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न्यूज क्लिपिंग्स् | पुनर्वास पर संवेदनहीन सरकार-- हिमांशु ठक्कर

पुनर्वास पर संवेदनहीन सरकार-- हिमांशु ठक्कर

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published Published on Aug 10, 2017   modified Modified on Aug 10, 2017
मध्य प्रदेश में सरदार सरोवर बांध के डूब वाले क्षेत्रों में प्रभावित लोगों के पुनर्वास की मांग को लेकर बीते 27 जुलाई से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठीं नर्मदा बचाओ आंदोलन की पैरोकार सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को रक्षाबंधन के दिन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. वे मध्य प्रदेश के धार जिले के चिखल्दा गांव में अपनी मांगों को लेकर भूख हड़ताल कर रही थीं.

नर्मदा नदी पर बना सरदार सरोवर बांध दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है, जो 800 मीटर ऊंचा है. इस बांध के बनने से हजारों लोग विस्थापित हुए हैं, जिनके पुनर्वास को लेकर मेधा आंदोलन कर रही हैं. मेधा जी की यही मांग है कि विस्थापितों का जब तक पुनर्वास नहीं हो जाता और उन्हें मुआवजा नहीं मिलता, तब तक वे आंदोलन जारी रखेंगी.

सरदार सरोवर बांध से प्रभावित गांवों में मध्य प्रदेश के 192 गांव हैं, जबकि कुल 245 गांव डूब क्षेत्रों में आते हैं, जिससे लाखों परिवार प्रभावित हैं. इतने अरसे से यह मसला गरीबों, किसानों, मजदूरों और मछुआरों की जिंदगी को दूभर बनाये हुए है, लेकिन इसके बावजूद सरकारों का रवैया बहुत ही अमानवीय नजर आता है. कायदे से एक गांव की तरह ही इन सैकड़ों प्रभावित गांवों का कायाकल्प हो जाना चाहिए था और डूब के कम-से-कम एक साल पहले ही पुनर्वास का काम पूरा भी हो जाना चाहिए था.

लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ. यह स्थिति न सिर्फ सरकार की नाकामी साबित करती है, बल्कि उससे भी ज्यादा यह प्रभावितों के प्रति, पर्यावरण के प्रति और जनतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति भी हमारी सरकारों की संवेदनहीनता को दिखाती है. यह सिर्फ मौजूदा भाजपा सरकार की बात नहीं है, जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, तब भी वहां यही हाल था. तब से अब तक कोई खास अंतर नहीं आया है.

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में न्यायपालिका भी अपनी जिम्मेदारी सही तरीके से नहीं निभा रही है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 31 जुलाई तक पुनर्वास का काम पूरा होने के बाद ही बांध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्देश दिया था. लेकिन, यह निर्देश भी उचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि निर्देश तिथि का समय तो मॉनसून का समय है.

कायदे से होना यह चाहिए था कि डूब की स्थिति बनने के एक साल पहले का निर्देश होता. या अगर इस वक्त डूब की स्थिति है, तो उसके बाद 30 जून 2018 तक पुनर्वास का निर्णय दिया जा सकता है. इस ऐतबार से हमारी न्यायपालिका की यह नाकामी है कि वह इस मामले में पर्यावरणीय और मॉनसूनी समयों का ख्याल नहीं रख पायी.

नर्मदा बचाओ आंदोलन एक बहुत बड़ा आंदोलन है. इसके समर्थन में पूरे देश के अलग-अलग क्षेत्रों से लोग हैं. यह एक अहिंसक आंदोलन है और इसके तहत विस्थापितों के लिए पुनर्वास से लेकर उनके जीवन से जुड़ी समस्याआें पर मांगें रखी जाती हैं.

ये जायज मांगें हैं, लेकिन जिस तरीके से इस अहिंसक आंदोलन को लॉ एंड ऑर्डर का मुद्दा बना कर सरकार ने मेधा जी को गिरफ्तार किया, वह उचित नहीं है. नर्मदा बचाओ आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पूरे देश में किसी भी तरह से अगर विस्थापितों के प्रति संवेदनशीलता है, तो वह नर्मदा बचाओ आंदोलन और इसके नेतृत्वकर्ता मेधा पाटकर की वजह से है. इसके बावजूद सरकार जिस तरह से आंदोलनकारियों के प्रति पेश आ रही है, उससे यह साबित है कि सरकार बेहद अमानवीय है और उसका रवैया कानून-सम्मत नहीं है.

जहां तक सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई और बढ़ाने का सवाल है, तो इसका अभी तक कोई ठोस तर्क सरकार के पास नहीं है कि आखिर वह बांध की ऊंचाई बढ़ा क्यों रही है. अभी वह जितना ऊंचा है, उससे वहां पानी का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाता है. फिर ऊंचाई बढ़ाने का कोई मतलब ही नहीं है.

इस मामले में सरकार को चाहिए कि संवेदनहीन होने के बजाय जनता के सामने आये और पुनर्वास की मौजूदा स्थितियों से लेकर बांध से कितना पानी का इस्तेमाल हुआ या हो रहा है, बांध की ऊंचाई बढ़ाने का क्या तर्क है, पर्यावरण की दृष्टि से यह कितना सही है, आदि सवालों पर अपनी जनता को जवाब दे.

इस ऐतबार से मेधा जी की यह मांग जायज है कि पहले सरदार सरोवर के बंद गेट को सरकार खोले, पुनर्वास की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही लोगों का विस्थापन करे और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार अपनी जनता से बात करे.

लॉ एंड ऑर्डर का मामला बनाने के बजाय, आंदोलनकारियों को गिरफ्तार करने के बजाय सरकार उनसे बात करके उनकी मांगों पर विचार करे. सरकार को चाहिए कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करा कर यह पता लगाये कि इस बांध से गरीबों, किसानों, मजदूरों और मछुआरों को विस्थापित होकर किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और उनकी जिंदगी कितनी मुश्किल भरी है.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/1035587.html


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