Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | भ्रष्टाचार से लड़ने के जोखिम- धर्मेन्द्रपाल सिंह

भ्रष्टाचार से लड़ने के जोखिम- धर्मेन्द्रपाल सिंह

Share this article Share this article
published Published on Oct 8, 2014   modified Modified on Oct 8, 2014
जनसत्ता 8 अक्तूबर, 2014: प्रतिष्ठित पत्रिका ‘टाइम्स' ने 2011 में अपने एक अंक में दुनिया भर में हुए महाघोटालों की सूची प्रकाशित की थी। इस सूची में हमारे देश में हुए पौने दो लाख करोड़ रुपए के 2-जी घोटाले को दूसरा स्थान दिया गया। पहले नंबर पर अमेरिका का बदनाम वाटरगेट कांड था, जिसके खुलासे के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को त्यागपत्र देना पड़ा और उनकी सरकार में उच्च पदों पर बैठे कुछ अधिकारियों को जेल की हवा खानी पड़ी। 1974 के वाटरगेट कांड की गूंज अभी तक सुनाई देती है। प्रतिष्ठित समाचारपत्र ‘वाशिंगटन पोस्ट' ने निक्सन के भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ किया था। भारी दबाव के बाबजूद खबर लिखने वाले पत्रकार ने अपने स्रोत का नाम गुप्त रखा। उसने सारी खबरें ‘डीप थ्रोट' नामक काल्पनिक व्यक्ति के हवाले से लिखीं। वाटरगेट कांड के तीस वर्ष बाद सूत्र की असलियत उजागर हुई। पता चला कि डीप थ्रोट वास्तव में अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआइ का एक एजेंट था।

अब जरा इस घटना की तुलना सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा पर 2-जी और कोयला घोटाले के कुछ प्रमुख अभियुक्तों से अपने आवास पर मिलने के आरोप से की जाए। प्रसिद वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर उक्त इल्जाम लगाया है। सबूत के तौर पर वह रजिस्टर दिया है जिसमें सिन्हा के घर आने वालों के नाम और उनकी गाड़ियों के नंबर दर्ज हंै। सिन्हा ने माना कि रजिस्टर में लिखे नामों में से कुछ लोगों से वह मिले हैं, लेकिन यह भी कहा कि अधिकतर नाम गलत हैं। कानूनी पेच का फायदा उठा कर सिन्हा के वकील ने मांग की कि प्रशांत भूषण उस व्यक्ति का खुलासा करें जिसने उन्हें सिन्हा के अतिथियों की सूची सौंपी है। अदालत ने यह मांग मान ली। प्रशांत भूषण को अपने सूत्र का नाम एक बंद लिफाफे में लिख कर जमा करने का आदेश दे दिया। बस यहीं से विवाद शुरू हो गया। प्रशांत भूषण ने विसल ब्लोअर का नाम देने से इनकार कर दिया।

प्रशांत भूषण ने यह मामला सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआइएल) नामक स्वयंसेवी संगठन की ओर से उठाया है। सीपीआइएल की कार्यकारिणी ने उच्चतम न्यायालय का यह आदेश मानने से इनकार कर दिया है। संगठन की ओर से दाखिल शपथपत्र में कहा गया है कि सिन्हा के घर आने वाले मेहमानों की सूची देने वाले व्यक्ति का नाम जाहिर करने से उसकी जान पर खतरा आ सकता है। इस इनकार के बाद रंजीत सिन्हा के वकील ने केस खारिज करने की अपील की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया। अब अदालत ने सीबीआइ के विशेष वकील आनंद ग्रोवर से पूरे प्रकरण का अध्ययन कर सलाह मांगी है। उनका मशविरा मिलने के बाद ही न्यायालय कोई फैसला सुनाएगा। अपना आगे का कदम तय करेगा। सुनवाई की अगली तिथि दस अक्टूबर तय की गई है।

सीपीआइएल में फली नरीमन, अनिल धवन, प्रशांत भूषण जैसे नामी वकील हैं। उनका तर्क है कि अदालत को सीबीआइ निदेशक पर लगाए गए आरोपों की गहराई में जाना चाहिए। जानकारी देने वाले का नाम जानकर क्या हासिल होगा? शपथपत्र में जैन हवाला कांड, राडिया टेप जैसे कुछ पुराने उदाहरण देकर कहा गया है कि इन मामलों में भी अदालत को अज्ञात सूत्रों से भ्रष्टाचार की शिकायत मिली थी और तब अदालत ने खबर देने वाले का नाम नहीं पूछा था। अनेक बार तो समाचारपत्रों में भ्र ष्टाचार से जुड़ी खबरों का संज्ञान लेकर अदालत ने स्वयं जांच का आदेश दिया है। फिर इस बार विसल ब्लोअर का नाम क्यों पूछा जा रहा है?

बात आगे बढ़ाने से पहले संसद द्वारा चार महीने पहले बनाए गए विसल ब्लोअर कानून का जिक्र करना जरूरी है। इस कानून में सार्वजनिक या अन्य उच्च सरकारी पद पर बैठे किसी व्यक्ति के भ्रष्टाचार की सूचना देने वाले का नाम उजागर करने पर पचास हजार रुपए का जुर्माना और तीन वर्ष तक कारागार का प्रावधान है। यह कानून भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले व्यक्ति की जान-माल की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। हड़बड़ी में पारित इस कानून के अध्याय दो में लिखा है कि किसी भी भ्रष्टाचार के खुलासे पर तब तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जब तक कि अधिकृत अधिकारी कम्पीटेंट अथॉरटी) को शिकायत या सूचना देने वाले व्यक्ति की पहचान नहीं बताई जाती। हां, अधिकृत अधिकारी सूचना देने वाले व्यक्ति का नाम उसकी अनुमति के बिना जाहिर नहीं कर सकता। इस कानून में एक और कमी है। लिखा है कि अगर विसल ब्लोअर अपना नाम गुप्त रखना चाहता है तो उसे शिकायत के समर्थन में लिखित साक्ष्य अधिकृत अधिकारी को मुहैया कराने होंगे। यह प्रावधान शिकायतकर्ता पर सबूत जुटाने का अतिरिक्त बोझ डालता है।

वर्ष 2004 में विसल ब्लोअर को संरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर दबाव डाला था। इसके बाद ही ‘पब्लिक इंटरेस्ट डिसक्लोजर एंड प्रोटेक्शन ऑफ इनफॉरमेशन रेगुलेशन एक्ट' बना। इसमें भ्रष्टाचार की शिकायत प्राप्त करने के लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग को अधिकृत किया गया। इसमें भी विसल ब्लोअर का नाम गुप्त रखने की हिदायत है।

संसद से पारित होने और राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिए जाने के बावजूद विसल ब्लोअर अधिनियम अभी तक वजूद में नहीं आ पाया है। सरकार ने इस कानून को लागू करने के लिए जरूरी नियम नहीं बनाए हैं। लोकपाल कानून भी लंबे समय से अमली जामा पहनाए जाने का इंतजार कर रहा है। इस ढिलाई का दुष्परिणाम भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले ईमानदार लोगों को भुगतना पड़ रहा है। पिछले बारह वर्षों में भ्रष्टाचार और घोटालों का भंडाफोड़ करने वाले चालीस लोगों की हत्या हो चुकी है। जानलेवा हमलों में सैकड़ों घायल हुए हैंै। प्रताड़ित किए गए ईमानदार लोगों की तो कोई गिनती ही नहीं है।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वडरा के भूमि-घोटालों पर कार्रवाई करने वाले आइएएस अधिकारी अशोक खेमका को प्रताड़ित करने तथा एम्स के वरिष्ठ डॉक्टरों की अनिमियतताएं उजागर करने वाले मुख्य सतर्कता अधिकारी संजीव चतुर्वेदी का तबादला तो ताजा घटनाएं हैं। लगता है मौजूदा व्यवस्था भ्रष्टाचार के विरुद्ध कदम उठाने के बजाय ऐसे मामले उठाने वालों के खिलाफ है। कई प्रतिष्ठित संगठन और व्यक्ति रंजीत सिन्हा मामले में प्रशांत भूषण को विसल ब्लोअर का नाम बताने संबंधी अदालती आदेश का विरोध कर रहे हैं। प्रशांत भूषण ने कहा था कि जानकारी देने वाले अपने सूत्र की सहमति के बाद ही वह अदालत को उसका नाम बताएंगे। लगता है उनके सूत्र ने भी अपना नाम उजागर करने से इनकार कर दिया।

निश्चय ही भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना जोखिम भरा काम है। यह साहस करने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करना सरकार और अदालतों का दायित्व है। अरबों-खरबों रुपए का घोटाला करने वाले लोग और उनके सरपरस्त बहुत ताकतवर होते हैं। उनकी पहुंच और क्रूरता का प्रमाण कई बार मिल चुका है। सन 2003 में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के ईमानदार इंजीनियर सत्येंद्र दुबे ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पत्र लिख कर अपने विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की जानकारी दी थी। दुबे ने अपना नाम गुप्त रखने का आग्रह भी किया था, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनका पत्र ज्यों का त्यों संबंधित विभागों को भेज दिया। इसके कुछ दिन बाद दुबे की हत्या हो गई। इसी प्रकार 2005 में इंडियन ऑयल के मार्केटिंग मैनेजर मंजुनाथ को पेट्रोल डीलरों के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। ऐसे और भी दर्जनों नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई और सुरक्षा न मिलने के कारण उनकी जान चली गई।

दुनिया के सभी सभ्य देशों में कर-चोरी, पद और सत्ता के दुरुपयोग, सरकारी ठेकों में हेराफेरी, वित्तीय भ्रष्टाचार और कानून का गंभीर उल्लंघन करने वाले लोगों के बारे में जानकारी देने वाले व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान की जाती है। नाम जाहिर कर उनकी जान-माल को नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है। 2005 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने विसल ब्लोअर को अधिक से अधिक सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश दिया था। स्वीडन के संविधान में तो प्रेस की आजादी से जुड़ा एक प्रावधान है, जिसके अनुसार पत्रकार द्वारा अपने गुप्त सूत्र का नाम उजागर करना दंडनीय अपराध है।

वैश्वीकरण के बाद भीमकाय कॉरपोरेट घराने बहुत ताकतवर हो गए हैं। वे अपने हित में सरकार के फैसले प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं। 2-जी और कोयला घोटालों से उनकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। कई बार उनके भ्रष्टाचार से देश की वित्तीय स्थिति, संपदा और संस्थानों को अपूरणीय क्षति पहुंची है। उन पर हाथ डालना बहुत कठिन है। ऐसे ताकतवर लोगों के भ्रष्टाचार की जानकारी देने वाले सूत्र का नाम सार्वजनिक करने का अर्थ है उसके जान-माल को खतरे में डालना। अगर विसल ब्लोअर का नाम उजागर किया जाने लगा तो भविष्य में कोई भी नेक नागरिक बेईमानों के खिलाफ खड़े होने का साहस नहीं जुटा पाएगा।

वर्ष 1997 में हवाला कांड पर फैसला देते हुए उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा ने स्पष्ट आदेश दिया था कि भ्रष्टाचार के मामलों में सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय को अपनी जांच-रिपोर्ट सरकार को दिखाने की जरूरत नहीं है; ऐसे मामलों में दोनों विभागों को सरकार से निर्देश लेने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। सरकारी दबाव से बचाने के लिए ही अदालत ने इन दोनों विभागों को केंद्रीय सतर्कता आयोग की निगरानी में सौंपा था। फिर भी सीबीआइ बार-बार इस आदेश का उल्लंघन करती है। कोयला घोटाले की जांच के सिलसिले में सरकारी दबाव भांप कर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दो माह के भीतर सीबीआइ को स्वायत्तता देने का कानून बनाने का निर्देश दिया था। खानापूर्ति के लिए कुछ नियम जरूर बनाए गए हैं, इससे अधिक कुछ नहीं किया गया।

पत्रकारिता के पेशे में खबर का सूत्र गुप्त रखने की परंपरा पुरानी है। इसका उद्देश्य षड्यंत्र रचना नहीं, अपने उस सूत्र के हित की रक्षा करना होता है। इस मुद््दे पर देश की अदालतों में कई बार बहस हो चुकी है। जो फैसले आए वे अलग-अलग हैं। सामान्य समझ की बात है कि भ्रष्टाचार का कोई मामला प्रकाश में आने पर अगर सरकार या अदालत आरोप की जांच कर दोषियों को सजा देने के बजाय, सूचना देने वाले के पीछे पड़ जाएगी तो इससे देश का भारी अहित हो सकता है। बेईमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही लड़ाई को धक्का पहुंचेगा। आशा की जानी चाहिए कि उच्चतम न्यायालय इन सब बातों पर गौर करेगा।


- See more at: http://www.jansatta.com/politics/editorial-risk-to-fight-with-corruption/#sthash.2pH1026l.dpuf


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close