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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिना मांगे नहीं मिलेगा अधिकार : महुआ मांजी

बिना मांगे नहीं मिलेगा अधिकार : महुआ मांजी

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published Published on Mar 3, 2014   modified Modified on Mar 3, 2014

महुआ मांजी देश में एक साहित्यकार के रूप में जानी-पहचानी जाती हैं. इन्होंने अपनी लेखनी से न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी शोहरत हासिल की है. गत वर्ष नवंबर महीने में इन्हें राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष का पदभार सौंपा गया. पदभार ग्रहण करते ही इनकी सक्रियता नजर आने लगी. महिला हित की रक्षा के लिए इन्होंने कई स्तर पर प्रयास शुरू कर दिया. साथ ही इसके लिए इन्होंने प्रशासन से भी सहयोग मांगा है. आने वाले दिनों में महिलाओं को समाज की स्वतंत्र, आत्मनिर्भर इकाई के रूप में स्थापित करने के लिए महुआ मांजी क्या करना चाहती हैं, यह जानने के लिए पंचायतनामा के लिए रजनीश आनंद ने उनसे विस्तृत बातचीत की प्रस्तुत है प्रमुख अंश :

देश भर में महिला सशक्तीकरण की गूंज के बीच महिला दिवस का आयोजन कितना  सार्थक है?
मेरी समझ से साल के पूरे दिन महिला-पुरुषों के लिए होते हैं और उन दोनों का महत्व भी समान होता है. लेकिन महिला दिवस के आयोजन की अगर जरूरत पड़ रही है, तो हमें यह समझना होगा कि आखिर ऐसा क्यों है? आज भी समाज में महिलाएं अपने हक से वंचित हैं. उन्हें उनका अधिकार नहीं मिल पाया है. लेकिन आज की परिस्थिति में हक मांगने से नहीं मिलता, बल्कि उसे छिनना पड़ता है. इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठायें. आज विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने अपना लोहा मनवाया है. ऐसी महिलाओं को हक देने में समाज कोताही नहीं करता है. यह अलग बात है कि उनका विरोध भी होता है, लेकिन उपेक्षा नहीं की जा सकती. इसलिए जिस दिन महिलाओं को उनका हक बिना मांगे मिलने लगेगा, संभवत: उस दिन महिला दिवस की जरूरत नहीं होगी, लेकिन अभी तो महिला दिवस के आयोजन का बहुत महत्व है.

आयोग की अध्यक्ष के तौर पर आप महिलाओं को सम्मानित जीवन दिलाने के लिए क्या कर रही हैं?
महिलाओं को सम्मानित जीवन तभी मिलेगा, जब वे खुद इसके लिए प्रयास करेंगी और जागरूक होंगी. जबतक महिलाएं खुद आगे आकर अपने अधिकारों की मांग नहीं करेंगी, उन्हें अधिकार नहीं मिलेगा. आयोग यह प्रयास कर रहा है कि महिलाएं जागरूक हों और अपने अधिकारों के लिए लड़ें. शिक्षा, जागरूकता और आर्थिक स्वावलंबन से महिलाओं को समाज में सम्मानित जीवन मिलेगा. महिलाओं को सशक्त करने के लिए देश में कई कानून हैं, जिनके जरिये महिलाएं अपना जीवन सुधार सकती हैं. हम बस उन्हीं की जानकारी दे रहे हैं.

महिला सुरक्षा सवालों के घेरे में है. स्थिति में सुधार के लिए आप सरकार पर कैसे दबाव बना रहीं हैं?
हमारे समाज में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है. रात को महिलाएं घर से बाहर निकलने में कई बार सोचती हैं. इसलिए पदभार ग्रहण करते ही मैंने वरीय प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक की. एसएसपी और सिटी एसपी ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमें सहयोग देने का आश्वासन दिया है. आयोग ने प्रशासन से कहा है कि पुलिस जीप और शक्ति मोबाइल के जरिये पेट्रोलिंग का जो काम किया जाता है, वह पर्याप्त नहीं है. इनके जरिये गली-कूचों में पेट्रोलिंग नहीं हो पाती है. जबकि महिलाएं ऐसे ही इलाकों में रहती हैं. इसलिए हमने गली-मुहल्लों में पेट्रोलिंग के लिए महिला पुलिस कर्मियों की व्यवस्था करने की मांग की है. अगर यह योजना क्रियान्वित हो गयी, तो दो स्कूटी सवार महिला पुलिसकर्मी और दो बाइक सवार पुलिसकर्मी पेट्रोलिंग करेंगे, ताकि महिलाएं सुरक्षित महसूस करें. इसके अलावा हमने चौक-चौराहे व ऑटो-बस स्टैंड पर सीसीटीवी कैमरा लगाने की मांग की है. यह सारी योजनाएं लागू की जायेंगी, लेकिन अभी प्रक्रि या आरंभ नहीं हुई है.

महिलाएं डायन-बिसाही के आरोप में मारी जाती हैं. इन हत्याओं को रोकने के लिए आप क्या कर रही हैं?
ये मामले झारखंड के ग्रामीण इलाकों में आम हैं. इन्हें रोकने के लिए हमने यह योजना बनायी है कि हम ग्रामीण इलाकों में जाकर कोर्ट लगायेंगे. प्रशासन भी साथ होगा. हम यह कोशिश कर रहे हैं कि उस इलाके में कार्यरत एनजीओ और एक्टिविस्ट को भी अपने साथ जोड़ें, ताकि वे हमें इलाके में हो रही घटनाओं की जानकारी दें और पीड़ितों को हमारे पास लायें. हम जब गांव जाकर कोर्ट लगायेंगे, तो वहां ग्रामीण भी आयेंगे और ऐसी स्थिति में हम जागरूकता का भी काम कर सकते हैं. साथ ही पीड़ित महिलाओं को न्याय भी जल्दी दिला सकेंगे. इसके साथ ही हम जागरूकता अभियान चलाने के लिए डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाना चाहते हैं. इसके लिए हमने समाज कल्याण विभाग से सहयोग मांगा है, फंड उपलब्ध होगा तो जागरूकता कार्यक्रम ज्यादा चलाये जा सकेंगे.

महिलाओं में भी दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाएं ज्यादा शोषित-पीड़ित हैं, क्या आपने उनके कल्याण के लिए कुछ अलग से प्रयास किये हैं?
हमारा लक्ष्य महिलाओं को उनका हक दिलाना है, हम उन्हें जाति-धर्म के आधार पर बांट कर नहीं देखते हैं. हालांकि हमारा प्रयास यह है कि हम हर वर्ग की महिलाओं को शिक्षित, जागरूक और आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनायें. अगर एक महिला शिक्षित, जागरूक और आर्थिक रूप से सशक्त होगी, तो उसे समाज अनदेखा नहीं कर सकता है. इसलिए हम यह कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें रोजगार से जोड़ें. हमने ग्रामीण इलाकों में कार्यरत स्वयं सहायता समूहों के साथ भी बैठक की है. लेकिन हम फंड की कमी के कारण कुछ नहीं कर पा रहे हैं. अगर हम महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की बात करते हैं, तो हमें उनकी सहायता के लिए फंड चाहिए जो हमारे पास नहीं है, हालांकिहम इसके लिए प्रयासरत हैं.

पलायन झारखंड की गंभीर समस्या है. इससे निबटने के लिए आयोग क्या कर रहा है?
देखिए, झारखंड में पलायन दो तरह से होता है. एक तो मानव तस्करी और दूसरा यह कि जब खेती का काम नहीं रहता है, तो रोजगार के लिए लोग दूसरे प्रदेशों में जाते हैं और जब खेती का काम शुरू हो जाता है, तो वे वापस आ जाते हैं. दूसरे तरह के पलायन से कोई नुकसान नहीं है. हां, जो पलायन मानव तस्करी के कारण होता है, वह खतरनाक है. इसे रोकने के लिए हम कोशिश कर रहे हैं. हमने यह मांग की है कि छुड़ा कर लायी गयी महिलाओं को रखने के लिए हर जिले में आश्रय गृह बनाये जायें, साथ ही उन्हें रोजगार से जोड़ने की कोशिश की जाये. पलायन के मूल में गरीबी ही होती है. अगर हम गरीबों को जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध करायेंगे, तो संभवत: पलायन की समस्या से लड़ा जा सकता है.

क्या बलात्कार निरोधक कानून महिलाओं को सुरक्षा मुहैया कराने के लिए पर्याप्त है? या फिर इसके लिए कुछ और प्रयास की जरूरत है?
समाज में अगर बलात्कार जैसे अपराध होते हैं, तो उसका मूल कारण मूल्यों का पतन है. आज हमारे समाज में एकल परिवार की प्रधानता है. माता-पिता काम पर जाते हैं. परिवार में बड़े-बुजुर्गो के न होने से रिश्तों की मर्यादा घटी है. बच्चे इंटरनेट और फिल्मों के अधीन होकर नैतिक उच्छृंखलता के शिकार हो गये हैं. महिलाएं अब घर तक ही सीमित नहीं हैं. वे कामकाज के सिलसिले में बाहर जाती हैं. ऐसे में विकृत मानसिकता वालों की चपेट में उनके आने का खतरा भी बढ़ जाता है. इसके लिए पूरे समाज को सोचने की जरूरत है. सामूहिक जिम्मेदारी से ही ऐसे अपराधों को रोका जा सकता है, केवल कानून और पुलिस प्रशासन इन अपराधों पर अंकुश नहीं कस सकता.

आपके सामने आने वाले विवाद किस तरह के होते हैं? क्या आयोग उनको निबटाने में सक्षम है?
घरेलू विवाद से संबंधित मामले सबसे ज्यादा आते हैं. कई मामले पति-पत्नी के झगड़े को होते हैं, तो कई पारिवारिक संपत्ति विवाद से संबंधित. इन दिनों जिस तरह के मामले में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी देखी गयी है, वे हैं ब्लैकमेलिंग के. शादी का प्रलोभन देकर संबंध बनाने की आड़ में इस तरह के कई मामले आ रहे हैं. हम इन मामलों का आपके सामने खुलासा नहीं कर सकते हैं, लेकिन मैं यह बता सकती हूं कि हम विवादों का निबटारा सकारात्मक तरीके से करने में सफल रहे हैं.

अध्यक्ष के तौर पर क्या आप अपने कार्यो से संतुष्ट हैं? या आप कुछ ऐसा करना चाहती हैं, जिसे एक महिला होने के नाते आप कर नहीं पा रही हैं?
मैंने नवंबर माह में ही अपना पदभार ग्रहण किया है. इसलिए मुङो कार्य करते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है, फिर भी मैंने ज्यादा से ज्यादा काम करने का प्रयास किया है. इस अल्पावधि के कार्यकाल का अगर मैं मूल्यांकन करूं, तो मैं संतुष्ट हूं. एक महिला होने के नाते काम करने में मुङो कोई परेशानी नहीं हुई. मैं जिन्हें भी समन देकर बुलाती हूं, वे आते हैं और पूरा सहयोग करते हैं.

महिला के तौर पर आप खुद को आत्मनिर्भर मानती हैं? या आपको भी जीवन में समझौते करने पड़े?
एक महिला के तौर पर मैंने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया है. चाहे वे पारिवारिक जिम्मेदारियां थीं, या फिर एक लेखिका के तौर पर.  जहां तक बात विरोध की है, तो अगर आप अपने कार्यो के प्रति ईमानदार हैं, तो फिर विरोधियों को खुद ही मुंह की खानी पड़ती है. मैं इस बात का ध्यान रखती हूं कि कर्तव्यों के निष्पादन में मुझसे कोई त्रृटि नहीं हो. साथ ही मैं इस कहावत को भी साथ लेकर चलती हूं कि- मेरी दोस्तों की ईष्र्या या विरोध ही मेरी सफलता का पैमाना है.

एक सशक्त और आत्मनिर्भर महिला को आप कैसे परिभाषित करेंगे?
मैं यह मानती हूं कि एक सशक्त महिला वही है, जो अपने कार्यो को बिना डरे, पूरी ईमानदारी से पूरा करे. विरोधियों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है. लेकिन परिवार को साथ लेकर चलना भी बड़ी जिम्मेदारी है. समाज के ढांचे में परिवार की अहम भूमिका है, इसलिए परिवार की अवहेलना करके कोई भी महिला सशक्त नहीं हो सकती, इस बात का ध्यान भी हमें रखना होगा.

महुआ मांजी

अध्यक्ष, झारखंड राज्य

महिला आयोग


http://www.prabhatkhabar.com/news/94509-story.html


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