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न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत को गरीब बनाया गया है- तवलीन सिंह

भारत को गरीब बनाया गया है- तवलीन सिंह

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published Published on Feb 11, 2014   modified Modified on Feb 11, 2014
जब भी वापस आती हूं वतन किसी विदेशी दौरे के बाद, तो कुछ दिनों के लिए मेरी नजर विदेशियों की नजरों जैसी हो जाती है। बिल्कुल वैसे, जैसे आमिर खान के नए टीवी इश्तिहार में दर्शाया गया है। मुझे भी जरूरत से ज्यादा दिखने लगती हैं भारत माता के 'सुजलाम, सुफलाम' चेहरे पर गंदगी के मुहांसे, गंदी आदतों की फुंसियां और गलत नीतियों के फोड़े।

मुझे आश्चर्य हो रहा है अपने देश की गरीबी और अव्यवस्था देखकर। भारत को गरीब होने का कोई अधिकार नहीं है। हमारी गिनती दुनिया के अति गरीब देशों में होती है अगर, तो उसका कारण है-गलत आर्थिक नीतियां। अंधविश्वास एक ऐसी विचारधारा पर, जिसको दुनिया के बाकी देशों ने कब का फेंक रखा है इतिहास के कूड़ेदान में। उस विचारधारा को हमारे राजनेता समाजवादी कहते हैं।

एक जमाना था कोई चालीस-पचास वर्ष पहले, जब इस विचारधारा की लोकप्रियता की कोई सीमा नहीं थी। यूरोप के आधे देश या तो समाजवादी कहलाते थे या पूर्व सोवियत यूनियन के दबाव की वजह से पूरी तरह मार्क्सवादी थे। समाजवाद के परचम के तहत जो देश चले थे दूसरे विश्वयुद्ध के बाद, उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार के मामले में वे बहुत कामयाब रहे थे। वेतन बेशक कम रहे हों मजदूरों के, लेकिन बेरोजगारी नहीं थी। रोटी और कपड़ा बेशक कम रहा हो, लेकिन छत थी हर इन्सान के सिर के ऊपर, और भूख से नहीं मरता था कोई। बस, इतना ही हमारे समाजवादी राजनेताओं ने किया होता हमारे भारत देश के लिए, तो आज आम आदमी इतना बेहाल न होता।

हमारी समस्या यह है कि न तो हमने इन बुनियादी क्षेत्रों में कोई खास उपलब्धि पाई और न ही समाजवादी आर्थिक नीतियों से दूर होकर देश को धनी बनने दिया। समाजवादी-मार्क्सवादी सोच के जो राजनेता हैं, उनकी नजरों में पर्यटन को बढ़ावा देना महापाप है। तकरीबन गरीबों के साथ गद्दारी। सो, जैसे राहुल गांधी ने अपने इंटरव्यू में स्पष्ट किया कि अब चीन की नकल करके ऐसे कारखानों पर ध्यान देना चाहिए, जो अमेरिकी बच्चों के लिए खिलौने बनाएं। दुनिया के लोगों के लिए रेडीमेड कपड़े और दुनिया की बड़ी ऑटो कंपनियों के लिए आधुनिक गाड़ियां बनाएं।

लक्ष्य बुरा नहीं है। लेकिन राहुल जी शायद भूल गए हैं कि चीन को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए पैंतीस वर्ष लगे थे। हमारे देश के पास इतना समय नहीं है धनी होने के लिए, सो चुनना पड़ेगा कोई दूसरा रास्ता, और वह रास्ता हो सकता है पर्यटन। यह ख्याल मुझे इसलिए भी आया है, क्योंकि हाल में मैं ब्राजील की एक दोस्त की बेटी की शादी में गई थी यूरोप के एक खूबसूरत, बर्फ से ढके हुए पहाड़ी शहर में।

वह शहर देखकर मुझे याद आई हिमालय के उन छोटे गांवों और शहरों की, जिनमें अगर थोड़ा-सा निवेश किया जाए, तो वे दुनिया के सबसे सुंदर पहाड़ी शहर बन सकते हैं। जम्मू-कश्मीर की सरकार ने थोड़ा-बहुत निवेश किया है घाटी में, लेकिन लद्दाख और जम्मू को भूलकर। हिमाचल की सरकार ने मनाली पर ध्यान दिया है, लेकिन अन्य कई अति सुंदर शहरों को भूलकर। राजस्थान, केरल और गोवा की सरकारों ने विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए थोड़ी-बहुत कोशिश की है, लेकिन उतनी नहीं, जितनी होनी चाहिए। नतीजा यह है कि भारत में पिछले वर्ष जितने विदेशी पर्यटक आए थे, उनसे तीन गुना ज्यादा लोग पहुंचे थे इस्तांबुल में।

विदेशी पर्यटक जहां जाते हैं, वहां न सिर्फ प्राचीन इमारतों को खंडहर बनाने से बचाया जाता है, साथ-साथ बन जाती हैं सड़कें और बिजली-पानी की वे सेवाएं, जिनसे सबसे ज्यादा फायदा होता है स्थानीय लोगों को। अपने भारत महान में दुख होता है मुझे यह देखकर कि बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे हमारे जो सबसे गरीब राज्य हैं, उनके पास है सबसे बड़ा खजाना प्राचीन मंदिरों-इमारतों का। इनको भूलकर हमारे राजनेता मूर्तियों के निर्माण पर ज्यादा ध्यान देते हैं।

आर्थिक तौर पर अगर अक्लमंदी दिखाई होती हमारे राजनेताओं ने, तो भारत आज अमीर देशों में होता। अब भी समय है नई दिशा ढूंढने का, पर ऐसा होने से पहले हमें ढूंढना होगा कोई नया प्रधानमंत्री, जिसकी सोच उन घिसी-पिटी आर्थिक नीतियों से अलग हो। भारत गरीब देश नहीं है। इसे गरीब देश बनाया गया है।

http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/tavleen-singh/india-has-been-poor/


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