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न्यूज क्लिपिंग्स् | फिर भी नहीं गलती दाल

फिर भी नहीं गलती दाल

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published Published on Jun 12, 2010   modified Modified on Jun 12, 2010

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। जबर्दस्त समर्थन मूल्य और इसका तीन गुना बाजार मूल्य। फिर भी दलहन की खेती में दाल नहीं गल रही है। मांग व आपूर्ति के भारी अंतर कारण होने वाला जबर्दस्त मुनाफा भी किसानों को नहीं लुभा पा रहा है। पिछले पांच सालों में न्यूनतम समर्थन मूल्य [एमएसपी] दोगुना से अधिक बढ़ा है और बाजार मूल्य पांच गुना। लेकिन दलहन खेती के रकबे में मामूली वृद्धि हो पाई है।

उत्पादन और उत्पादकता का हाल तो और भी बुरा है। दलहन का रकबा पिछले चार सालों में 231 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 232 लाख हेक्टेयर ही हो पाया है। जबकि दलहन में कुछ दालों का समर्थन मूल्य 1410 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 3000 रुपये प्रति क्िवटल पहुंच गया है। खुले बाजार में तो दालों की कीमत 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। सरकार और बाजार के इन प्रोत्साहनों के बावजूद दलहन फसलों की औसत उत्पादकता में बहुत ही मामूली वृद्धि हुई है। वर्ष 2006-7 में दालों की औसत उत्पादकता जहां 612 किलो प्रति हेक्टेयर थी, वह वर्ष 2009-10 में सिर्फ तीन किलो बढ़कर 615 किलो प्रति हेक्टेयर हो गई है।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि दलहन खेती के लिए किसानों को सबसे पहले सरकारी संरक्षण की जरूरत है। सबसे पहले अच्छे बीज चाहिए, जो उपलब्ध नहीं हैं। उच्च प्रोटीनयुक्त होने के कारण दलहन फसलों पर कीटनाशकों व रोगों का प्रकोप अधिक होता है। इसके लिए उपयुक्त कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है। दलहन फसलों में जिन खादों का प्रयोग होता है, उनका उत्पादन सीमित होता है। इसीलिए किसान दलहन खेती करने का जोखिम लेना नहीं चाहता है। ऐसी स्थिति में वह दालों की खेती आमतौर पर अपनी परती व अनुपजाऊ जमीन पर करता है। इसी के चलते उत्पादकता बुरी तरह प्रभावित हुई है। यही वजह है कि पिछले पांच दशक में दलहन की उत्पादकता करीब 600 किलो प्रति हेक्टेयर तक पहुंच पाई, जबकि पड़ोसी चीन में यह कई गुना अधिक है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_6485906/


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