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न्यूज क्लिपिंग्स् | भटिण्डा के पानी में यूरेनियम, रेडियम और रेडॉन

भटिण्डा के पानी में यूरेनियम, रेडियम और रेडॉन

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published Published on Aug 20, 2009   modified Modified on Aug 20, 2009

पंजाब के मालवा इलाके के भटिण्डा जिले और इसके आसपास का इलाका "कॉटन बेल्ट" के रूप में जाना जाता है, तथा राज्य के उर्वरक और कीटनाशकों की कुल खपत का 80% प्रतिशत इसी क्षेत्र में जाता है। पिछले कुछ वर्षों से इस इलाके में कैंसर से होने वाली मौतों तथा अत्यधिक कृषि ॠण के कारण किसानों की आत्महत्या के मामले सामने आते रहे हैं। इस इलाके के लगभग 93% किसान औसतन प्रत्येक 2.85 लाख रुपये के कर्ज़ तले दबे हुए हैं। पहले किये गये अध्ययनों से अनुमान लगाया गया था कि क्षेत्र में बढ़ते कैंसर की वजह बेतहाशा उपयोग किये जा रहे एग्रोकेमिकल्स हैं, जो पानी के साथ भूजल में पैठते जाते हैं और भूजल को प्रदूषित कर देते हैं। हाल ही में कुछ अन्य शोधों से पता चला है कि भूजल के नमूनों में प्रदूषित केमिकल्स के अलावा यूरेनियम, रेडियम और रेडॉन भी पाये जा रहे हैं, जिसके कारण मामला और भी गम्भीर हो चला है।

जिन गाँवों में कैंसर की वजह से अधिकतम और लगातार मौतें हो रही हैं, वहाँ के पानी के नमूनों में यूरेनियम नामक रेडियोएक्टिव पदार्थ की भारी मात्रा पाई गई है। भटिण्डा के जज्जल, मलकाना और गियाना गाँवों के दूध में क्रमशः 2.38, 1.57 तथा 3.33 माइक्रोग्राम प्रति लीटर पाया गया, जबकि गेहूं में यह 110, 70 तथा 115 माइक्रोग्राम प्रति किलो और दालों में 29 से 47 माइक्रोग्राम प्रति किलो पाई गई। रोज़मर्रा की सभी खान-पान की वस्तुओं को मिलाकर यूरेनियम सेवन की मात्रा सर्वाधिक ग्राम गियाना में 138 माइक्रोग्राम प्रतिदिन पाई गई, जो कि दुनिया में प्रति व्यक्ति औसतन यूरेनियम सेवन अर्थात 5 माइक्रोग्राम से बहुत-बहुत अधिक है।

भटिण्डा जिले के कुछ भागों की मिट्टी और पानी के नमूनों में यूरेनियम की मात्रा प्राणियों के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा अमेरिकी पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (USEPA) द्वारा तय और स्वीकार्य मानकों से अधिक पाई गई है। यूरेनियम और अन्य भारी धातुओं की जाँच के लिये विभिन्न जलस्रोतों से लिये गये पानी के नमूनों में से 77% से अधिक नमूने WHO के मानकों के अनुसार फ़ेल पाये गये जबकि USEPA के अनुसार 20% से अधिक नमूने प्रदूषित पाये गये। कुछ समय पहले "खेती विरासत" नामक संस्था द्वारा जज्जल और गियाना गाँवों (जहाँ कैंसर रोगियों की सर्वाधिक संख्या पाई गई) में एक अध्ययन में पाया कि WHO के तय मानक 9 माग्रा/लीटर के मुकाबले क्रमशः 7.14 से लेकर 63.19 तथा 2.87 से 99.88 माग्रा/लीटर पाया गया है। पानी और मिट्टी में यूरेनियम की अधिक मात्रा पाये जाने वाले अन्य गाँव हैं गोबिन्दपुरा, संगत, बुचो मंडी, गेहरीबुत्तार्, जयसिंहवाला और मलकाना। जज्जल गाँव सबसे बुरी तरह प्रभावित है, जहाँ प्रतिवर्ष कैंसर से 3-4 मौतें लगातार हो रही हैं। जज्जल गांव में कैंसर की पुष्टि हो चुके 107 मरीज अभी भी मौजूद हैं जिनमें से 80 महिलायें हैं। रिपोर्टों के अनुसार खतरे के लिये यूरेनियम की रेडियोधर्मी अवगुणों की अपेक्षा, उसकी रासायनिक विषाक्तता अधिक है। शरीर में प्रवेश करने के बाद यूरेनियम, फ़ेफ़ड़ों और हड्डी के कैंसर के प्रति खतरा बढ़ा देता है। हालांकि यूरेनियम का सबसे पहला और तीव्र असर गुर्दों पर होता है, लेकिन इस बात के भी सबूत हैं कि यह श्वसन तंत्र तथा प्रजनन प्रणाली को भी नुकसान पहुँचाता है। दिलचस्प बात यह है कि पंजाब के पानी में इस यूरेनियम की उपस्थिति का स्रोत पता नहीं चल रहा है। इस सम्बन्ध में अमूमन तीन प्रकार के सिद्धांत दिये जा रहे हैं, पहला यह कि हो सकता है कि हरियाणा के भिवानी स्थित तोषाम पहाड़ियों से निकलने वाले ग्रेनाईट चट्टानों की वजह से यूरेनियम आ रहा है, दूसरा तर्क यह कहता है कि यह यूरेनियम अफ़गानिस्तान युद्ध में उपयोग किये गये हथियारों का अवशेष भी हो सकता है, और तीसरा सिद्धान्त यह है कि भटिण्डा जिले में स्थापित थर्मल पावर प्लाण्ट की वजह से पैदा होने वाले कोयले और राख में यूरेनियम और थोरियम के तत्व हो सकते हैं जो कि जिले के भूजल में समा रहे हैं। इस मामले की विडम्बना यह भी है कि पानी में यूरेनियम की उपस्थिति पर सरकार की ओर से कोई अधिकृत बयान नहीं आया है। राज्य सरकार ने प्रभावित गाँवों में पानी शुद्ध करने के लिये Reverse Osmosis Unit (ROU) लगा दिये हैं, लेकिन इस बारे में कोई स्पष्ट निर्देश या सलाह नहीं है कि क्या ये ROU पानी में से यूरेनियम निकाल सकते हैं?

(साभार-इंडिया वाटर पोर्टल)

 

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