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न्यूज क्लिपिंग्स् | बाग-बाग बौराए, मंजर-मंजर मंजरी!

बाग-बाग बौराए, मंजर-मंजर मंजरी!

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published Published on Mar 16, 2010   modified Modified on Mar 16, 2010

वाराणसी, [राकेश चतुर्वेदी]। बाग-बाग बौराए, मंजर-मंजर मंजरी। नथुनों में समाती एक मादक गंध और सपनों का तनता हुआ एक आकाश। बौराए हुए आम के दरख्तों की आत्मकथा। किसे अच्छा नहीं लगता- फलों का होना व उनका इतराना। पूर्वी उत्तर प्रदेश की माटी में इन दिनों आम की बौराई हुई गंध लोगों को मदमस्त किए हुए है। कोई ऐसा कोना नहीं है जो आम की सुगंध से सुवाषित न हो। आम की एक-एक दरख्त में ऐसे असंख्य टिकोरों का आभास है जो बागवा के सपनों का एक नया आकाश तानते हैं। सुखद बात यह है कि पूरे तीन दशक बाद बनारसी लंगड़ा ही नहीं आम की तमाम किस्में झूमकर नाचने को तैयार हैं।

बनारस की जैसे ही शहराती हद टूटती है विहंगम बनारस का देहात आखों के सामने दरख्तों के रूप में झूमने लग जाता है। दरख्त झूमते ही नहीं है अपितु अपनी आम्र की मादक गंध से भविष्य का ताना-बाना बुनते मिलते हैं। इस ताना-बाना में होती है आम के आम व गुठलियों के दाम। आइए बात करते हैं आम की और आवाम की। जहा तक आम की बात है बनारस का लंगड़ा आम यहा की अमराइयों में बेलौस इतरा रहा है।

लंगड़ा आम की बौर को देखकर लगता है कि आवाम के सपनों को भी पंख मिल जाएगा। यह तो रही आम और आवाम की बात। थोड़ा उन पर भी नजर डालें जो आम के कारोबार से जुड़े हैं।

घाटा पूरा कर देगी बागबानी

-जीवन के कई वसंत देख चुके आम के स्वाद से परिचित चिरईगाव के गौराकला निवासी व बागबानी में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले आम आदमी सुरेंद्र मौर्या ने अपने 30 साल के अनुभवों को बाटा। बताया कि बौराए आम की मौजूदा शक्ल यदि मौसम की मार से प्रभावित नहीं हुई तो अबकी आम की बागवानी सालों साल का घाटा पूरा कर देगी। सब कुछ ठीक रहा तो इस बार फलों का राजा आम लोगों को छककर खाने को मिलेगा।

फुदका व लाही से बचाएं बौर

- जिला उद्यान अधिकारी लालजी पाठक भी इस बार आम की बौर को देखकर काफी उम्मीद रखते हैं। कहते हैं कि प्रकृति की मार तथा फुदका व लाही रोग से बौर बच जाए तो आम का स्वाद आम आदमी भी चख सकेगा। इसके लिए बागबानों को बौर लगे आम के पेड़ की सिंचाई से परहेज करना होगा। इसमें जब दाने पड़ जाएं तभी सिंचाई करें।

आम की बौर को बचाने हेतु जब उसमें सरसों के दाने के बराबर टिकोरे लग जाएं तो दवा का छिड़काव करें। अच्छी पैदावार के लिए पौधों में प्लेनोकिट्स दो एमएल प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर दो-तीन बार छिड़काव करें। इससे फल टिकेंगे और पैदावार भी बढ़ेगी।

बरतें एहतियात, करें उपाय

- कृषि विशेषज्ञ देवमणि त्रिपाठी कहते हैं कि यदि आम के बागानों में कीट रोगों व दैवीय आपदाओं का प्रकोप न हुआ तो किसानों को आमदनी का अच्छा स्त्रोत मिल जाएगा। हालाकि इसके लिए अभी से ही ऐहतियात बरतें तो काफी हद तक प्रकृति की मार को भी झेला जा सकता है।

बौर को मौसम की मार से बचाने और टिकोरों को सुरक्षित रखने के लिए कारगर उपाय करने होंगे। कीट-पतंगों से बौर को सुरक्षित रखने के लिए मोनोक्त्रोटो फास या क्यूनाल फास डेढ़ से ढाई मिली दवा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। प्रभावी नियंत्रण के लिए कीट नाशक दवा का छिड़काव तीन बार किया जाना चाहिए। पहला छिड़काव जब बौर दो से तीन इंच लंबे हो जाएं तब करें। दूसरा छिड़काव पखवारे भर बाद और तीसरा जब सरसों के बराबर टिकोरे आकार लेने लगें तब करें। इस समय आम की बौर में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रकोप हो सकता है। इस रोग के लगने पर फूलों में फल नहीं लगते और बौर झड़ जाते हैं। मैनकोजेड या घुलनशील गंधक [सल्फर] दो ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से तीन बार छिड़काव करें। इसके छिड़काव का तरीका भी पहले जैसा रहेगा। किसान चाहें तो कीटनाशक-फफूंद नाशक दवाएं मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं।

आम आदमी की पहुंच में होगा आम

आम की बाबत जानकारी हासिल करने के लिए लाल बहादुर शास्त्री नवीन फल मंडी में आम के कुछ कारोबारियों से जागरण प्रतिनिधि ने संपर्क साधा। प्रगतिशील फल व्यवसायी समिति के अध्यक्ष किशन सोनकर कहते हैं कि इस बार बगीचों में 90 फीसदी आम के पेड़ों में बौर आए हैं। आधी-तूफान जैसी विपदा न आई और रोग न लगे तो 75 फीसदी तक आम की पैदावार हो सकती है। ऐसी स्थिति में अबकी आम आम आदमी की पहुंच तक होगा। वैसे इस समय मंडी में दक्षिण भारत ही नहीं मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, महारष्ट्र से आम की आवक शुरू हो गई है। मंडी में लगड़े आम की आवक सिर्फ बनारस से ही नहीं अपितु प्रतापगढ़, गढ़ी मानिकपुर, परियावा, कुंडा हरनामगंज, रायबरेली, ऊंचाहार, सुल्तानपुर, जायस, फैजाबाद, टाडा, बहराइच, बलरामपुर, गोंडा, बस्ती, पीलीभीत, शाहजहापुर, रामपुर, बरेली, मुरादाबाद, बिजनौर, सहारनपुर, देहरादून आदि जगहों से होती है। फल समिति के महामंत्री नारायण सोनकर कहते हैं कि बनारस में तो आम के छोटे-छोटे बगीचे हैं। मंडी की माग के अनुरूप बनारसी लंगडे़ की आपूर्ति नहीं हो पाती। लोकल मंडी में ही इनकी खपत हो जाती है। बड़ी मंडियों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6263246.html
 

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