस पर मैंने सवाल किया तो प्रभारी ने श्री तिर्की ने बताया कि ‘ वे लोग स्कूल का ही खाना खाते हैं. लेकिन, बच्चों के खाने के बाद. स्कूल में चखनी पंजी हैं और इसमें उन सभी शिक्षकों के हस्ताक्षर हैं. ' हालांकि उन्होंने इसे दिखाया नहीं. ग्राम शिक्षा समिति के बारे में पूछने पर बताया कि आज तक किसी सदस्य ने मध्याह्न् भोजन को आकर नहीं चखा है. इसी दौरान एक अभिभावक आये. पूछने पर उन्होंने व्यवस्था के प्रति संतुष्टि जाहिर की. इसके बाद सबसे अंत में प्रधानाध्यापक श्री तिर्की ने एक थाली में थोड़ा चावल, दाल एवं सब्जी ली. मुझसे भी खाने के लिए कहा. मैंने चखने के ख्याल से थोड़ा चावल, दाल एवं सब्जी लिया. खाना चलने लायक था. लेकिन, मीनू के अनुसार नहीं होने पर मजा नहीं आया.

मुखिया जी रोज करते हैं निरीक्षण

दीनबंधु
चतरा के अव्वल मुहल्ला स्थित गीता आश्रम मध्य विद्यालय में मीनू के अनुसार मध्याह्न् भोजन मिलता है़ बच्चों की इच्छा के अनुसार ही हर रोज भोजन बनता है. जब से मध्याह्न् भोजन बनना शुरू हुआ है तब से लेकर आज तक यहां किसी तरह की शिकायत नहीं मिली है. इस विद्यालय में नामांकित बच्चों की संख्या 410 है़ इसमें हर रोज उपस्थिति 300 के आसपास रहती है. मीनू के अनुसार सोमवार को दाल, भात, सब्जी, मंगलवार को खिचड़ी, बुधवार को सादी बिरयानी, गुरुवार को नीबू चावल व सलाद, शुक्रवार को दाल, भात, चोखा, फल व शनिवार को खिचड़ी दिया जाना है. लेकिन जिस दिन विद्यालय में खिचड़ी बनती है, उस दिन बच्चे भरपेट भोजन नहीं करते हैं. इसलिए बच्चों के इच्छानुसार ही भोजन बनता है.

शिक्षक भी खाते हैं
बच्चों के साथ-साथ शिक्षक एवं शिक्षिकाएं भी हर रोज मध्याह्न् भोजन खाते हैं. इससे बच्चें के साथ-साथ अभिभावक भी खुश होते हैं. बच्चों को साफ-सुथरा भोजन परोसे जाने को लेकर विद्यालय प्रबंधन भी काफी सक्रिय है.

घर से अच्छा भोजन कक्षा आठ के छात्र प्रकाश कुमार ने बताया कि विद्यालय में घर से भी अच्छा भोजन मिलता है. कक्षा पांच के छात्र विकास कुमार ने बताया हर रोज भरपेट भोजन मिलता है. धरा कुमारी ने कहा कि विद्यालय के भोजन से संतुष्ट हैं. कक्षा आठ की छात्र ब्यूटी कुमारी ने कहा कि रोजाना मीनू के अनुसार खाना मिलता है. कक्षा छह के छात्र सुमीत कुमार ने कहा कि हरी-हरी साग-सब्जी खाने में दिया जाता है.

नहीं मिली है शिकायत
अभिभावक स्कूल में मिलने वाले भोजन पर संतोष्टी जताते हैं. अभिभावक सरीता देवी ने कहा कि विद्यलाय के भोजन का बच्चे गुणगान करते हैं. अभी तक खराब भोजन दिये जाने की शिकायत मिली है. नगीना देवी विद्यालय में बनने वाले भोजन से संतुष्ट है. आंचल खतरी के अनुसार विद्यालय में भोजन ठीक-ठाक मिलता है.

बच्चों से पूछा जाता है
प्रभारी प्रधानाध्यापक तोखन रविदास ने कहा कि जिस दिन बच्चे खिचड़ी खाना पसंद करते हैं उसी दिन विद्यालय में खिचड़ी बनता है. बच्चों के अनुसार ही सब्जी बनाया जाता है. रसोइया चावल को पूरी तरह साफ कर खाना बनाती है.

मुखिया हर दिन करते हैं स्कूलों का निरीक्षण
चतरा जिले की लावालौंग प्रखंड की लमटा पंचायत में मुखिया अमित चौबे हर रोज कई विद्यालयों का निरीक्षण करते हैं़ मुखिया के जांच के बाद ही बच्चों को मध्याह्न् भोजन खिलाया जाता है. श्री चौबे बिहार के छपरा की घटना से काफी सजग होकर विद्यालय पहुंच कर माता समिति व रसोइया को खाना बनाने की जगह को साफ-सुथरा करने का निर्देश देते हैं. श्री चौबे लमटा के अलावा शिवराजपुर, करमा, रखेद, जोगियाडीह स्कूल का निरीक्षण हर रोज करते हैं.

यहां तो दीपक तले ही अंधेरा है..
मध्याह्न् भोजन की लाइव रिपोर्टिग के दूसरे दिन बुधवार को मैं रांची जिला अंतर्गत रातू प्रखंड मुख्यालय पहुंचा. बीडीओ एवं बीइइओ ऑफिस और थाने से 150 मीटर की दूरी पर काली मंदिर के पिछुवाड़े में ही है एक विद्यालय. इसका नाम ‘ प्राथमिक विद्यालय प्रखंड मुख्यालय ' ही है. विद्यालय की दशा दीपक तले अंधेरा वाली कहावत चरितार्थ करती है. पक्का डेढ़ बजे मैं स्कूल पहुंचा था. उस समय स्कूल का दृश्य कुछ यूं था. सामने से स्कूल का परिसर खुला हुआ है. आगे में कुछ जमीन खाली है और उस पर छोटे-छोट गड्ढे में पानी जमा है. दो कमरे वाला दो भवन है. दोनों के बरामदे पर बैठ कर बच्चे भोजन कर रहे हैं. बरामदा भीगा हुआ है. उस पर चावल भी इधर-उधर बिखरा हुआ है.


बच्चों का एक झुंड चापानल पर थाली धो रहा है. कार्यालय कक्ष में प्रभारी प्रधानाध्यापिका देवयानी चक्रवर्ती एवं अन्य शिक्षिका भी घर से लायी अपना खाना खा रही हैं. मैं कार्यालय की तरफ बढ़ा तो खाना छोड़कर प्रभारी प्रधानाध्यापिका बाहर आ गयीं. परिचय एवं आने के उद्देश्य के बाद वे सहजता से मुङो भोजन दिखाने के लिए किचन शेड की ओर ले जाने लगी. यह शेड स्कूल भवन के पिछुवाड़े में है. चापानल के पाइप को पार कर हमलोग वहां पहुंचे. इस दौरान देखा कि चापानल पर कुछ बच्चे खाने से पहले और कुछ खाना खाने के बाद थाली धो रहे थे. आसपास पूरी गंदगी थी. बगल में ही शौचालय था. लेकिन, इसके बाहर घास-फुस एवं कीचड़ की स्थिति देख कर लगा कि वहां कोई बच्च जाता नहीं है. किचन में एक रसोइया मरियम उरांव खाना बनाने वाले वर्तन को धो रही थीं. शेड के अंदर झांकने से यह स्पष्ट हुआ कि खाना कोयला से बनता है. अंदर कुछ लकड़ियां और एक कोने में आलू एवं चावल रखा हुआ था. शेड के बाहर भी घास-फूस एवं राख जमा है. किचन में खाना नहीं मिला. सब बंट चुका था. इसके बाद हमलोग पुन: बरामदे पर आये. कुछ बच्चे खाना खा कर उठ चुके थे तो कुछ खा ही रहे थे. मैडम ने खाना दिखलाया. इसमें दाल, भात और आलू एवं बैगन की सब्जी थी. आचार नहीं था.

अब मैं स्कूल की व्यवस्था और मध्याह्न् भोजन के बारे में और जानकारी लेने के लिए प्रभारी प्रधानाध्यापिका के कक्ष में बैठा. मैडम ने बताया कि ‘स्कूल स्कूल में कुल 142 बच्चे में आज की उपस्थिति 110 है. तीन शिक्षक हैं. सभी उपस्थित हैं. स्कूल की कितनी जमीन है. यह स्पष्ट नहीं है. 2011 में प्रभारी बनने के बाद इस बारे में मैंने सीओ एवं अन्य अधिकारियों से पत्रचार किया. लेकिन, कोई समाधान नहीं निकला. इसलिए चहारदीवारी अधूरा है. स्कूल के बगल में एफसीआइ का गोदाम है. वहां पर चावल की लोडिंग एवं अनलोडिंग के लिए हमेशा ट्रक स्कूल के सामने खाली जगह पर लगता है. इससे काफी परेशानी होती है. बच्चों को लेकर खतरा बना रहता है. इसका मैंने पूरा विरोध किया है. प्रखंडस्तर पर बीडीओ एवं अन्य सभी लोगों को पत्र दिया है. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हुई है. विद्यालय के पास दो भवन जरूर है. लेकिन, हमलोग एक ही भवन का उपयोग करते हैं. एक भवन का एक कमरा जजर्र है.

इसके साथ ही जजर्र वाले भवन के पास जो बरगद का पेड़ है, उधर एक दिन सांप निकल आया था. तब उधर बच्चों को नहीं बैठाते हैं. मध्याह्न् भोजन उन लोगों के लिए मुसीबत है. कभी एडवांस में पैसा नहीं रहता है. सब दिन उधारी में चलाना पड़ता है. अप्रैल, मई एवं जून महीने का पैसा नौ जुलाई को मिला है. यह पैसा आया और खत्म हो गया. अब पुन: सितंबर से पहले पैसा आने की उम्मीद करना बेमानी है. तब तक उधारी में चलाना पड़ेगा. दाल, आलू, तेल एवं मशाला तो उधार में ले आती हूं. लेकिन, सब्जी किससे उधार लूं. इसके लिए जेब से पैसे लगाने पड़ते हैं. जहां तक साफ - सफाई की बात है तो जल निकासी की समस्या होने के कारण यह स्थिति है. शौचालय की स्थिति इसलिए खराब है, क्योंकि उनके विद्यालय के 99 प्रतिशत बच्चे ऐसे घर आती हैं जहां शौचालय नहीं है.

और वे लोग खुले में शौच जाते हैं. इस आदत की वजह से स्कूल के शौचालय का उपयोग ढंग से नहीं होता है. यह जल्दी ही गंदा हो जाता है. हालांकि वे साल में दो बार शौचालय की सफाई कराती हैं. ग्राम शिक्षा समिति की हर दूसरे या तीसरे महीने में बैठक हो जाती है. सदस्य लोग आते हैं. समस्याओं पर चर्चा होती है. लेकिन, क्या करें. विभाग में कोई सुनता नहीं है. ' चूंकि मैं जब स्कूल पहुंचा था उस समय बच्चे भोजन के लिए बैठ चुके थे. इसलिए यह पता नहीं चला कि भोजन किसने चखा, चखा भी या नहीं. पूछने पर इस बारे में रसोइया मरियम उरांव ने बताया कि सबसे पहले वे खाना चखती हैं. इसके बाद कोई एक शिक्षिका खाना टेस्ट करती हैं. फिर बच्चों को खाने दिया जाता है. उन्होंने बताया कि आज राजवंती मैंडम ने खाना चखा है. इस बारे में पांचवीं कक्षा की एक छात्र जो बाल संसद की प्रधानमंत्री है, ने बताया कि खाना तो हर दिन रसोइया दीदी ही चखती हैं. मैडम लोग बाद में खाती हैं. स्कूल की देखरेख के लिए तीन-तीन कमेटियां है. एक ग्राम शिक्षा समिति है जिसके अध्यक्ष सोमरा उरांव हैं. एक विद्यालय प्रबंधन समिति है. इसकी अध्यक्षा फूलमनी मुंडा हैं. लेकिन, ये लोग कभी भोजन टेस्ट करने नहीं आते हैं. बातचीत में यह भी चला कि 100 मीटर की दूरी पर होने के बाद भी कभी इसे देखने बीडीओ, सीओ, थाना प्रभारी या अन्य अफसर नहीं आये हैं.


http://www.prabhatkhabar.com/news/28647-bihar-mid-day-meals-deaths.html


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