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न्यूज क्लिपिंग्स् | पेमेंट्स बैंक से पीछे हटती हस्तियां-- बिभाष

पेमेंट्स बैंक से पीछे हटती हस्तियां-- बिभाष

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published Published on Jun 15, 2016   modified Modified on Jun 15, 2016
मुद्रा नीति की घोषणा के बाद पत्रकारों के प्रश्नों के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि सिर्फ गंभीर हस्तियों/फर्मों को पेमेंट्स बैंक लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहिए. उनका यह बयान इस परिप्रेक्ष्य में था कि हाल ही में तीन हस्तियों ने, जिन्हें पेमेंट्स बैंक चालू करने का लाइसेंस मिला था, इस प्रकार के बैंक खोलने के अपने इरादे से पीछे हट गये. 

वर्ष 2014-15 के लिए जुलाई, 2014 में बजट प्रस्तुत करते हुए वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि छोटे बैंक और अन्य विशिष्ट बैंकों की स्थापना के लिए कदम उठाये जायेंगे, जिससे छोटे व्यवसाय, असंगठित क्षेत्र, निम्न आय वालों, किसानों और प्रवासी मजदूरों की ऋण और भुगतान तथा धन प्रेषण की जरूरतों को पूरा किया जा सके. 

आरबीआइ ने 17 जुलाई को ही पेमेंट्स बैंक की स्थापना संबंधी ड्राॅफ्ट दिशा-निर्देश जनसाधारण की टिप्पणियों-सुझावों के लिए जारी कर दिया. प्राप्त सुझावों के आधार पर आरबीआइ ने 27 नवंबर, 2014 को तत्संबंध में अंतिम दिशा-निर्देश जारी कर दिया, जिसके आधार 41 हस्तियों ने पेमेंट्स बैंक की स्थापना के लिए आवेदन दिया. इन आवेदन पत्रों पर विचार करते हुए आरबीआइ ने ग्यारह हस्तियों को पेमेंट्स बैंक खोलने हेतु सिद्धांतत: अनुमोदन प्रदान किया. 

वित्तीय समावेशन को प्रभावी बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए आरबीआइ ने वर्ष 2013 में नचिकेत मोर की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया- कमेटी ऑन कॉम्प्रिहेंसिव फाइनेंशियल सर्विसेज फॉर स्मॉल एंड लो इनकम हाउसहोल्ड्स. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जो भी खाते खुले हैं, वे भी पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक खाते नहीं हैं. 

आरबीअाइ ने खातों को पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक बनाने के लिए एनइएफटी, आरटीजीएस, आइएमपीएस, प्री-पेड इंस्ट्रुमेंट्स, मोबाइल बैंकिंग आदि की व्यवस्था की है. खाताधारकों के नाम की पहचान करने और उनके पते की पुष्टि के लिए इ-केवाइसी की सुविधा भी है. दूर-दराज के इलाकों में बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बिजनेस करेस्पॉन्डेंट्स के लिए बड़ी उदार पॉलिसी भी बनायी गयी है. फिर भी इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग सेवाओं को लोगों तक सुगमता से पहुंचाने में दिक्कत आ रही है. 

इसी को ध्यान में रखते हुए नचिकेत मोर कमेटी ने स्मॉल बैंक्स और पेमेंट्स बैंक की स्थापना की सिफारिश की थी. इसी आधार पर 2014-15 के बजट में भारत सरकार ने इन श्रेणी के बैंकों की संस्थापना का संकल्प लिया था. आरबीआइ ने जनसाधारण से प्राप्त सुझावों को ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश जारी किया, जिसका अध्ययन कर विभिन्न हस्तियों ने पेमेंट्स बैंक की संस्थापना हेतु आवेदन कर अनुमोदन प्राप्त किया. अब इन बैंकों की संस्थापना से कदम पीछे खींचना आश्चर्य की बात है.

पीछे हटनेवाली एक कंपनी के कार्यपालक ने कहा कि उनकी कंपनी ने सोचा कि क्या यह व्यवसाय उनके लिए प्राथमिकता का स्थान रखता है, जिसके लिए पूंजी का आबंटन किया जा सके. यह बयान कॉरपोरेट सेक्टर की मंशा दर्शाता है. हाल में भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक की संस्थापना को लेकर. 

इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक अपने पहले से ही मौजूद विस्तृत नेटवर्क से ज्यादातर लोगों की बैंकिंग जरूरतों को पूरी करने में सफल हो सकेगा. समस्या यहीं है. यही कॉरपोरेट जगत सरकार को कहता रहता है कि सरकार का काम प्रशासन है व्यवसाय नहीं. इसी आधार पर वह सरकारी कपनियों के निजीकरण के लिए दबाव डालता रहता है. कल जब इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक सफल हो जायेगा, तो सरकार पर इसके निजीकरण के लिए दबाव डाला जायेगा.

देश का विकास सबकी प्राथमिकता है, क्योंकि विकास से सबको फायदा होगा. यह जरूर है कि पेमेंट्स बैंक की संस्थापना में मेहनत करनी पड़ेगी. टेक्नॉलॉजी से लेकर कॉन्टैक्ट प्वॉइंट तैयार करना, बिजनेस मॉडल तय करना, प्रोडक्ट्स तय करना आदि जरूरी काम होंगे. फिर जनसाधारण से जमा किये गये डिपॉजिट को कैसे निवेश करना पड़ेगा आदि कुछ वित्तीय प्रबंध भी करने पड़ेंगे. 

किसी स्थापित कॉरपोरेट के लिए यह सब करना बहुत मुश्किल नहीं है. कॉरपोरेट जगत को कुछ नया करके बिजनेस डेवलप करना पड़ेगा, तभी उनकी काबिलियत का पता चलेगा. समस्या यह है कि यह छोटे लोगों के साथ छोटा काम करने का व्यवसाय है. अब हर व्यवसाय बड़ा तो नहीं हो सकता. फिर से यह काम लगता है सरकारी संस्था को ही करना पड़ेगा. 

पेमेंट्स बैंक के लिए भारत में अपार संभावनाएं हैं. शुल्क आधारित व्यवसाय की अपार संभावनाएं हैं. इ-कामर्स में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हो रही है. मोबाइल भुगतान का एक सशक्त माध्यम बन कर उभरा है. 

मोबाइल वैलेट की बाढ़ सी आ गयी है. छोटे रोजी-रोजगार में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है और इनके भुगतान का कोई पुख्ता प्रबंध नहीं है. ये अभी-भी इनफॉर्मल स्रोतों पर आश्रित हैं. आरोप है कि खुद बड़ी कंपनियां छोटे रोजगारी से खरीदे गये माल का भुगतान समय से नहीं करतीं. पूरे देश में हर कोई किसी न किसी रूप में प्रवासी है और अपने घर धन प्रेषण में लगा रहता है. किसानों को भी हर रोज छोटे-छोटे भुगतान करने पड़ते हैं और वित्तीय प्रबंध करना पड़ता है. 

पेमेंट्स बैंक को म्युचुअल फंड और बीमा आदि बेच कर कमाई करने की भी अनुमति है. यदि लोग भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से करते हैं, तो खातों में ज्यादा बचत करते हैं. यह राशि पेमेंट्स बैंक के लिए निवेशोपयोगी होगी. आरबीआइ ने इनके कार्यक्षेत्र में बैंकों का बिजनेस करेस्पॉन्डेंट बनने की भी अनुमति प्रदान किये हुए है. ये उन बैंकों के माध्यम से अपने ग्राहकों को ऋण की व्यवस्था कर शुल्क की कमाई कर सकते थे. 

पब्लिक सेक्टर बैंकों के त्रैमासिक कार्य निष्पादन की समीक्षा सभा में छह जून को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मुख्य कार्यकारी अधिकारियों को कहा कि वित्तीय समावेशन के महत्व को देखते हुए इसके क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए. 
उन्होंने वित्तीय समावेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर को इंटरऑपरेबल बनाने की आवश्यकता पर बल दिया. पेमेंट्स बैंक से प्राइवेट सेक्टर के पैर खींचने से यह प्रतीत होता है कि यह काम सरकारी क्षेत्र की संस्थाओं को ही मुख्य रूप से करना पड़ेगा.

http://www.prabhatkhabar.com/news/columns/story/815424.html


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