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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत की जलवायु, प्रदूषण और गरीबी की चुनौतियों से निपटता बायोमास ब्रिकेट्स

भारत की जलवायु, प्रदूषण और गरीबी की चुनौतियों से निपटता बायोमास ब्रिकेट्स

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published Published on Apr 2, 2024   modified Modified on Apr 2, 2024

द थर्ड पोल, 02 अप्रैल 

सुरजीत कौर एक 38 वर्षीय किसान हैं जिनका परिवार पंजाब के पटियाला जिले में पीढ़ियों से खेती कर रहा है। हर साल कौर और उनका परिवार मिलकर अपनी तीन एकड़ ज़मीन से लगभग 90 क्विंटल धान की फसल काटते हैं।

हालांकि, धान की फसल से होने वाली नियमित कमाई के साथ-साथ गेहूं बोने के लिए भूसे और कृषि अपशिष्टों का शीघ्रता से निपटारा करने की ज़रूरत होती है। उत्तर भारत में धान और गेहूं की की फसलें प्रमुखता से बोई जाती हैं। धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच मात्र 10 से 15 दिन का समय बचता है; बुआई में किसी भी तरह की देरी करने से गेहूं की फसल कम हो जाएगी। प्रत्येक टन धान से 1.35 से 1.50 टन भूसा पैदा होता है। क्योंकि विकल्पों की कमी है, पर्यावरणीय लागत, जैव विविधता को नुकसान और मिट्टी की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव के बावजूद, हर साल हजारों किसान पराली जलाते हैं।

सुरजीत ने द थर्ड पोल को बताया, “(अतीत में) हम अपनी फसल काटते थे और पुआल एवं ठूंठ में आग लगा देते थे। हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था।” उन्होंने आगे बताया, “हवा में धुएं के भूरे पर्दे लटके रहते थे… हमें सांस लेने में दिक्कत होती थी और कभी-कभी त्वचा में खुजली भी होती थी।” 
पूरी खबर- द थर्ड पोल


द थर्ड पोल, 02 अप्रैल https://www.thethirdpole.net/hi/508/129188/
 

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