Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | 'भ्रष्टाचार केस में नौकरशाहों के खिलाफ जांच से पहले मंजूरी असंवैधानिक'

'भ्रष्टाचार केस में नौकरशाहों के खिलाफ जांच से पहले मंजूरी असंवैधानिक'

Share this article Share this article
published Published on May 6, 2014   modified Modified on May 6, 2014
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि भ्रष्टाचार के मामले में संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अधिकारी के खिलाफ जांच से पहले सक्षम प्राधिकारी से मंजूरी लेने का कानूनी प्रावधान अवैध और असंवैधानिक है। न्यायालय ने कहा कि इसमें भ्रष्ट व्यक्ति को संरक्षण देने की प्रवृत्ति है।

प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए के प्रावधान पर विचार के बाद यह व्यवस्था दी। इस धारा के तहत भ्रष्टाचार के मामले में पूर्व अनुमति के बगैर नौकरशाहों के खिलाफ जांच नहीं की जा सकती है। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए के पटनायक, न्यामयूर्ति एस जे मुखोपाध्याय, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला शामिल हैं।

संविधान पीठ ने कहा कि हम इस कानून की धारा 6-ए को अवैध और संविधान के अनुच्छेद 14 का हनन करने वाली घोषित करते हैं। इस धारा के तहत संयुक्त सचिव या इससे ऊंचे पद पर आसीन अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत आरोप की जांच से पहले सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक है।

न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत अपराध की जांच के मकसद से अधिकारियों का कोई वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। संविधान पीठ ने कहा, ‘‘भ्रष्ट नौकरशाह, चाहें उच्च्ंचे पद पर हों या निचले, सब एक समान हैं और उनसे एक समान ही व्यवहार करना होगा।’’

न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार राष्ट्र का शत्रु है और भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकारियों के बीच वर्गीकरण करना मुश्किल है क्योंकि यह भ्रष्टाचार निवारण कानून के खिलाफ है। न्यायालय ने कहा कि धारा 6-ए के तहत पहले अनुमति लेने का नतीजा अप्रत्यक्ष रूप से जांच में बाधा डालना है और यदि सीबीआई को प्रारंभिक जांच ही नहीं करने दी गई तो फिर तफतीश आगे कैसे बढ़ सकेगी।

संविधान पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत अपराध की जांच के लिये चुनिन्दा अधिकारियों के वर्ग के बीच किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जा सकता। भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत अपराध के मामले में अधिकारी के पद का क्या संबंध हो सकता है। इसके अलावा दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए के जरिये किसी भी प्रकार के अंतर से अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है।’’

न्यायालय ने कहा कि धारा 6-ए में प्रदत्त संरक्षण में भ्रष्ट व्यक्ति को पनाह देने की प्रवृत्ति दिखती है। न्यायालय ने कहा कि समान व्यवहार से किसी को कोई छूट नहीं दी जा सकती है और भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे अधिकारी को जांच की समान प्रक्रिया का सामना करना होगा।

न्यायालय ने पहले कहा था कि उसका मुख्य सरोकार धारा 6-ए की संवैधानिकता से है और यदि मनमाने तरीके का सवाल उठता है तो इस पर सात न्यायाधीशों की पीठ को विचार करना होगा। अतिरिक्त सालिसीटर जनरल के वी विश्वनाथ ने कहा था कि सरकार किसी भी भ्रष्ट नौकरशाह को संरक्षण नहीं देना चाहती है और यह प्रावधान सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिये है कि वरिष्ठ नौकरशाहों से बगैर किसी समुचित संरक्षा के पूछताछ नहीं की जा सके क्योंकि वे नीतिनिर्धारण की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।

उन्होंने यह भी कहा था कि वरिष्ठ नौकरशाह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने से न सिर्फ उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती है बल्कि विभाग को भी ठेस पहुंचती है और यही वजह है कि सरकार ने जांच से पहले शिकायत के स्वरूप पर विचार करने का फैसला किया था।

वरिष्ठ नौकरशाहों को जांच के प्रति संरक्षण का मसला करीब 17 साल पहले शीर्ष अदालत की समीक्षा के दायरे में आया था जब केन्द्र की इस दलील को ठुकरा दिया गया था कि नीति निर्धारक होने के कारण उन्हें थोथी शिकायतों से संरक्षण देने की आवश्यकता है।

इस संबंध में पहली याचिका सुब्रमणियन स्वामी ने 1997 में दायर की थी और बाद में 2004 में गैर सरकारी संगठन सेन्टर फार पब्लिक इंटरेस्ट लिटीगेशंस ने याचिका दायर की थी।

(भाषा)

http://www.jansatta.com/index.php?option=com_content&view=article&id=67199:2014-05-06-09-40-34&catid=1:2009-08-27-03-35-27


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close