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न्यूज क्लिपिंग्स् | बालको हादसा : मजदूरों की जान जोखिम में

बालको हादसा : मजदूरों की जान जोखिम में

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published Published on Oct 8, 2009   modified Modified on Oct 8, 2009

रायपुर। राज्य निर्माण के नौ वर्ष में बेशक छत्तीसगढ़ ने तेजी से तरक्की की है और यहां औद्योगिक विकास भी खूब हुआ है, लेकिन इन सब के बावजूद बालको हादसे ने यह साबित कर दिया है कि उद्योग सुरक्षा मापदंडों का पालन करने में कहीं न कहीं कोताही बरत रहे हैं और मजदूरों की जान जोखिम में है।

राज्य के कोरबा जिला मुख्यालय से लगे भारत एल्यूमीनियम कंपनी लिमिटेड के निर्माणाधीन विद्युत संयंत्र में काम करने वाले मजदूरों को शायद इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि सिंतबर महीने की 23 तारीख की शाम उनकी जिंदगी की आखिरी शाम होगी और इस दिवाली में उनके आने का इंतजार करते उनके परिजनों के हिस्से अब केवल इंतजार की शेष होगा।

राज्य का कोरबा शहर राज्य की ऊर्जा राजधानी के रूप में विख्यात है और यही वह शहर है, जहां से पूरा राज्य तो रोशन होता ही है साथ ही साथ यह देश के अन्य राज्यों को रोशनी उधार भी देता है। लेकिन यह शहर अब 41 परिवारों के चिराग बुझने का गवाह भी बन गया है।

बालको में बन रहे 12 सौ मेगावाट के विद्युत संयंत्र की निमार्णाधीन चिमनी गिरने के वास्तविक कारणों के बारे में पूरी तरह से जांच के बाद ही पता चल सकेगा लेकिन इस हादसे ने एक बार फिर राज्य में मजदूरों की स्थिति के बारे में लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।

यदि सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य निर्माण से लेकर अब तक पांच सौ से भी ज्यादा मजदूरों की मौत यहां के विभिन्न उद्योगों में हो चुकी है। हालात यह है कि यहां के उद्योगों में प्रतिवर्ष कम से कम दो बड़ी दुर्घटनाएं होती है। राज्य में औद्योगिक विकास की तेजी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2001 में जहां इस प्रदेश में लगभग ढाई हजार उद्योग थे अब उनकी संख्या बढ़कर साढ़े तीन हजार तक पहुंच गई है लेकिन इन उद्योगों में मजदूरों की सुरक्षा की बात करें तो उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। यहां के ज्यादातर उद्योगों में सुरक्षा मापदंडों का पालन नहीं किया जाता है।

बालको हादसे को राज्य का अब तक का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा माना जा रहा है। दरअसल यहां सुरक्षा मानकों का पालन करने में कोताही बरती गई। जहां चिमनी का निर्माण किया जा रहा था वहीं से लगकर कैंटीन और अन्य कार्यालय बनाए गए, जिससे बारिश के दौरान मजदूर इसमें चले गए तथा चिमनी इसी के उूपर गिर गई और मरने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई।

राज्य की औद्योगिक दुर्घटनाओं में बढ़ोतरी से नाराज यहां के मजदूर संगठन इसके लिए सुरक्षा मानकों के पालन में लापरवाही और श्रम विभाग के ढीले रवैए को इसका कारण मानते हैं।

भारतीय मजदूर संगठन की छत्तीसगढ़ राज्य समिति के महासचिव बी सान्याल कहते हैं कि उद्योगपतियों का ध्यान केवल पैसा कमाने में लगा हुआ है तथा उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा की वह अनदेखी करते हैं।

सान्याल कहते हैं कि बालको दुर्घटना घटिया निर्माण सामग्री तथा निम्न स्तरीय निर्माण तकनीक के कारण हुई। यह दुर्घटना स्टारलाईट कंपनी तथा जीडीसीएल कंपनी की आपराधिक लापरवाही का परिणाम हैख् जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग मारे गए। सान्याल ने बताया कि बालको की सीटू यूनियन ने पहले ही प्रबंधन को निर्माणाधीन चिमनी की घटिया सामग्री तथा अन्य त्रुटियों के विषय में अवगत करा दिया था। लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया और निर्माण कार्य जारी रहा। वहीं सुरक्षा मानको को नजरअंदाज करते हुए तीव्र गति से निर्माण के लिए दबाव डालने में स्टारलाईट प्रबंधन भी बराबर का जिम्मेदार है।

सान्याल कहते हैं कि इस घटना में ज्यादा संख्या में मजदूरों की मृत्यु हुई है लेकिन प्रबंधन उनकी संख्या कम बता रहा है। इस मामले में जिला प्रशासन की भूमिका भी संदिग्ध है।

इधर राज्य का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस राज्य में श्रमिकों की सुरक्षा की अनदेखी के लिए राज्य राशन को दोषी मानता है तथा बालको दुर्घटना के लिए तो उसने राज्य शासन की भूमिका पर ही सवाल खड़े किए हैं। विपक्ष ने घटना की सीबीआई से जांच की मांग की है।

विधानसभा में विपक्ष के नेता रवींद्र चौबे कहते हैं कि राज्य के विभिन्न उद्योगों में सैकड़ों की संख्या में मजदूरों की मौत हो रही है लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सरकार अभी तक यहां के उद्योगों में सुरक्षा मापदंडों का कड़ाई से पालन भी नहीं करवा पाई है। सरकार के इसी रवैए का परिणाम है कि बालको जैसा गंभीर हादसा हुआ।

चौबे कहते हैं कि उनकी पार्टी के विधायकों और अन्य नेताओं ने बालको का दौरा किया था और पाया था कि चिमनी के आसपास लोगों की उपस्थिति या जमाव था तथा वहां पर कई निर्माण साथ साथ चल रहे थे। 275 फीट ऊंची चिमनी के निर्माण के समय इस बात का ध्यान नहीं रखा गया।

चौबे कहते हैं कि राज्य शासन ने इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश दिए हैं लेकिन इस जांच से सच सामने आएगा संदेह है इसलिए इस मामले को सीबीआई के हवाले कर देना चाहिए।विपक्ष के नेताओं ने इस घटना के बाद शासन की भूमिका पर सवाल उठाया और कहा कि सरकार को बताना चाहिए कि औद्योगिक सुरक्षा के लिए सरकार के विभागों के अधिकारियों ने कब कब चिमनी निर्माण की प्रगति और सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया और उनका निष्कर्ष क्या रहा। सरकार को यह भी बताना चाहिए कि निरीक्षक अधिकारियों ने निर्माण कार्य में गुणवत्ता के स्तरहीन कार्य के खिलाफ कभी कार्रवाई की या नहीं।

राज्य में मजदूरों की स्थिति और उद्योगों में लगातार दुर्घटनाओं के सवाल पर राज्य के श्रम मंत्री चंद्रशेखर साहू कहते हैं कि उद्योगों में दुर्घटनाएं कम हों, इसके लिए राज्य सरकार का श्रम विभाग समय समय पर कार्रवाई करता है लेकिन यह भी सच है कि विभाग में अधिकारी और अमले की कमी के कारण कारखानों में लगातार निरीक्षण नहीं हो पा रहा है।

साहू बताते हैं कि श्रम विभाग में जल्द ही अधिकारियों की कमी दूर की जाएगी तथा कोशिश की जाएगी कि सभी कारखानों में लगातार निरीक्षण हो।

वे कहते हैं कि बालको दुर्घटना बड़ी घटना है और ऐसा लग रहा है कि कहीं न कहीं श्रम विभाग के अधिकारियों से भी चूक हुई और इसीलिए इस मामले में जवाबदेही तय करते हुए कोरबा में पदस्थ सहायक श्रम आयुक्त को निलंबित कर दिया गया है।

साहू कहते हैं कि राज्य शासन ने इस हादसे को गंभीरता से लिया है और यही कारण है कि हादसे के तुरंत बाद राज्य शासन ने इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए।

श्रम मंत्री कहते है कि राज्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं तथा सुरक्षा मापदंड़ों की अनदेखी करने वाले उद्योगों के खिलाफ राज्य सरकार कड़ी कार्रवाई करने जा रही है।


दैनिक जागरण, १२ अक्तूबर, २००९
 

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