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न्यूज क्लिपिंग्स् | बिहार: ज़मीन के मालिक तो बन गए, लेकिन ज़मीन न मिली-- उमेश कुमार राय

बिहार: ज़मीन के मालिक तो बन गए, लेकिन ज़मीन न मिली-- उमेश कुमार राय

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published Published on Sep 25, 2019   modified Modified on Sep 25, 2019
48 वर्षीय अमर राम को 17 साल पहले साल 2002 में बिहार सरकार ने 91 डिसमिल जमीन का पर्चा दिया था. पीढ़ियों से भूमिहीन अमर राम के हाथ में जब एक ए-फोर साइज का कागज का टुकड़ा आया, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन ये खुशी काफूर साबित होगी, इसका इल्म उन्हें बिल्कुल भी न था. अमर राम मुश्किल से दो साल ही उस 91 डिसमिल जमीन के मालिक रह पाए.


अमर राम कहते हैं, ‘सरकार के कर्मचारी हमारे साथ गए थे और जमीन का मालिकाना हक हमें दिया था. दो साल ही बीते थे कि एक दिन भूधारी (भूमि चकबंदी से पहले जमीन का मालिक) के गुर्गे खेत में पहुंचे और फसल समेत खेत पर कब्जा जमा लिया.'


अमर राम सरकारी जमीन पर रह रहे थे. 9 साल पहले यानी वर्ष 2010 में किसी तरह एक कट्टा जमीन खरीद कर उस पर घर बनाया है. वही एक कट्टा जमीन उनकी मिल्कियत है.


वह पश्चिमी चम्पारण के रामनगर प्रखंड के बरगजवा गांव में रहते हैं. जब हम चम्पारण का जिक्र करते हैं, तो हमें महात्मा गांधी याद आते हैं. चम्पारण ही वो जगह है, जहां से महात्मा गांधी ने सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया था, जिसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है. ये प्रयोग सफल भी हुआ था और यहां के किसानों को नील की खेती से मुक्ति मिली थी.


बेतिया शहर की तीनमुहानी पर कत्थई रंग की बापू की आदमकद मूर्ति चम्पारण के ऐतिहासिक महत्व की मुनादी करती है. मगर विडंबना है कि इसी चम्पारण में अमर राम भी हैं, जो सरकारी फाइलों में तो 17 साल से जमीन के मालिक हैं, लेकिन असल में उनको जमीन मिली ही नहीं.

द वायर हिन्दी पर प्रकाशित इस कथा को विस्तार से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 



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