Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | प्रेम से खौफ़ज़दा समाज - मृणाल पाण्डे

प्रेम से खौफ़ज़दा समाज - मृणाल पाण्डे

Share this article Share this article
published Published on Mar 31, 2017   modified Modified on Mar 31, 2017
एंटी रोमियो अभियान के नाम पर की जा रही रही युवा जोडों की पकड धकड या पिटाई पर काँपने या झींकने से काम नहीं चलेगा| अगर भारतीय युवा पीढी को अपनी इच्छा से घर बाहर मिलने जुलने और निजी परिचय द्वारा बनी दुतरफा संतुष्टि को विवाह की अकाट्य पूर्व शर्त बनाना है, तो जान लें कि यह घर से सडक तक कई मोर्चों पर चलने जा रही एक लंबी लडाई होगी| और वह शांति, तर्क और गंभीरता से ही जीती जा सकेगी| इसलिये दिल इतनी जल्दी नहीं दहलने चाहिये और फूहड व्यवस्था के खिलाफ फूहड भाषा में नारेबाज़ी से भी बचना होगा| अगर- मगर के बीच ठिठकने वाले लोग, गुस्से में आँय बाँय बकने वाले लोग, तैश में समाज के ठेकेदारों या जातिप्रथा को कोस कर अफसोस में डूबे देवदास बनने वाले लोग अधिकार बहाली की लडाई नहीं जीत सकते| यह कहना ज़रूरी है क्योंकि इस मुद्दे पर पिछले हफ़्ते टीवी तथा शेष मीडिया चर्चाओं में जो स्यापा या आक्रोश देखने को मिला, वह एक मायने में उदारवादी धडे द्वारा अपनी हार का ऐलान करता था|


जो लोग युवाओं के साथ महिला सुरक्षा के बहाने ठंडी सुनियोजित प्रतिहिंसा की कार्रवाइयाँ कर रहे हैं, वे न तो वे क्षणिक क्रोध में अंधे हुए हैं, और न ही लोकतंत्र को लेकर चिंतित हैं| प्रेम की जुर्रत करने वाले लडकों को कुछ स्वयंभू नैतिक महिला पहरेदारनियों से पिटवा तथा सडकों में मुर्गा बनाकर, और पार्क या परिसर में उनके साथ कहीं अलग थलग बैठकर बतियाती लडकियों के खिलाफ परंपराभंग करने के नाम पर घर के बाहर ही नहीं, भीतर भी अनियंत्रित घरेलू हिंसा के दरवाज़े जिस तरह खोले जा रहे हैं, उसके मुकाबले की सार्थक रणनीति राज-समाज के समझदार लोगों को भरोसे में लेकर, कानूनी प्रावधानों और उसके नियामकों की समझ के बूते ही रची जा सकेगी| यह सही है कि विवाह एक सामाजिक संस्कार है, और युवा जोडों के परिवार की स्वीकृति के साथ बने संबंध की अपनी स्निग्ध चमक होती है| पर उसके साथ युवा महिलाओं के रोल, दहेज और बेटा पैदा करने को लेकर कई तकलीफदेह पूर्वग्रह भी उनमें गुँथे रहते हैं| उनको लेकर परिवारों में युवाओं तथा बुज़ुर्ग पीढियों के सोच में आज जितना फासला आ गया है, शायद पहले कभी न था| फिर ईमान की बात यह भी है कि परंपरा पर आज के बुज़ुर्गों की अपनी पकड भी शिथिल हो गई है और इंटरनेट तथा केबल या डिश टीवी के युग में तेज़ी से बदलती दुनिया से परिचित होने के बाद वे सब खुद भी चकराये हुए से हैं| फिर भी दोनो पीढियों द्वारा अपनी ज़िद पर कायम रहने से प्रेम जैसा जटिल और सुकुमार अनुभव नाहक पिस रहा है|

 

इसी सबकी वजह से आज के अधिकतर कामकाजी युवाजनर बिना परिवार से दूर गए प्रेम नहीं कर पाते हैं| पर आज की तारीख में वे रोज़मर्रा की ज़िंदगी अपने बूते मज़े से चलाने लायक आत्मविश्वास भी नहीं रखते हैं| उनकी हिचकिचाहट को ऐँठ मान कर युवाओं से बिना जामे से बाहर हुए कोई प्रेम संबंधों की बाबत बात नहीं कर पा रहा| माता पिता के खाने में खडे होकर ठंडे मन से सोचें तो गाली गलौज या मार पिटाई पर उतारू होकर व्यवस्था के ठस प्रतिनिधि युवा प्रेमियों के लिये एक नादान, कडवे विद्रोह और भावावेश में जनूनी प्रेम करने की खतरनाक राह ही रच रहे हैं| अपने इन पूर्वाग्रहों को, कि युवाओं में परिवार के लोगों के लिये त्याग या उनसे प्रेम करने की क्षमता ही चुक चली है, या राज समाज के रखवालों से प्रेम पर चर्चा करना दीवार पर सर मारना ही होगा, यदि सब सच मान लें तो फिर तो समाज का मतलब ही खत्म हो जाता है| तनिक संवेदनशीलता बरती जाये तो स्वेच्छा से बनाया गया यही प्रेम संबंध आज के पढे लिखे युवाओं के बीच स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता के सहज विकास की राह खोल सकता है| उस अनुभव के सीमेंट से बने परिवारों के समूह ही लोकतंत्र को थामे रखने के लिये एक सुदृढ सुरक्षा कवच भी साबित होंगे|


पर क्या हिंदी पट्टी का तथाकथित साहित्य कला प्रेमी समाज आज छायावादी युग की रचनाओं की भावुक उदासी, या देवदास, गुनाहों का देवता जैसे उपन्यासों के प्रेम कर निरंतर दु:ख में घुटते नायक नायिकाओं की अकाल मृत्यु को ही प्रेम की सहज परिणति मानने का आदी नहीं दिखता? चलिये वह समाज घर से भागे सभी युवा प्रेमियों को बेरी के झाड पर लटकाने की न भी सोचे, पर प्रेम विवाह का सही मायना वह नहीं समझता, न समझने को उत्सुक है, हिंदी में प्रेमकहानी विशेषांक भले ही बदस्तूर आते हों| आज के युवा जीवन पर लिखी गई सरल, सहज और गहन प्रेमकथायें खोजने चलें, तो बहुत बडी तादाद में रेणु की ‘रसप्रिया' या गुलेरी की ‘उसने कहा था' सरीखी रचनायें सामने नहीं आतीं| न ही प्रेम पर बनी अनगिनत हिंदी फिल्मों में प्रेम का सहज रूप दिखता है| एक हिट हिंदी कामेडी में उत्पल दत्त अपने भतीजे से कहते हैं : तुम उससे शादी नहीं कर सकते जिसे तुम चाहते हो , बल्कि उससे जिसे मैं चाहता हूँ|' हँसी हँसी में हृषिदा ने अकथ सचाई उघाड दी है| और जिस समाज में प्रेम की सही समझ यही हो, वह उससे या तो डरेगा या हँसेगा| वहाँ लडकों से भी अधिक लडकियों का प्रेम कर बैठना वह भी किसी कमतर आर्थिक या जातीय हैसियत वाले लडके के साथ, लडकेवालों को भी अपने प्रत्याशी को लेकर भय व गुस्से से भर देता है| इसी कारण उत्तर प्रदेश पुलिस मीडिया में जाकर कह रही है कि लडके लडकी में दोस्ती असंभव है| और घर बाहर रोमियोगिरी का फितूर चार हाथ जड कर झाड देने लायक है|


युवा प्रेम फिर भी बडी तेज़ी से पनपती सचाई है और युवाओं के लिये सही जीवन साथी का स्वतंत्र चयन कर पाना और प्रेम का स्थायित्व यह दो बडे सवाल मार पीट के बाद भी कायम रहते हैं| इसलिये उन पर अपने को ज़िम्मेदार साबित करने की दोहरी ज़िम्मेदारी है और न तो यह मानने की कोई वजह है कि वे ऐसा नहीं कर सकते| और न ही यह ज़िद पालने की कि इसमें हम उनकी कोई मदद नहीं करेंगे|

-लेखिका वरिष्‍ठ साहित्‍यकार व स्‍तंभकार हैं।


http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-society-is-afraid-of-love-1074441?utm_source=naidunia&utm_medium=home&utm_campaign=editorial


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close