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न्यूज क्लिपिंग्स् | भूख से हारी जिंदगी और नाम अन्नदाता

भूख से हारी जिंदगी और नाम अन्नदाता

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published Published on Aug 20, 2009   modified Modified on Aug 20, 2009

82000 करोड़ रुपये खर्च किये जाने के बाद भी विदर्भ में इस साल अब तक 117 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. प्रधानमंत्री द्वारा दी गई इतनी बड़ी राहत राशि आखिर क्यों अपना असर नहीं दिखा पा रही है, जानने का प्रयास कर रही हैं रोहिणी ।
तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

जिस तरह की आंकड़ेबाजियां पिछले कुछ सालों में विदर्भ के किसानों को लेकर की जा रही हैं, उस पर अदम गोंडवी का ये शेर हर तरह से मौजूं बैठता है. आंकड़े बताते हैं कि अब तक राज्य और केंद्र द्वारा दिए जा रहे राहत पैकेज के तहत किसानों को 82 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा की रकम आवंटित हो चुकी है. ज्यादातर पैसा खर्च भी किया जा चुका है. इससे होने वाले राजनीतिक लाभ की फसल काटी जा चुकी है. इसके बावजूद आज भी विदर्भ में औसतन पहले जितनी ही आत्महत्याएं हो रही हैं. 2001 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 52 थी. 2008 में ये आंकड़ा 1267 रहा.
वागधा गांव के मंदिर का चबूतरा किसानों से भरा हुआ है. सभी की निगाहें झुकी हैं और माहौल में खामोशी पसरी हुई है. इस साल विदर्भ में किसी किसान की खुदकुशी की ये 117वीं घटना है. 117वीं बार ऐसा हुआ है कि किसी किसान ने अपनी बर्बाद कपास की खेती और झुलसाते आसमान की तरफ देखा और फैसला किया कि बस अब बहुत हुआ. 117वीं बार एक हताश जिंदगी असमय काल का ग्रास बन गई है.

पढ़ें पूरी रिपोर्ट निम्नलिखित लिंक पर

http://www.tehelkahindi.com/indinon/national/340.html

 

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