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न्यूज क्लिपिंग्स् | फैसला होने तक कम पड़ जायेंगे 6000 पन्ने

फैसला होने तक कम पड़ जायेंगे 6000 पन्ने

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published Published on Aug 4, 2010   modified Modified on Aug 4, 2010

पटना तमाम आवेदनों और तात्कालिक आदेशों को मिलाकर यह तकरीबन 6000 पन्नों की मोटी फाइल है, जिसमें लंबी- लंबी तारीखों के बाद अदालत के अर्दली की हांक भी अब कम ही गूंजती है-'रणवीर सिंह वगैरह बनाम सुधीर कुमार सिंह वगैरह'..। एक पक्ष सौदागर सिंह की 1973 में ही मृत्यु हो चुकी है। यह टाइटिल सूट पटना सिविल कोर्ट के अवर न्यायाधीश की अदालत में 24 सितम्बर 1954 को दायर हुआ और 56 साल, 10 महीने, 8 दिन और तकरीबन 1100 तारीखों के बाद आज भी फैसले के इंतजार में अवर न्यायाधीश-दो की अदालत में लटका है। 56 साल में अदावत और पका देने वाली, तीन पीढ़ी तक की इस बहुत तकलीफदेह गाथा के लिए 6000 पन्ने भी शायद कम पड़ जायें। वाद पत्र भी 152 पेज का था।

रुख यही बताता है कि पक्षकारों की कसक दर्ज करते और पन्ने अभी जुड़ने ही हैं, इस फाइल में। व्यवहार प्रक्रिया संहिता (सिविल प्रोसिजर कोड) में बनी सुराखों की आड़ लेती तथा एक और मिसलेनियस सूट की गुंजाइश बनाती फिर कोई दरख्वास्त.. फिर कोई आर्डर..। ऐसे ही समानान्तर आदेशों और बहुत तकनीकी प्रक्रियाओं में लटका है यह मुकदमा।

सैकड़ों एकड़ के जमीनी विवाद से जुड़ा बीच यह मामला 20 अवर न्यायाधीशों की नजर से गुजर चुका है। इससे निकली यानी, निचली अदालत के किसी आदेश पर कुछ अपीलें पटना उच्च न्यायालय तक भी गयीं। लेकिन मूल मुकदमा जाने किस तिलिस्मी कोटर में उलझ गया है। इस मूल मुकदमे के कई बच्चे मुकदमे पटना सिविल कोर्ट और पटना सिटी सिविल कोर्ट में जाने कब से लंबित हैं।

मुकदमा दायर करने वक्त चार वादी और 22 प्रतिवादी बनाये गये थे। अब वादी एवं प्रतिवादी की संख्या में बढ़ोतरी भी हुयी है। वादियों में से कुछ ने कुछ प्रतिवादियों से समझौता भी करना चाहा तो कुछ ने 1944 का एग्रीमेंट पेपर भी दाखिल किया। मतलब मुकदमा और पेचीदा बना दिया गया। अधिवक्ताओं की मानें तो जिस तरह से यह मुकदमा पेचीदा होता जा रहा है, इसमें अंतिम फैसला कब तक आयेगा कुछ भी कहना मुश्किल है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_6621851.html
 

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