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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत के युवाओं के लिए रोज़गार की राह हुई और मुश्किल

भारत के युवाओं के लिए रोज़गार की राह हुई और मुश्किल

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published Published on Aug 25, 2020   modified Modified on Aug 25, 2020

-बीबीसी,

कोरोना के आने से पहले भी दुनिया भर में यह बहुत बड़ा सवाल था कि आनेवाले दिनों में रोज़गार कैसे मिलेगा, कहाँ मिलेगा और किस किसको मिलेगा?

अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार पानेवाले दंपती अभिजीत बनर्जी और एस्टर डूफलो तो तभी कह चुके थे कि अब दुनिया भर की सरकारों को अपनी बड़ी आबादी को सहारा देने का इंतज़ाम करना पड़ेगा, क्योंकि सबके लिए रोज़गार नहीं रह पाएगा.

बड़ी बहस इस बात पर चल रही थी कि कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिए क्या-क्या हो सकता है और कौन से लोग हैं, जिनकी नौकरियाँ किसी कंप्यूटर या रोबोट के हाथ में नहीं जा पाएँगी.

एक तरफ़ दुनिया भर के उद्योगपति कनेक्टेड फ़ैक्टरी और पूरी तरह मशीनों से चलने वाले बिज़नेस के सपने देख रहे थे तो दूसरी तरफ़ समाज और सरकारें इस चिंता में थीं कि लाखों करोड़ों नौजवानों के रोज़गार का इंतज़ाम कैसे किया जाए.

युवाल नोआ हरारी अपनी महत्वपूर्ण किताब 21 Lessons for the 21st century में 21वीं सदी के जो 21 सबक गिनाते हैं, उनमें दूसरे ही नंबर पर है रोज़गार और आज की नई पीढ़ी के लिए यह खौफ़नाक चेतावनी कि- 'जब तुम बड़े होगे तो शायद तुम्हारे पास कोई नौकरी न हो!'

हालाँकि वो यह मानते हैं कि निकट भविष्य में कंप्यूटर और रोबोट शायद बड़े पैमाने पर इंसानों को बेरोज़गार न कर पाएँ, लेकिन यह आशंका कोई बहुत दूर की कौड़ी भी नहीं है.

वो 2050 की दुनिया की कल्पना कर रहे थे.

डेटा को 'नया तेल' कहने के पीछे वजह क्या है?
इसी तरह एलेक रॉस ने अगले 10 साल की चुनौतियों का हिसाब जोड़ा. उन्होंने इस बात को बारीकी से पढ़ा कि इस दौरान जो नई तकनीक आएगी और जो नई खोज होंगी या इस्तेमाल में लाई जाएँगी, उनसे हमारे घर यानी रहन सहन और हमारा दफ़्तर यानी काम करने का तरीक़ा कैसे-कैसे बदलेगा.

दुनिया कैसे बदलेगी, डेटा को नया तेल क्यों कहा जा रहा है और कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग से बढ़कर इंसान की प्रोग्रामिंग तक का खाका खींचती रॉस की किताब The Industries of the future एक तरह की गाइड है. तेज़ी से बदलती दुनिया में न सिर्फ़ बचे रहने बल्कि तरक्की भी करते रहने के लिए.

इसमें डेटा का दम भी दिखता है, रोबो का डर भी दिखता है, कंप्यूटर कोड का हथियार की तरह इस्तेमाल होने की आशंका भी है, ज़मीनी या आसमानी लड़ाई की जगह वर्चुअल या साइबर युद्ध का खौफनाक नज़ारा भी है और तीसरी दुनिया या विकासशील देशों के लिए यह चुनौती भी कि वो अमरीका की सिलिकॉन वैली के मुकाबले अपने देशों में वो क्या खड़ा कर पाएँगे, जहाँ नौजवानों की मेधा और कौशल का सही इस्तेमाल हो सके और वो अपने समाज का भविष्य सुरक्षित करने में मददगार बनें.

लेकिन यह सारी कहानी मार्च 2020 में काफ़ी बदल गई.

जो नहीं होना था वो हो चुका है. दुनिया भर के लोग अब तक के इतिहास के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे हैं और वो तमाम आशंकाएँ सच हो चुकी हैं, जिनकी कल्पना की जा रही थी. आधी से ज़्यादा दुनिया एक साथ तालाबंदी की चपेट में आ चुकी है.

दुनिया भर में विमान सेवाएँ, होटल, टूरिज्म और ट्रेन या बसें तक एक साथ बंद हो जाना तो कल्पना से भी परे की चीज़ है.

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें. 


आलोक जोशी, https://www.bbc.com/hindi/india-53889725


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