Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | बेरोजगारी का दंश, जाति के तर्क--- ए. श्रीनिवासन

बेरोजगारी का दंश, जाति के तर्क--- ए. श्रीनिवासन

Share this article Share this article
published Published on Nov 1, 2017   modified Modified on Nov 1, 2017
बीते शनिवार को मशहूर दलित लेखक और एक्टिविस्ट कांचा इलैया को हैदराबाद के उनके घर में नजरबंद कर दिया गया। आंध्र और तेलंगाना पुलिस ने सुरक्षात्मक वजहों से यह नजरबंदी की, ताकि इलैया को अभिव्यक्ति की आजादी विषय पर विजयवाड़ा में भाषण देने जाने से रोका जा सके। अपने लेखन से धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए कांचा इलैया को जान से मारने की कई धमकियां मिल चुकी हैं। इलैया का विरोध कर रहे लोगों का नेतृत्व आर्य वैश्य-ब्राह्मण ऐक्य वेदिका (आर्य वैश्य और ब्राह्मण समुदायों की संयुक्त समिति) कर रही है। इस संगठन की मांग है कि इलैया की किताब पर प्रतिबंध लगे और वह माफी मांगें। एक नेता ने तो यहां तक धमकी दे डाली कि अगर इलैया ने अपना रास्ता नहीं बदला, तो उनकी जुबान काट दी जाएगी।


दरअसल, कुछ साल पहले प्रकाशित इलैया की किताब के एक अंश को फिर से छापे जाने से यह पूरा विवाद खड़ा हुआ है। इस किताब में इलैया का दावा है र्कि ंहदू वर्ण-व्यवस्था में दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ी जातियों, जैसे गुर्जर, जाट और पटेल आदि ने अपने खून और पसीने से देश के लिए धन कमाया, लेकिन गुप्त काल से उस धन पर कारोबारी समुदायों का नियंत्रण हो गया। इलैया की स्थापना के मुताबिक, समकालीन पूंजीपति भी इसी समुदाय से आते हैं और आजाद भारत की धन-संपदा पर सर्वाधिक नियंत्रण इन्हीं लोगों का रहा है। इलैया का यह भी कहना है कि वैश्यों ने ब्राह्मणों से गठजोड़ करके काफी सारा धन मंदिरों के हवाले किया। एक इंटरव्यू में उन्होंने केरल के श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर में रखे गए अपार धन को उदाहरण के तौर पर पेश किया।


इलैया विस्तार से बताते हैं कि धन-संचयन की उनकी स्थापना कहती है कि ग्रामीण व्यापार पर नियंत्रण रखने वाले वैश्यों ने इसके लिए कई ‘कपटी-तंत्र' खड़े किए, जिनमें उत्पादक संघ से लेकर कम दाम देना तक शामिल रहा। उत्पादकों या किसानों को मझधार में छोड़ दिया गया, कई बार तो उन्हें अपने उत्पादों के लिए कम कीमत लेने को विवश होना पड़ता है। यह किसान ही है, जो सबसे अधिक भुगतता है, और फसल खराब होने की सूरत में कर्ज के चक्रव्यूह में फंसता चला जाता है।
चूंकि सरकारी नौकरियां निरंतर कम होती जा रही हैं और सरकार नौकरी सृजन के अपने वादे को पूरा करने में नाकाम रही है, ऐसे में बेरोजगारों के पास निजी क्षेत्र में नौकरी तलाशने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। इसलिए इलैया यह मांग कर रहे हैं कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी दलितों को आरक्षण दिया जाए। उनकी दलील है कि चूंकि निचली जातियों और पिछड़े समुदायों के लोग ज्यादातर पुलिस व फौज में अपनी सेवा देते हैं, इसीलिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को, जो राष्ट्रवाद के दम भरती रहती है, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर सैनिक के परिवार के कम से कम एक सदस्य को सिविल फोर्स में नौकरी मिले।


असल में, यह वह बड़ी सामाजिक परेशानी है, जो ग्रामीण व शहरी इलाकों की ऊंची बेरोजगारी दर से पैदा हुई है। एक अनुमान के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में करीब 12 लाख बेरोजगार हैं, जबकि तेलंगाना में यह संख्या इसकी दोगुनी है। विशेषज्ञों का आकलन है कि बेरोजगारों की संख्या इससे काफी ज्यादा हो सकती है, क्योंकि हर बेरोजगार अपना पंजीकरण नहीं कराता। अब जब देश में नौकरियों का पूरा परिदृश्य ही एक बड़े संकट की ओर है, तब यह स्थिति दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े समुदायों के लिए ज्यादा तकलीफदेह हो सकती है, क्योंकि इससे दलितों व पिछड़ों की परेशानियां गहराती जाएंगी। बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद आंध्र प्रदेश देश का चौथा ऐसा सूबा है, जहां दलितों पर जुल्म के सर्वाधिक मामले दर्ज होते है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, अांध्र में दलितों के खिलाफ अपराध के 4,415 मामले दर्ज किए गए, जो राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे अपराधों का 9.8 प्रतिशत हैं।


आंध्र प्रदेश में 84 लाख से अधिक दलित आबादी है। लेकिन आबादी के अनुुपात में दलित उत्पीड़पन के सर्वाधिक मामले राजस्थान के बाद इसी प्रदेश में दर्ज हुए। 2015 में तेलंगाना में भी दलितों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी देखी गई। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना कि दलितों के खिलाफ संगठित अपराध में यद्यपि कमी आई है, मगर उनके विरुद्ध अनायास हमलों की घटनाएं बढ़ रही हैं। कांचा इलैया का लेखन विवादास्पद रहा है। लेकिन जो कुछ उन्होंने 2009 में लिखा था, उसे लेकर आज क्यों हंगामा हो रहा है? शायद इसलिए कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अतिवादी व विरोधी विचारों या दृष्टिकोणों को निशाना बनाना फौरन सबका ध्यान खींच लेता है। इलैया के लेखन और विश्लेषण को कुछ लोग अकादमिक की बजाय ‘राजनीतिक प्रकृति' वाला अधिक बताते हैं। वे यह भी कहते हैं कि व्यापारी समुदायों द्वारा धन-संचय करने के उनके निष्कर्ष का कोई अनुभवसिद्ध मूल्य नहीं है, यह बस किस्सागोई है। फिर व्यापारिक पूंजीवाद को आधुनिक पूंजीवाद द्वारा बेदखल किए जाने के साथ ही इलैया का निष्कर्ष संदिग्ध हो जाता है। इसी तरह, भारतीय सेना के पेशेवर इकाई बनने के दौर में इलैया की नियुक्ति वाली दलीलों के खरीदार भी बहुत कम मिलेंगे।


कांचा इलैया की मुख्य मांग है निजी क्षेत्र में दलितों के लिए आरक्षण। फिलहाल सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए 22.5 प्रतिशत आरक्षण है। इसके अलावा, अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसदी सीटें आरक्षित हैं। अब इस स्थिति में किसी प्रकार की तब्दीली के लिए संविधान संशोधन की जरूरत होगी और मुमकिन है कि वह कदम इस पूरी अवधारणा के औचित्य को ही बिगाड़ दे। कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2006 में कॉरपोरेट सेक्टर से अपील के जरिये अनौपचारिक आरक्षण लादने की कोशिश की थी। तब इन्फोसिस जैसी आईटी कंपनियों ने वंचित तबकों के स्नातकों को प्रशिक्षित करने का एक कार्यक्रम शुरू किया था और ज्यादातर प्रशिक्षितों को कंपनी के अंदर-बाहर विभिन्न तरह की नौकरियां भी दी थीं।
कांचा इलैया के लेखन की चर्चा हिंदुत्ववादी राजनीति के विरोध के रूप में सामने आई है। उनके विचार विध्वंसक हैं। पर क्या ये दो विरोधी धुर नहीं हैं, जो एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


http://www.livehindustan.com/blog/latest-blog/story-editorial-article-of-hindustan-hindi-newspaper-31st-of-october-2017-by-s-srinivasan-1620199.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close