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न्यूज क्लिपिंग्स् | बुलेट ट्रेन से पहले बुलेट इंटरनेट- ओसामा मंजर

बुलेट ट्रेन से पहले बुलेट इंटरनेट- ओसामा मंजर

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published Published on Dec 19, 2017   modified Modified on Dec 19, 2017
मध्य प्रदेश के चंदेरी में एक सामुदायिक सूचना संसाधन केंद्र (सीआईआरसी) पर 10 वर्ष का लड़का आता है और यू-ट्यूब पर अपने पसंदीदा कलाकारों की नई फिल्मों के नाचते-गाते वीडियो देखता है। वह वीडियो डाउनलोड करता है, अपनी डिवाइस में उनको सेव करता है और फिर वापस घर लौट जाता है, ताकि उन वीडियो को देखकर वह अपने डांस की प्रैक्टिस कर सके। अपने इस काम में वह इतना मसरूफ रहता है कि उसे केंद्र पर मौजूद अन्य लोगों का भान ही नहीं होता। बताता चलूं कि इस केंद्र पर युवतियां सौंदर्य-प्रसाधन से जुड़े काम ऑनलाइन सीखतीैहैं। वे यू-ट्यूब से मेहंदी लगाना या फिर नए डिजाइन के कुरते सिलना भी सीखती हैं। वहीं दूसरे लोग वीडियो क्लासेज से अपनी डिजिटल साक्षरता निखारते हैं। साफ है, भारत में ऑनलाइन वीडियो सामग्री काफी लोकप्रिय है, क्योंकि देश के ग्रामीण हिस्सों में अब भी मौखिक संस्कृति कायम है और साक्षरता दर कम है। अधिकतर ऑनलाइन सामग्रियां अंग्रेजी में उपलब्ध हैं और वे क्षेत्रीय भाषाओं में अमूमन अनुदित नहीं हो पातीं, इसलिए ग्रामीण इलाके में लोग अपनी मूल भाषा में ही ऑनलाइन सामग्री देखना-सुनना पसंद करते हैं। जाहिर है, इसके लिए मोबाइल इंटरनेट की अच्छी स्पीड एक जरूरी शर्त है।


ऊकला द्वारा जारी स्पीडटेस्ट वैश्विक सूचकांक में मोबाइल इंटरनेट की स्पीड के मामले में दुनिया में हमारा 109वां और फिक्स्ड ब्रॉडबैंड के मामले में 76वां स्थान बताता है कि अभी गुणवत्तापूर्ण इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए हमें लंबा रास्ता तय करना है। दुनिया की औसत मोबाइल इंटरनेट डाउनलोड स्पीड 20.28 एमबीपीएस है, जबकि हमारी 8.80 एमबीपीएस। हालांकि ब्रॉडबैंड डाउनलोड स्पीड के मामले में हमारी स्थिति थोड़ी सुधरी है। वैश्विक औसत 40.11 एमबीपीएस की तुलना में ब्रॉडबैंड में हमारी स्पीड अब 18.82 एमबीपीएस है। इस मोबाइल इंटरनेट सूचकांक में पड़ोसी देश म्यांमार 94वें, नेपाल 99वें और पाकिस्तान 89वें पायदान पर हैं। ऐसे में, मेरा मानना है कि ब्रॉडबैंड स्पीड से कहीं अधिक भारत को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अच्छी गुणवत्ता की मोबाइल इंटरनेट कनेक्टिविटी देश के तमाम उपभोक्ताओं को मिले, क्योंकि यह न सिर्फ एक लोकप्रिय माध्यम है, बल्कि विशेषकर गांवों में लोगों के ऑनलाइन होने का सुलभ तरीका भी।


निश्चय ही, देश में मोबाइल रखने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और मोबाइल व डाटा बाजार की उन्नति की बड़ी संभावना है, इसीलिए निजी सेवा देने वाली कंपनियां बेहतर सुविधा देने पर लगातार काम कर रही हैं। अक्तूबर 2017 की ‘ओपेन सिग्नल्स स्टेट ऑफ इंटरनेट नेटवर्क इन इंडिया' रिपोर्ट बताती है कि आइडिया और जियो ने अपना कवरेज एरिया यानी पहुंच क्षेत्र बढ़ाया है। जियो की 4जी स्पीड बढ़ी है, लेकिन इसकी प्रतिस्पद्र्धी सेवाओं में गिरावट देखी गई है। एयरटेल, वोडाफोन और आइडिया ने देश भर में अपना एलटीई नेटवर्क बढ़ाया है। मगर जब बात समग्र डाउनलोड स्पीड की आती है, तो एयरटेल की सेवा सबसे आगे दिखती है। वह इसमें पहले स्थान पर है, जबकि आइडिया और वोडाफोन (दोनों का अब विलय हो गया है) दूसरे स्थान पर। जियो ने बाजार में उतरकर दूसरी कंपनियों को अपनी सेवा बेहतर बनाने और अधिक से अधिक उपभोक्ताओं तक पहुंच सुनिश्चित करने का दबाव बढ़ाया है। मैं मानता हूं कि स्पद्र्धा का यह माहौल उपभोक्ताओं के हित में होना चाहिए। आने वाले दिनों में उन्हें बेहतर सेवा मिल सकती है।


रही बात सरकार की, तो भारत नेट प्रोजेक्ट या नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क ने ग्रामीण हलकों में कनेक्टिविटी बढ़ाई है, हालांकि इसकी अपनी समस्याएं भी हैं। हाल ही में सरकार ने न्यूनतम अनिवार्य मोबाइल व ब्रॉडबैंड स्पीड बढ़ाने की योजना घोषित की। इसमें मौजूदा न्यूनतम 512 केबीपीएस स्पीड को दो एमबीपीएस करने का प्रावधान है। यह एक स्वागतयोग्य पहल है, पर डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और कैशलेस आर्थिक कार्यक्रमों जैसी सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के बेहतर संचालन के लिए यह न्यूनतम स्पीड भी कम ही है।


जरूरत कीमतों से निपटने की भी होनी चाहिए। हाल के वर्षों में ब्रॉडबैंड की कीमतें नियमित रूप से कम हुई हैं और बाजार में एक स्वस्थ स्पद्र्धा रहने के कारण इसकी कीमतों में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव की संभावना नहीं है। मगर मोबाइल इंटरनेट के बाजार में जियो के आ जाने और मुफ्त डाटा की पेशकश से एयरटेल, वोडाफोन और दूसरी तमाम कंपनियों ने अपनी दरों में कमी की है। हालांकि कीमतों में कमी के बावजूद, इंस्टॉलेशन यानी डिवाइस लगाने की कीमत और मासिक प्लान कम आय वाले परिवारों के लिए महंगे ही हैं। यही वजह है कि ग्रामीण हिस्सों में कम कीमत वाले डाटा प्लान, जिसमें 20-50 रुपये खर्च हों, काफी लोकप्रिय होते हैं। इससे वे अपनी जरूरत के मुताबिक वाट्सएप, फेसबुक और यू-ट्यूब का इस्तेमाल कर लेते हैं। वीडियो सामग्री की लोकप्रियता और वीडियो को डाउनलोड करने में डाटा का कहीं अधिक खर्च होना बताता है कि ये डाटा प्लान बहुत ज्यादा उपयोगी नहीं हैं। ऐसे में, अगर इंटरनेट को सचमुच सशक्त बनाने का औजार बनना है, तो जिन लोगों को इसकी ज्यादा जरूरत है, उन्हें यह सस्ती मिलनी ही चाहिए।


ग्रामीण व शहरी डिजिटल दुनिया के इस अंतर को पाटना तो जरूरी है ही, लैंगिक व युवा अंतर को खत्म करना भी आवश्यक है। यूनीसेफ की ‘स्टेट ऑफ द वल्ड्र्स चिल्ड्रेन 2017 : चिल्ड्रेन इन अ डिजिटिल वल्र्ड' रिपोर्ट बताती है कि तीन में से एक इंटरनेट उपयोगकर्ता कोई बच्चा है। दुनिया के एक-तिहाई युवा यानी 34.6 करोड़ नौजवान ऑनलाइन दुनिया से अब भी दूर हैं। इसी तरह, भारत में 29 फीसदी इंटरनेट उपभोगकर्ता ही महिलाएं हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा महज 12 फीसदी है। यह अंतर वैश्विक अर्थव्यवस्था में असमानता बढ़ाता है, जो अब डिजिटल होती जा रही है।


सौंदर्य-प्रसाधन, खान-पान और डांस शिक्षण से जुड़े वीडियो देखना किसी को भी डिजिटल दुनिया में सतही लग सकता है, पर सामाजिक बंदिशों में रहने वाले बहुत से लोगों को ये वीडियो मूल्यवान कौशल की सौगात दे सकते हैं। ऐसे कौशल, जिससे वे पैसे कमाकर अपने पांव पर खड़े हो सकते हैं। ऐसे में, निजी कंपनियों व सरकारी पहलों से डाउनलोड की गति तेज करने, इंटरनेट की व्यापक पहुंच बनाने और सस्ते डाटा प्लान को साकार करने की जरूरत है, ताकि भारत आने वाले वर्षों में वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पद्र्धा कर सकने लायक डिजिटल तौर पर साक्षर नागरिक तैयार कर सके। जाहिर है, देश में बुलेट ट्रेन अभी इंतजार कर सकती है, पर बुलेट इंटरनेट नहीं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)


https://www.livehindustan.com/blog/latest-blog/story-bullet-internet-first-then-bullet-train-article-by-osama-manzar-1699105.html


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