Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | प्रदूषण की राजधानी-- शशिशेखर

प्रदूषण की राजधानी-- शशिशेखर

Share this article Share this article
published Published on Nov 22, 2018   modified Modified on Nov 22, 2018
इस साल की शुरुआत में जब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युअल मैक्रॉन बीजिंग पहुंचे, तो साफ नीला आसमान देखकर उनके मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा- मैंने ऐसा खूबसूरत बीजिंग पहले कभी नहीं देखा था। मैक्रॉन सही कह रहे थे। दस साल पहले इस शहर की आबोहवा इतनी खराब थी कि सूरज सिर्फ एक धुंधले पिंड के तौर पर दिखाई पड़ता था।

याद आया, 2008 में जब मैं पहली बार बीजिंग के हवाई अड्डे पर उतरा, तो पौ फट चुकी थी, पर धूप में प्रखरता का अभाव था। बीजिंग में सूरज की यह दयनीय स्थिति, दिल्ली की मरियल धूप के अभ्यस्त हम लोगों तक का दिल दुखा गई थी। कुछ दिन पहले ही न्यूयॉर्क टाइम्स में पढ़ा था कि इस महादेश में औद्योगिक प्रदूषण की वजह से उपजा कैंसर बड़ी संख्या में लोगों के प्राण लील रहा है। वायु प्रदूषण की वजह से हर वर्ष लाखों लोग यहां अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं और संसार के सर्वाधिक जनसंख्या वाले इस देश के महज एक फीसदी शहरी लोग स्वच्छ आबोहवा में रहते हैं।

कुछ महीने बाद इस शहर में ओलंपिक खेलों का आयोजन होना था। भव्य स्टेडियम बन चुके थे, सड़कों की मरम्मत चल रही थी और सौंदर्यीकरण का काम जोरों पर था। इस सबके बावजूद यह सवाल वहां के लोगों के मन को मथ रहा था कि अच्छी आबोहवा के आदी विदेशी खिलाड़ियों को हमारा शहर कैसे पसंद आएगा? वहां प्रदूषण से लड़ने के लिए बेहद प्रभावी नीति की जरूरत महसूस हो रही थी, पर सरकार ओलंपिक की तैयारी में मसरूफ थी।


पांच साल बाद 2013 में चीन ने प्रदूषण से जूझने के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना बनाई। इसके तहत कोयले के इस्तेमाल पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए। थर्मल बिजली घर बंद कर दिए गए, यहां तक कि लोग घरों में भी कोयला नहीं जला सकते थे। इसके अलावा वाहनों के मानक तय करने के साथ ऐसे तमाम एहतियाती उपाय किए गए, जिनसे वायु प्रदूषण रोका जा सके। गौरतलब है कि इसी साल यहां वाहनों से निकले पीएम-2.5 की वजह से एक लाख सैंतीस हजार लोगों की जान गई थी।

यह ठीक है कि बीजिंग की आबोहवा बेहतर हुई है, पर वहां की सरकार अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य से अभी भी कोसों दूर है। खुद चीन की सरकार ने भी स्वीकार किया है कि वहां के 338 में से 231 शहरों में प्रदूषण उतना नहीं घटा, जितना कि तय किया गया था। इससे जूझने के लिए तीन साल की एक और कार्य योजना बनाई गई है।

सवाल उठता है कि अगर चीन प्रदूषण से जबरदस्त लड़ाई लड़ सकता है, तो भारत क्यों नहीं? हम कब तक यह रोना रोते रहेंगे कि चीन की शासन पद्धति अलग है, वहां हुक्मरां जो चाहे, कर सकते हैं, जबकि हमारे यहां लोकतंत्र है। हुकूमत को अपनी बात मनवाने के लिए अपने ही विभागों से अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करने होते हैं। इसके कारण विकास संबंधी तमाम परियोजनाएं अदालती झंझटों में फंस जाती हैं। भारतीय राजनेताओं के यह खोखले तर्क प्रदूषण से होने वाली जन-धनहानि की भरपाई कैसे कर सकते हैं? ‘द लांसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन ऐंड हेल्थ' की रिपोर्ट बताती है कि अकेले साल 2015 में पर्यावरण प्रदूषण का कहर 25.1 लाख लोगों को अपनी क्रूरता का शिकार बना चुका है। यह जानना खौफनाक है कि प्रदूषण की वजह से दुनिया में मरने वाले अभागों में 28 फीसदी हिस्सेदारी हिन्दुस्तानियों की होती है। इन मृतकों में 75 फीसदी गरीब ग्रामीण होते हैं। भारत और किसी क्षेत्र में भले ही शीर्ष पर हो या न हो, पर इस मामले में हमने बढ़त बना रखी है।


आप चाहें, तो इस तथ्य पर शर्मिंदा हो सकते हैं और इनकी रोशनी में अपने नेताओं की कार्यप्रणाली को आंक सकते हैं। वे अपनी कमजोरियों से उपजी नाकामियां दूसरों पर थोपने के अभ्यस्त रहे हैं। जब वे चुनावी वायदे करते हैं, तो सुविधानुसार वे इस तथ्य को भुला देते हैं कि उन्हें इनका निर्वाह इस देश के नियम-कायदों में रहकर ही करना है। पदभार ग्रहण करते समय वे शपथपूर्वक कहते हैं कि मैं संविधान का निर्वाह करूंगा। जब शपथ ले ली, तो फिर शिकायत कैसी? पर नहीं। प्रदूषण भी इस देश में सियासी छीछालेदर का हथियार है।


भरोसा न हो, तो दिल्ली, पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की नोकझोंक को याद कर लीजिए। ध्यान दें। इन तीनों राज्यों में अलग-अलग पार्टी की सरकारें हैं, पर इतनी गंभीर समस्या पर खाक डालने के मामले में वे एक-दूसरे के कितने नजदीक हैं?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गुजरे हफ्ते जो आंकड़े सार्वजनिक किए, वे इस तथ्य की ताकीद करते हैं। उन्होंने 65 शहरों की आबोहवा का परीक्षण करने पर पाया कि इनमें से 60 की हालत खराब है। दिल्ली और उसके आसपास का इलाका तो गंभीर प्रदूषण की चपेट में है। यह आंकड़ा डराता है, पर आपको दूसरे बेहद डरावने तथ्य से रूबरू कराता हूं। क्या यह शर्म की बात नहीं कि इतने बड़े देश में कुल 65 शहरों में ही प्रदूषण मापने की माकूल सरकारी व्यवस्था है? अगर देश के हर शहर की हालत परखी जाए, तो यह आंकड़ा किसी को भी सिहराने के लिए पर्याप्त होगा।


कोई आश्चर्य नहीं कि साइबेरिया सहित तमाम सुदूर देशों से आने वाले पक्षियों ने अब भारत से किनारा करना शुरू कर दिया है। दिल्ली स्थित यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के आंकड़े बताते हैं कि प्रवासी र्पंरदों की संख्या में पिछले तीन वर्षों में लगातार कमी पाई गई है। अगर यही हाल रहा, तो ये र्पंरदे हमसे मुंह मोड़ लेंगे। बताने की जरूरत नहीं है कि र्पंरदे पलायन की शुरुआत करते हैं और यह शृंखला इंसानों पर जाकर थमती है। शायद यही वजह है कि पिछले दिनों एक सर्वे में पता लगा कि 35 फीसदी लोग देश की राजधानी से पलायन के इच्छुक हैं। तय है, दिल्ली की दमक फीकी पड़ रही है।

कुदरत का इशारा साफ है, संभलिए, नहीं तो समाप्त हो जाइएगा।


https://www.livehindustan.com/blog/editorial/story-shashi-shekhar-aajkal-hindustan-column-on-18-november-2271016.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close