Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | बुलेट ट्रेन का सपना और हादसों की रेल - अरविंद सिंह

बुलेट ट्रेन का सपना और हादसों की रेल - अरविंद सिंह

Share this article Share this article
published Published on Nov 22, 2016   modified Modified on Nov 22, 2016
कानपुर देहात में इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन की भयानक दुर्घटना ने पूरे देश को शोकाकुल कर दिया। यह देश के सबसे बड़े रेल हादसों में एक है। जब भारतीय रेल गति और प्रगति के नारे के साथ बुलेट ट्रेन की तैयारी कर रही हो और रेल बजट को आम बजट में समाहित कर लंबी छलांग की परिकल्पना की जा रही हो, ऐसे दौर में हुआ यह हादसा साबित करता है कि देश में आवागमन की यह प्रमुख लाइफ-लाइन किस तरह कमजोरियों की शिकार है। हाल में रेल मंत्रालय ने दावा किया था कि वह शून्य दुर्घटना मिशन की ओर अग्रसर है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु भी कई बार यह दावा कर चुके हैं कि भारतीय रेल का संरक्षा रिकार्ड बेहतर बनकर यूरोपीय देशों के बराबर हो गया है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है।

अजीब संयोग है कि यह रेल हादसा तब हुआ है, जब रेलों की बेहतरी के लिए तीन दिन के सूरजकुंड मंथन शिविर का आखिरी दिन था। पिछले दो दिनों में इंदौर-पटना एक्सप्रेस समेत तीन गाड़ियां पटरी से उतर चुकी हैं, जिनमें से एक मालगाड़ी थी। यह सही है कि 1960-61 से लेकर अब तक रेल दुर्घटनाओं में 80 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है, पर रेलगाडियों का पटरी से उतरना गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। रेल पटरियों के ढीले पड़ जाने से समय-पालन प्रभावित होता है और दुर्घटनाओं की आशंका भी बन जाती है। वैसे तो पटरियों की सघन जांच और दूसरे कई उपायों के साथ मशीनीकृत रखरखाव का दावा किया जाता है, लेकिन अगर भारतीय रेल के एक व्यस्ततम गलियारे, जिस पर भारीभरकम रकम खर्च होती है, वहां भी ट्रेन पटरी से उतर रही है तो यह बेहद चिंतनीय है। इसी खंड पर राजधानी एक्सप्रेस समेत कई रेल दुर्घटनाएं घट चुकी हैं।

जब आधारभूत ढांचे के विस्तार के लिए रेलवे 2016-17 में 1.21 लाख करोड़ व 2017-18 में दो लाख करोड़ रुपए से अधिक का पूंजी निवेश करने जा रही हो तो संरक्षा की तरफ खास ध्यान न देना चिंता का विषय है। पांच सालों में 8.56 लाख करोड़ की राशि रेलवे के क्षमता विकास में लगाना सराहनीय बात होगी, बशर्ते सुरक्षा और संरक्षा की गति भी तेज दिखे। भारतीय रेल आज विश्व का सबसे बड़ा परिवहन तंत्र है। अपने 8000 से अधिक रेलवे स्टेशनों से यह रोज 20,000 रेलगाड़ियां चला रहा है। यह रोज ढाई करोड़ से मुसाफिरों को सफर कराने के साथ तीस लाख टन माल ढोता है। इसका 65,000 किमी लंबा नेटवर्क पृथ्वी की परिधि के करीब डेढ़ गुने से अधिक है। लेकिन दूसरी तस्वीर यह है कि लगातार दबाव के बोझ से रेल प्रणाली चरमराती जा रही है।

भारतीय रेल ने 1995 में बीती सदी के सबसे भयानक फिरोजाबाद रेल हादसे के बाद कई उपाय किए। संरक्षा के लिए सर्वाधिक काम अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में नीतीश कुमार के रेल मंत्री रहते 2001 में सृजित हुई 17 हजार करोड़ रुपए की संरक्षा निधि से हुआ। हाल के सालों में टक्कररोधी उपकरणों की स्थापना, ट्रेन प्रोटेक्शन वॉर्निंग सिस्टम, ट्रेन मैनेजमेंट सिस्टम, सिग्नलिंग प्रणाली का आधुनिकीकरण, संचार प्रणाली में सुधार किया गया, लेकिन यह सब छोटे-छोटे खंडों तक सीमित हैं, जबकि जरूरत पूरी प्रणाली की ओवरहालिंग की है। रेल मंत्रालय ने बीते साल शून्य दुर्घटना मिशन के तहत एक लाख करोड़ रुपए की संरक्षा निधि के लिए वित्त मंत्रालय से मांग की है। इसमें से कुछ तात्कालिक कामों के तहत 40,000 करोड़ रुपए का व्यय मानव-रहित समपारों पर, पांच हजार करोड़ रुपए पुराने पुलों की मरम्मत व 40,000 करोड़ रुपए रेल पथ नवीकरण के लिए परिकल्पित किया गया है। लेकिन इसे जमीन पर उतरने में अभी समय लगेगा।

हकीकत यह है कि रेलवे में सुरक्षा और संरक्षा आज भी बड़ी चुनौती है। खराब ट्रैक, असुरक्षित डिब्बे व वर्षों पुराने रेलवे पुलों के साथ रेलवे संपूर्ण सुरक्षित यात्रा का दावा नहीं कर सकती। कई जगह रेल परिसरों, पटरियों तथा रेलगाड़ियों को खतरों से जूझना पड़ रहा है। ज्यादातर ट्रेनें बिना सुरक्षा प्रहरियों के चलती हैं। यात्रियों के खिलाफ आपराधिक घटनाओं में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

रेलवे के आधुनिकीकरण के साथ कई कामों की दरकार है। सैम पित्रोदा कमेटी ने पांच सालों में 19000 किमी रेल लाइनों के नवीनीकरण और 11,250 पुलों को आधुनिक बनाने को कहा था। वहीं काकोदकर कमेटी ने रेलवे संरक्षा प्राधिकरण बनाने के साथ जनशक्ति के उचित प्रबंधन, कलपुर्जों की कमी दूर करने, रोलिंग स्टॉक के आधुनिकीकरण पर जोर दिया था। लेकिन बाकी समितियों की रिपोर्टों की तरह इनकी सिफारिशें भी धूल फांक रही हैं। सुरेश प्रभु ने कुछ और कमेटियां बना दी हैं।

एक और चिंताजनक पक्ष रेल संचालन का दबाव बढ़ने के बाद भी रेल कर्मियों की संख्या घटना है। 1991 में 18.7 लाख रेल कर्मचारी थे, जो अब घटकर 13 लाख रह गए हैं। इस बीच में रेलगाड़ियां करीब दोगुनी हो गई हैं। संरक्षा श्रेणी के करीब डेढ़ लाख पद खाली पड़े हैं। इसके चलते काफी संख्या में लोको पायलटों को 10 से 14 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ रही है। रेल पटरियों की देखरेख करने वाले गैंगमेनों की भी काफी कमी है।

रेलवे के सात उच्च घनत्व वाले मार्गों दिल्ली-हावड़ा, दिल्ली-मुंबई, मुंबई-हावड़ा, हावड़ा-चेन्न्ई, मुंबई-चेन्न्ई, दिल्ली-गुवाहाटी और दिन्न्इ-चेन्न्ई के 212 रेल खंडों में से 141 खंडों पर भारी दबाव है। इन खंडों पर क्षमता से काफी अधिक रेलगाड़ियां दौड़ रही हैं। इन खंडों पर ही सबसे अधिक यात्री और माल परिवहन होता है।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु तमाम कोशिशों के बाद भी वह कायाकल्प नहीं कर सके, जिसका सपना उन्होंने दिखाया था। अब 2019 तक रेलवे के समक्ष सालाना माल वहन क्षमता डेढ़ अरब टन करने की चुनौती है। साथ ही करीब एक लाख करोड़ लागत वाले प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट बुलेट ट्रेन को भी साकार करना है।

आज रेल पटरियों के बेहतर रखरखाव के साथ तीन हजार रेल पुलों को भी तत्काल बदलने की जरूरत है। देश के 1.21 लाख रेल पुलों में 75 फीसदी ऐसे हैं, जो छह दशक से ज्यादा की उम्र पार कर चुके हैं। हंसराज खन्‍ना जांच समिति ने एक सदी पुराने सारे असुरक्षित पुलों की पड़ताल एक टास्क फोर्स बनाकर करने और पांच साल में उनको दोबारा बनाने की सिफारिश की थी। लेकिन इस पर तंगी के नाम पर काम आगे नहीं बढ़ा।

लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्रित्वकाल में आरंभ हुए दोनों डेडिकेडेट फ्रेट कॉरिडोर 2019 में पूरे होगें तो दिल्ली-हावड़ा और दिल्ली-मुंबई के बोझ से दबे रूट को सबसे अधिक राहत होगी। इन दोनों खंडों पर रेलवे ने सभी गाड़ियों की गति बढ़ाकर 160 किमी तक करने की योजना बनाई है। सभी माल और यात्री गाड़ियों की औसत रफ्तार बढ़ाने का दावा भी किया जा रहा है। ये सारी तैयारियां अच्छी बात हैं, लेकिन सुरक्षा और संरक्षा का सवाल अपनी जगह कायम है।

(लेखक रेल मंत्रालय के पूर्व सलाहकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

 


- See more at: http://naidunia.jagran.com/editorial/expert-comment-dream-of-bullet-train-and-train-of-accidents-854459#sthash.0K4lSSvp.dpuf


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close