Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | भारत को घेरता ड्रैगन-- विजय कुमार चौधरी

भारत को घेरता ड्रैगन-- विजय कुमार चौधरी

Share this article Share this article
published Published on Sep 13, 2018   modified Modified on Sep 13, 2018

पिछले सात सितंबर को चीन ने अपने चार बंदरगाह और तीन लैंड-पोर्ट (भू-बंदरगाह) के उपयोग की अनुमति नेपाल को दी. बदले में नेपाल ने बिम्सटेक देशों द्वारा 10 सितंबर को पुणे में होनेवाले संयुक्त सैन्य अभ्यास से अपने को अलग कर लिया. बिम्सटेक भारत, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, थाइलैंड एवं श्रीलंका का एक संगठन है, जो आर्थिक एवं तकनीकी क्षेत्र में आपसी सहयोग को बढ़ावा देता है. इन देशों के सेनाध्यक्षों ने यह कार्यक्रम तय किया था. अंतिम समय में चीन के दबाव में नेपाल झुक गया.

 

जाहिर तौर पर चीन द्वारा यह फैसला सिर्फ नेपाल पर भारत के प्रभाव को कमजोर करने के लिए ही लिया गया. नेपाल एक थलरुद्ध (लैंड-लॉक्ड) देश है एवं समुद्र तक उसकी पहुंच भारत होकर ही है. व्यापार के क्षेत्र में नौपरिवहन सबसे सस्ता माध्यम होता है. नेपाल इसके लिए अभी तक भारत के बंदरगाहों पर निर्भर है.


प्रस्तावित बंदरगाह दूरी के हिसाब से नेपाल के लिए बहुत उपयुक्त नहीं है. फिर भी चीन द्वारा नेपाल एवं भारत के रिश्तों को कमजोर करने का यह प्रयास हमारा ध्यान आकर्षित करता है. नेपाल भारत का सबसे घनिष्ठ पड़ोसी रहा है. विशेष संधि के तहत दोनों देशों के नागरिकों के परस्पर बेरोक-टोक आवाजाही इनके प्रगाढ़ रिश्तों को रेखांकित करता है. परंतु पिछले वर्षों में नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता एवं साम्यवादियों के बढ़ते प्रभाव का लाभ उठाकर चीन प्रत्यक्ष रूप से नेपाल में अपनी दखलअंदाजी बढ़ा रहा है.
बदलते वैश्विक परिदृश्य में चीन पूरी दुनिया में महाशक्ति के रूप में अपना प्रभाव जमाने की दिशा में संकल्पित ढंग से बढ़ रहा है. इसी मंशा के तहत चीन की विदेश नीति के दो लक्ष्य स्पष्ट हैं. पहला, महाशक्ति के रूप में अमेरिका को सीधी एवं खुली चुनौती देना एवं दूसरा, भारत की बांह मरोड़कर दक्षिण एशिया में अपना एकाधिकार प्रभुत्व कायम करना. भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय हित में स्वतंत्र विदेश नीति पर चलना चीन की आंखों में शूल की तरह चुभता है. इसी कारण कभी वह तिब्बत एवं दलाई लामा के मुद्दे पर धमकाता है,तो कभी डोकलाम जैसे अनावश्यक विवाद पैदा कर भारत के साथ भूटान को भी आंखें दिखाता है. अनुमानत: वह भारत के धैर्य एवं इसकी तैयारियों की गहराई को भांपना एवं मापना चाहता है.


अमेरिका में ट्रंप शासन के प्रतिगामी नीतियों से उपजे नैराश्य से चीन और भी उत्साहित है. आर्थिक जगत में चीन और अमेरिका की स्थिति सैद्धांतिक स्तर पर उलट चुकी है. अमेरिका शुरू से मुक्त बाजार एवं खुली अर्थव्यवस्था का पोषक रहा है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ‘अमेरिका फर्स्ट' के तहत संरक्षणवादी नीतियां लागू कर रहा है. चीन भी अब खुली अर्थव्यवस्था की वकालत कर अपने सस्ते उत्पादों के बल पर पूरे वैश्विक बाजार पर कब्जा जमाना चाहता है.


पिछले दशक में दक्षिण एशिया में भारत के पड़ोसी देशों में चीन ने अपना प्रभाव एवं सामरिक उपस्थिति बढ़ायी है. पाकिस्तान हमेशा से ही चीन का विश्वस्त एवं पिछलग्गू देश रहा है. तिब्बत एवं दलाई लामा के मुद्दे पर असहमति एवं अपने सीमा विवाद के कारण चीन शुरू से ही भारत के खिलाफ पाकिस्तान को लगातार मदद करता आया है. चीन के ‘बेल्ट एंड रोड परियोजना' के तहत ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा' निर्माण की महवाकांक्षी योजना पर काम चल रहा है. ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर सीधे चीन एवं मध्य एशिया को सड़क मार्ग से जोड़ना है. इससे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा. उधर अमेरिका से बढ़ती दूरी के कारण भी पाकिस्तान पूरी तरह से चीन की गिरफ्त में आ चुका है.


बांग्लादेश की आजादी का ही चीन ने विरोध किया था एवं संयुक्त राष्ट्र में इसके प्रवेश पर वीटो लगाया था. परंतु बदली प्राथमिकताओं के तहत चीन ने बांग्लादेश में अपनी सशक्त उपस्थिति बना ली है. वह बांग्लादेश का सबसे बड़ा वाणिज्य-व्यापार सहयोगी एवं सैन्य शस्त्र आपूर्तिकर्ता है.


शुरू में म्यांमार से चीन के रिश्ते इतने अच्छे नहीं थे और ‘लुक ईस्ट पॉलिसी' के तहत भारत ने म्यांमार से संबंधों को मजबूत करने की अच्छी पहल की थी, लेकिन हाल के घटनाक्रम से लगता है कि चीन धीरे-धीरे दबाव बढ़ाकर म्यांमार को भी अपने प्रभाव क्षेत्र में सम्मिलित करने में सफल हुआ है. ‘बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट' से शुरू में अलग रहने के बाद अब म्यांमार भी चीन के साथ आर्थिक गलियारा बनाने पर सहमत हो गया है.


पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के समय में श्रीलंका का झुकाव चीन की तरफ था एवं चीन ने श्रीलंका को अंधाधुंध ऋण उपलब्ध कराया. वर्तमान राष्ट्रपति श्रीसेना संतुलन बनाने का प्रयास तो कर रहे हैं, परंतु भारी कर्ज के दबाव में सफलता संदिग्ध है. श्रीलंका की सेना का आधुनिकीकरण एवं हथियारों की आपूर्ति का काम चीन द्वारा ही किया जाता है. दक्षिणी चीन सागर को तो चीन अपना क्षेत्र मानता ही है, हिंद महासागर में भी उसकी उपस्थिति दिन-ब-दिन मजबूत होती जा रही है.


थाइलैंड जो शुरू से चीन को संदेह की नजर से देखता था, वह अब चीन के साथ अपने संबंध सुधारने को उत्सुक है. इस प्रकार, भारत के चारों तरफ पड़ोसी देशों को चीन अपने प्रभाव क्षेत्र में ले रहा है. शुरू में व्यापार को बढ़ावा देने एवं आर्थिक मदद के नाम पर वह अंधाधुंध पूंजी निवेश करता है और फिर बाद में अपनी मजबूत आर्थिक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में सामरिक समझौते के माध्यम से धीरे-धीरे सैन्य उपस्थिति बढ़ा लेता है.


दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में शांति एवं शक्ति संतुलन बनाये रखना भारत के लिए अनिवार्य है. इस इलाके में शांति एवं आपसी सहयोग हेतु कई क्षेत्रीय संगठन काम कर रहे हैं. इनमें सार्क, आसियान, बिम्सटेक आदि प्रमुख हैं. इनमें भारत नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभा रहा है. वैश्विक स्तर पर भी ब्रिक्स एवं क्वाड (भारत, जापान, आॅस्ट्रेलिया, अमेरिका) जैसे संगठनों में सक्रिय भूमिका से भारत की स्थिति सुदृढ़ हुई है. हालांकि, शुरू में एशिया में अमेरिकी प्रभाव को रोकने के लिए ‘मास्को-बीजिंग-दिल्ली एक्सिस' बनाने की मंशा चीन की थी. परंतु, अब तो अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका है.


आनेवाले समय में भारतीय विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती भारतीय उपमहाद्वीप एवं इसके आसपास के क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की होगी. इसके लिए भारत को एक ओर जहां अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों में मजबूती एवं विश्वसनीयता स्थापित कर क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बनाये रखना होगा. वहीं दूसरी ओर, चीन के साथ भी सतर्कतापूर्ण बातचीत का रास्ता भी खुला रखना होगा.


आनेवाले समय में भारतीय विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती भारतीय उपमहाद्वीप एवं इसके आसपास के क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के मद्देनजर अपनी स्थिति सुदृढ़ करने की होगी.


https://www.prabhatkhabar.com/news/opinion/news/columns/story/1204722.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close