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न्यूज क्लिपिंग्स् | बस्तर से गायब हो रहा है देशी थर्मस तुम्बा !

बस्तर से गायब हो रहा है देशी थर्मस तुम्बा !

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published Published on Apr 12, 2018   modified Modified on Apr 12, 2018
भानपुरी , बस्तर l बस्तर अपने प्राकृतिक संसाधनों और कुछ प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं के कारण अपने आप मे प्रसिद्ध है , बस्तर में यहां के आदिवासियों के जीवन में प्रकृति का सबसे ज्यादा योगदान रहता है। जहां आज हम प्लास्टिक, स्टील एवं अन्य धातुओं से बने रोजमर्रा की वस्तुओं का उपयोग करते है वहीं बस्तर में आज भी आदिवासी प्राकृतिक फलों , पत्तियों एवं मिटटी से बने बर्तनों का ही उपयोग करते है।

ऐसा ही प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं में नाम आता है तुम्बा का, जो हर आदिवासी के पास दिखाई पड़ता है। दैनिक उपयोग के लिए तुम्बा बेहद महत्वपूर्ण वस्तु है। बाजार जाते समय हो, या खेत में हर व्यक्ति के बाजु में तुम्बा लटका हुआ रहता है।

तुम्बे का प्रयोग पेय पदार्थ रखने के लिए ही किया जाता है। इसमेंं रखा हुआ पानी या अन्य कोई पेय पदार्थ सल्फी , छिन्दरस , पेज आदि में वातावरण का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए इसे देशी थर्मस,बस्तरिया थर्मस एवं बोरका के नाम से भी जाना जाता है यदि उसमे सुबह ठंडा पानी डाला है तो वह पानी शाम तक वैसे ही ठंडा रहता है।

उस पर तापमान का कोई फर्क नहीं पड़ता है और खाने वाले पेय को और भी स्वादिष्ट बना देता है। खासकर सोमरस पाने करने वाले हर आदिवासी का यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी है तो वह है तुंबा।

तुंबा में अधिकांशत सल्फी, छिंदरस, ताड़ी जैसे नशीले पेय पदार्थ रखे जाते है। तुंबे के प्रति आदिवासी समाज बेहद आदर भाव रखता है। माड़िया समाज की उत्पत्ति में डंडे बुरका का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी तुंबा ही था। जब धरती पर चारो तरफ जल ही जल था तब डडे बुरका तुंबे पर ही तैर रहे थे।

कैसे बनाया जाता है तुम्बा

एक बस्तरिया जानकार के अनुसार तुम्बा लौकी से बनता है। इसको बनाने के लिये सबसे गोल मटोल लौकी को चुना जाता है ज़िसका आकार लगभग सुराही की तरह हो। ज़िसमे पेट गोल एवं बडा और मुंह वाला हिस्सा लम्बा पतला गर्दन युक्त हो। यह लौकी देशी होती है। हायब्रीड लौकी से तुम्बा नहीं बन पाता है। उस लौकी में एक छोटा सा छिद्र किया जाता है फिर उसको आग में गर्म कर उसके अन्दर का सारा गुदा छिद्र से बाहर निकाल लिया जाता है।

लौकी का बस मोटा बाहरी आवरण ही शेष रहता है। आग में तपाने के कारण लौकी का बाहरी आवरण कठोर हो जाता है। उसमे दो चार दिनो तक पानी भरकर रखा जाता है ज़िससे वह अन्दर से पूरी तरह से स्वच्छ हो जाता है। यह तुंबा बनाने का यह काम सिर्फ ठंड के मौसम में किया जाता है, जिससे तुम्बा बनाते समय लौकी की फटने की संभावना कम रहती है।

तुम्बा के ऊपर चाकू या कील को गरम कर विभिन्न चित्र या ज्यामितिय आकृतियां भी बनाई जाती है। बोरका पर अधिकांशतः पक्षियोंं का ही चित्रण किया जाता है। आखेट में रूचि होने के कारण तीर धनुष की आकृति भी बनाई जाती है।

इन तुम्बों की सहायता से मुखौटे भी बनाए जाते हैं। इन मुखौटोंं का प्रयोग नाटय आदि कार्यक्रमों मे किया जाता है। तुम्बे को कलात्मक बनाने के लिए उस पर रंग बिरंगी रस्सी भी लपेटी जाती है। तुंबे से विभिन्न वाद्ययंत्र भी बनते है। तुम्बा आदिवासियों की कला के प्रति रूचि को प्रदर्शित करता है।

बदलते परिवेश में बोतलों ने लिया तुम्बा का जगह

पहले आदिवासियो के पास पानी या किसी पेय पदार्थ को रखने के लिए कोई बोतल या थर्मस नहीं होता था तब खेतो में या बाहर या जंगलो में पानी को साथ में रखने के लिए तुम्बा का ही सहारा था। अब आधुनिक मिनरल बोतलो ने तुम्बा का स्थान ले लिया है ज़िससे अब तुम्बा कम देखने को मिलता है।

पहले किसी भी साप्ताहिक हाट, मेले आदि में हर कंधे मे तुम्बा लटका हुआ दिखाई पड़ता था अब इसकी जगह प्लास्टिक के बोतलो ने ले ली है। वह दिन अब दुर नहीं जब हमें तुंबा संग्रहालयों में सजावट की वस्तु के रूप में दिखाई देगा। वर्तमान में तुम्बा के संरक्षण आवश्यकता है ,भावी की पीढ़ी को भी तुंबा बनाने एवं इसके उपयोगीता एवं महत्व की जानकारी होनी चाहिएl


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