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न्यूज क्लिपिंग्स् | बर्बरता नहीं हो सकती मृत्युदंड का आधार : सुप्रीम कोर्ट

बर्बरता नहीं हो सकती मृत्युदंड का आधार : सुप्रीम कोर्ट

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published Published on Oct 14, 2013   modified Modified on Oct 14, 2013
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बर्बरतापूर्ण हत्या या आंख के बदले आंख जैसा प्राचीन चलन किसी मामले को विरलतम मानने और ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड देने का आधार नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति एमवाइ इकबाल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने तिहरे हत्याकांड के मुजरिम की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करते हुए यह व्यवस्था दी है। जजों ने अदालतों को किसी अपराध के लिए अभियुक्त को मौत की सजा देते समय अत्यधिक सावधानी बरतने की सलाह देते हुए कहा कि यह सजा अपवाद है जबकि उम्र कैद नियम है।
जजों ने कहा कि सभ्य समाज में दांत के बदले दांत और आंख के बदले आंख का तर्क किसी मामले को विरलतम की श्रेणी में रखने का आधार नहीं हो सकता है। लिहाजा अदालतों को मृत्युदंड देते समय जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

अदालत ने तिहरे हत्याकांड के मुजरिम गुड्डा उर्फ द्वारिकेंद्र को मौत की सजा सुनाने के निचली अदालत के फैसले में संशोधन करते हुए उसे उम्र कैद में तब्दील कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किसी अपराध को विरलतम की श्रेणी में रखते वक्त बर्बरता ही अकेला आधार नहीं हो सकती।
निचली अदालत ने अपीलकर्ता को तिहरे हत्याकांड के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी। इस अपराधी ने एक व्यक्ति को उसकी गर्भवती पत्नी और पांच साल के बेटे के साथ घर पर दोपहर के भोजन पर बुलाया था और फिर सभी की चाकू मार कर हत्या कर दी। अपीलकर्ता को संदेह था कि गुप्ता के उसकी पत्नी से संबंध थे। इसी वजह से उसने गुप्ता की हत्या कर दी थी। इसके बाद पकड़े जाने के भय से उसने गुप्ता की पत्नी और पुत्र की भी हत्या कर दी।

http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/52805-2013-10-14-04-55-36


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