Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | बुरी राजनीति की महामारी के चपेट में क्यों है उत्तर प्रदेश?

बुरी राजनीति की महामारी के चपेट में क्यों है उत्तर प्रदेश?

Share this article Share this article
published Published on Apr 29, 2014   modified Modified on Apr 29, 2014

अपनी चुनावी यात्र के दौरान सुप्रिया शर्मा ने महसूस किया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के मतदाता आज भी जाति, समुदाय और धर्म से अलग कुछ भी सोचने को तैयार नहीं हैं, वे भी नहीं जिनके बच्चे गंभीर रूप से बीमार हैं. जाति के प्रति उनका आग्रह बहुत कुछ कहता है.

पिछले  हफ्ते जब मैंने महामारी वार्ड संख्या 12 का दौरा किया था तो वहां का माहौल दूसरे दिनों के मुकाबले बेहतर था. वहां की हेड नर्स ने मुङो रजिस्टर दिखा कर कहा, एइएस के सिर्फ छह मामले हैं. एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम(एइएस) एक तेज बुखार और मस्तिष्क में सूजन उत्पन्न करने वाली बीमारी है और यह हर साल मानसून पूर्वी उत्तर प्रदेश में बच्चों के दिमाग पर सुन्न करने वाला मौत का निशान छोड़ जाती है. पिछले साल इसकी वजह से 550 से अधिक मौतें दर्ज की गयीं. अगर यह आंकड़ा भयावह लगता है तो जान लें, 2005 का रिकॉर्ड और भी बदतर था. उस साल 1,344 जानें गयी थीं.

बच्चों के इस पुराने हत्यारे का मुकाबला करने के लिए पूरे क्षेत्र में एक ही बड़ा सरकारी अस्पताल है. बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज का नेहरू अस्पताल. आसपास और दूर के गांवों से, कई परिवार अपने बीमार बच्चे, बिछावन और गैस स्टोव के साथ यहां पहुंचते हैं. बच्चों को महामारी वाले वार्ड 12 में जमा कर दिया जाता है और माता-पिता बाहर बरामदे पर मक्खियों से भरे गलियारों में पड़े रहते हैं. वैसे लोग खुद को भाग्यशाली मानते हैं जिन्हें बताया जाता है कि उनके बच्चों को इन्सेफेलाइटिस नहीं है, उन्हें टाइफाइड, दस्त या वायरल बुखार जैसी छोटी-मोटी बीमारी हुई है. दूसरे लोग कई दिनों तक तनावपूर्ण स्थितियों का मुकाबला करते हैं और यह सब तब जाकर खत्म होता है जब उनका बच्च अंतत: दम तोड़ देता है.

गंभीर रूप से बीमार बच्चों को परेशान नहीं किया जाये यह सोचती हुई मैं वार्ड के सेक्शन बी की तरफ चली गयी, नर्स ने कहा था कि उस तरफ के सभी बच्चे इन्सेफेलाइटिस से मुक्त हैं. दो वर्षीय सत्यम अपनी मां के साथ खेल रहा था. उसकी मां ने कहा, हमलोग पिछले 11 दिनों से यहां है, वैसे डॉक्टर हमें तीन से चार दिनों में छोड़ सकते हैं.

जिस रोज यह बीमार पड़ा था, आप उसे कहां ले गए थे? - मैंने उनसे पूछा.

डॉक्टर की दुकान पर- उन्होंने जवाब दिया.

डॉक्टर की प्राइवेट क्लीनिक के लिए दुकान एक उपयुक्त शब्द भले नहीं है, मगर वे महंगी फीस चार्ज करते हैं, भले ही वे योग्य हों या नहीं.

आपके गांव में सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र है?- मैंने सत्यम की मां से पूछा.

है .. लेकिन ठीक नहीं है.

भारत के ज्यादातर राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति जजर्र है लेकिन यूपी में तो सबसे खराब है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की 2007 की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां 59 फीसदी स्वास्थ्य उपकेंद्रों में जलापूर्ति की व्यवस्था नहीं है, 75 फीसदी में बिजली नहीं है. राज्य में डॉक्टरों के 16283 स्वीकृत पदों में से 5500 खाली पड़े हैं, 1,400 डॉक्टर प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे हैं और 600 डॉक्टर तो गायब हैं.

2005 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा शुरू की गयी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की दलदल में फंसी रही और कोई बदलाव कर पाने में अक्षम साबित हुई. 2011 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के जरिये उत्तर प्रदेश में व्यय किये गये 5754 करोड़ रुपयों का कोई हिसाब नहीं मिल पाया है. स्वीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्र कभी अस्तित्व में आये ही नहीं और मौजूदा केन्द्रों का इस्तेमाल आलू स्टोर करने के लिए किया जाता रहा.

भारत में दूसरे बड़े घोटालों की तरह, उत्तर प्रदेश के एनआरएचएम रैकेट का संबंध भी बड़े राजनेताओं और नौकरशाहों से जुड़ता है. जिस दिन मैं गोरखपुर पहुंची, उस दिन स्थानीय अखबारों में एक पूर्व बहुजन समाज पार्टी विधायक राम प्रसाद जायसवाल की संपत्ति जब्ती की खबर छपी थी, जो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाले के एक अभियुक्त हैं.

क्या इसका असर चुनाव पर भी पड़ेगा, मैंने सत्यम के पिता से पूछा.

नहीं, बिल्कुल नहीं. उन्होंने कहा, गोरखपुर की राजनीति हिन्दू-मुस्लिम सवालों के इर्द-गिर्द घूमती है. बाबाजी तीन बार से जीत रहे हैं. इस बार भी उन्हीं की जीत होगी.

बाबाजी यानी योगी आदित्यनाथ, गोरखपुर के वर्तमान सांसद, एक स्थानीय मंदिर के प्रमुख और उग्र हिंदुत्ववादी नेता है.

उन्होंने पिछले 15 सालों में कुछ नहीं किया है लेकिन वे ऐसा माहौल बना देते हैं कि अगर वे हार गये तो यह हिंदुओं का अपमान होगा. सत्यम के पिता बताते हैं, लोकसभा चुनाव हिंदू-मुसलिम की लाइन पर लड़े जाते हैं, जबकि राज्य के चुनाव जात-पात के आधार पर.

लगभग 30 साल की उम्र के सत्यम के पिता खुद को विद्यार्थी कहते हैं, हालांकि उनका किसी भी कोर्स में दाखिला नहीं है. उत्तर प्रदेश में छात्र से मतलब उन लोगों से भी है जो सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करते रहते हैं. घर पर जमीन है, मगर सत्यम के पिता खेतों पर काम करना नहीं चाहते थे. इसलिए उन्होंने नेट की दुकान खोल ली है. उन लोगों के लिए नहीं जो फेसबुक पर समय बर्बाद करते हैं. वे अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहते हैं, यह दो कंप्यूटरों की दुकान है जहां लोग सरकारी नौकरियों के लिए फॉर्म डाउनलोड करने और जमा करने आते हैं. उन्होंने भी नौकरी के लिए आवेदन किया था जब राज्य सरकार 72,000 के करीब शिक्षकों की रिक्तियां निकाली थीं. लेकिन भर्ती प्रक्रि या मुकदमेबाजी में फंस गयी. जब मायावती की सरकार थी तो भर्तियां टीइटी के मेरिट के हिसाब से होती थीं. टीइटी यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा. लेकिन अखिलेश की सरकार आयी तो इन्होंने बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट को मेरिट का आधार बना दिया और कुछ लोग इस फैसले को चुनौती देने के लिए अदालत की शरण में चले गये..

आपके हिसाब से क्या ठीक है - टीइटी या स्कूल परीक्षा का मेरिट?

टीइटी, उन्होंने कहा.

        क्यों?

यूपी स्कूल में परीक्षा में बड़े पैमाने पर चीटिंग होती है. लेकिन मैंने जब हाई स्कूल की परीक्षा दी थी तो कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे. उस समय प्रशासन बहुत सख्त था. जरा भी इधर-उधर नहीं देख सकते थे. दो छात्र ही परीक्षा पास कर पाये. मुलायम सिंह के समय में उल्टा हो गया, जो लोग चीटिंग करके पास हुए उन्हें ही मेरिट सूची में जगह मिल गयी.

वे समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की तीखी आलोचना कर रहे थे, मगर जब मैंने पूछा कि वे किसे वोट देंगे तो उन्होंने सपा का नाम लिया और जोर देकर कहा, चाहे जीते, चाहे हारे. उनकी राजनीतिक पक्षधरता की वजह जानने के लिए भटकने की जरूरत नहीं थी. उनका नाम विपिन कुमार यादव ही सबकुछ जाहिर कर रहा था.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को यादव वोट के स्वाभाविक अधिकारी के रूप में देखा जाता है. वहीं मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी को दलितों के वोट मिलते ही मिलते हैं.

आप युवा और शिक्षित हैं, फिर भी आप जाति के आधार पर मतदान क्यों करते हैं?- मैंने विपिन पूछा.

आपको कैसे समझायें, उन्होंने कहा. अब अगर बसपा के लोग मुलायम सिंह को वोट दे दें तो भी कोई नहीं मानेगा. अगर मैं भाजपा को वोट दे देता  तो इस बात पर भाजपा के लोग ही विश्वास नहीं करेंगे.


http://www.prabhatkhabar.com/news/109839-story.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close