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न्यूज क्लिपिंग्स् | बाजार पर वर्चस्व की जंग-- निरंकार सिंह

बाजार पर वर्चस्व की जंग-- निरंकार सिंह

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published Published on Mar 28, 2018   modified Modified on Mar 28, 2018
अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक वस्तुओं पर लगने वाले आयात कर को लेकर टकराव जारी है। अमेरिका का तर्क है कि चीनी सामानों के आयात से उसका व्यापारिक घाटा बहुत बढ़ गया है। अमेरिका ने जहां चीनी सामानों पर आयात कर बढ़ा दिया, वहीं चीन ने अमेरिका से आने वाले सामान पर आयात कर बढ़ा दिया है। दरअसल, जंग अब सिर्फ देशों की सीमाओं पर नहीं होती; वैश्वीकरण की नीतियां लागू होने के बाद से अब यह व्यापारिक मोर्चे पर भी लड़ी जा रही है। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे अब वाणिज्य, व्यापार, पूंजीनिवेश जैसे मुद्दों से भी जुड़ गए हैं। इस तरह से जंग के मैदान अब बदल गए हैं। यदि कोई देश इन सब नई वास्तविकताओं पर हावी होने में नाकाम रहता है तो उसके खुशहाल और समृद्ध बनने के सपने, सपने ही रह जाएंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्यापार शुल्क के मामले में चीन और भारत को दी गई चेतावनी को ‘व्यापार युद्ध’ के रूप में ही देखा जा सकता है। उन्होंने यह कहा है कि भारत और चीन अमेरिकी उत्पादों के आयात पर जितना टैक्स लगाएंगे, उतना ही टैक्स अमेरिका इनके उत्पादों पर भी लगाएगा। अमेरिका के निशाने पर चीन व भारत के अलावा थाईलैंड, अर्जेंटीना और ब्राजील भी हैं। ट्रम्प की नीतियों से चीन के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर हो सकता है। उधर चीन भी दुनिया के बाजार में अपने पैर तेजी से पसार रहा है। चीन और भारत के बीच कारोबारी जंग काफी पहले से चल रही है।


अमेरिका द्वारा पिछले दिनों चीन से आ रहे सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाने के जवाब में चीन ने अमेरिका से आ रहे 300 करोड़ डॉलर (करीब 20,000 करोड़ रुपए) मूल्य के सामानों पर और ज्यादा आयात शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है। इतना ही नहीं, चीन ने खुले तौर पर अमेरिका को धमकी दी है कि अगर उसके वाजिब अधिकारों और हितों को अमेरिका ने कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश की, तो वह हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेगा। अमेरिका ने चीन से आयातित 5,000 करोड़ डॉलर (तीन लाख करोड़ रुपए मूल्य से ज्यादा) के सामानों पर आयात शुल्क बढ़ा कर चीन के बराबर करने का फैसला किया। दूसरी तरफ उसने यूरोपीय संघ समेत अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, मैक्सिको और दक्षिण कोरिया को अपने आयात शुल्क के दायरे से पहली मई तक के लिए बाहर कर दिया है। इसके साथ ही उसने चीन को बौद्धिक संपदा अधिकार (आइपीआर) के मामले पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भी घसीट लिया। इससे नाराज होकर चीन ने अमेरिका से आ रहे 128 तरह के सामानों पर आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया है। इसमें पोर्क (सुअर का मांस), वाइन, सूखे मेवे, स्टील के ट्यूब्स और अन्य जरूरी सामान शामिल हैं। चीन ने कहा कि अगर दोनों देश तय समय में किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके तो पहले चरण में चीन अमेरिका से आ रहे 128 सामानों पर पंद्रह फीसद आयात शुल्क लगाएगा। उसके बाद अमेरिका द्वारा शुल्क लगाने के प्रभावों का आकलन किया जाएगा और दूसरे चरण में अमेरिकी सामानों पर पच्चीस फीसद शुल्क लगाया जाएगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए ही नहीं बल्कि अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी तेजी लाने वाली साबित हुई है। लेकिन निचले स्तर पर तमाम देशों में पुरानी तकनीक वाली छोटी-छोटी औद्योगिक-व्यापारिक इकाइयां घाटे में आ गर्इं या बंद हो गर्इं, जिसका खमियाजा स्थानीय आबादी के सबसे कमजोर हिस्से को अपने रोजगार की बरबादी के रूप में भोगना पड़ा है। एसोचैम के अनुसार, भारत अभी निर्यात से ज्यादा आयात कर रहा है। आयातित सामानों की सूची में बहुत-से नितांत जरूरी उत्पाद भी हैं। ऐसे में देश के लिए व्यापार-युद्ध की स्थिति में जवाबी कार्रवाई के लिए बहुत गुंजाइश नहीं बचती है। इसलिए देश को निर्यात बढ़ाने और अपने कारोबारी सहयोगियों के साथ ज्यादा से ज्यादा घुलने-मिलने पर फोकस करना चाहिए। दुनिया के किसी भी एक हिस्से के साथ कारोबारी रूप में बहुत ज्यादा जुड़ जाने के बदले देश को अपने बड़े कारोबारी सहयोगियों के साथ बातचीत और मेल-मिलाप का रास्ता अपनाना चाहिए। हमें द्विपक्षीय रिश्तों पर जोर देना चाहिए और विश्व व्यापार संगठन के रूप में मौजूद रास्ते का भी उसके नियमों के तहत पूरा उपयोग करना चाहिए। चालू वित्तवर्ष के अंत में भारत का आयात 450 अरब डॉलर (65 रुपए प्रति डॉलर के हिसाब से 29.25 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच जाएगा, जबकि निर्यात का आंकड़ा 300 अरब डॉलर (19.50 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंच जाएगा। आयात आंकड़े में लगभग एक-चौथाई हिस्सा अकेले कच्चे तेल और अन्य संबंधित उत्पादों का होगा। इसके अलावा प्लास्टिक और खाद जैसे जरूरी सामान हैं, जिनके लिए देश में तत्काल आपूर्ति का कोई साधन नहीं है। भारत के व्यापार घाटे में अकेले अमेरिका की हिस्सेदारी 150 अरब डॉलर की है। ऐसे में संभावित व्यापार-युद्ध की हालत में भारत को जवाब देने के अलावा अन्य विकल्प खुले रखने पड़ेंगे।

दरअसल, अपनी सुरक्षा को मजबूत बनाए रखने की शक्ति और अपनी विदेश नीति को आजाद रखने की ताकत हमें भी मिलेगी, जब हम अपनी सुरक्षा और सुरक्षा प्रणालियों को आत्मनिर्भर रखने के लिए सुरक्षा के आधार को पूरी तरह सुदृढ़ करना सीख जाएंगे। इसके लिए हमें अनेक प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में अपनी मूल क्षमताओं में काफी वृद्धि करनी पड़ेगी और वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी को नवीनतम उपकरणों से सज्जित करना पड़ेगा। लेकिन पिछले सात दशक में हमने बड़े-बड़े संस्थान, तमाम प्रयोगशालाएं और विश्वविद्यालय तो खड़े कर दिए लेकिन वहां दुनिया को बताने लायक कोई नया आविष्कार या तकनीक विकसित नहीं कर सके। हमारी सरकार दुनिया भर के देशों को भारत में पूंजीनिवेश और कारोबार के लिए आमंत्रित कर रही है। इसके साथ-साथ व्यापार के द्विपक्षीय समझौते भी हो रहे हैं। लेकिन विश्व व्यापार की कई ऐसी पेचीदगियां हैं, जिनके कारण इसका लाभ हमारे छोटे व्यापारियों और खासकर हस्तशिल्प के कारोबारियों को नहीं मिल पाता है। आज पूरी दुनिया एक बाजार बन गई है। इस बाजार पर वर्चस्व के लिए दुनिया के कई देशों के बीच ‘जंग’ चल रही है। हम इस बाजार का लाभ तभी उठा सकते हैं जब हमारे उद्यमी खासकर छोटे उद्यमी और कारीगर बाजार के नियमों से परिचित हों। नए व्यापारिक नियमों के कारण सरकार की भूमिका अब अवरोधक के बजाय सहायक की हो गई है। लेकिन हमारी नौकरशाही अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं है। इसलिए वह व्यापार और प्रकारांतर से देश के विकास में बाधक साबित हो रही है। दरअसल, व्यापार के बिना किसी भी देश के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है।

हमारी सरकार भी मानती है कि व्यापार को बढ़ा कर गरीब तबकों की दशा सुधारी जा सकती है। पर इसके लिए देश में एक ऐसा तंत्र होना जरूरी है जो लोगों की उत्पादक क्षमता या हुनर को विकसित करके उन्हें आर्थिक लाभ दिला सके। उनके हुनर वाले उत्पादों के व्यापार को बढ़ा कर ऐसा किया जा सकता है। व्यापार में करोड़ों लोगों की निर्धनता दूर करने की अपार क्षमता है। आक्सफैम के एक अध्ययन के अनुसार विकासशील देश यदि विश्व निर्यातों के अपने हिस्से में पांच फीसद की वृद्धि करें तो 350 अरब डॉलर की राशि जुटाई जा सकती है। पर व्यापार के वैश्वीकरण के साथ-साथ असमानताएं भी बढ़ी हैं। भारत जैसे देश में इसका एक बड़ा कारण घरेलू स्तर पर उपयुक्त तंत्र और नीतियों का अभाव भी है।

https://www.jansatta.com/politics/jansatta-column-politics-war-of-domination-over-the-market/614558/


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