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न्यूज क्लिपिंग्स् | मंदी व शेयरों में तेजी के अंतर्विरोध-- भरत झुनझुनवाला

मंदी व शेयरों में तेजी के अंतर्विरोध-- भरत झुनझुनवाला

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published Published on Mar 20, 2018   modified Modified on Mar 20, 2018
इस समय सकल घरेलू उत्पाद या ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) में वृद्धि वापस पटरी पर आ चुकी है। देश में कुल उत्पादन की मात्रा का ब्योरा जीडीपी से मिलता है। नोटबंदी से पहले हमारी जीडीपी की ग्रोथ रेट 7 से 8 प्रतिशत रहती थी। नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद यह ढीली पड़ गई थी। अब यह पुरानी दर पर वापस पहुंच गई है। दूसरा शुभ संकेत शेयर बाजार में उछाल का है। 2016 के पूर्व शेयर बाजार का सूचकांक ‘सेंसेक्स' 28000 से 30000 के दायरे में रहता था। वर्तमान में यह 33000 से ऊपर चल रहा है। सेंसेक्स की गणना प्रमुख कंपनियों के शेयर के दामों से की जाती है। सेंसेक्स में उछाल का अर्थ है कि शेयरों के दाम बढ़ रहे हैं। निवेशकों में उत्साह है। उन्हें आशा है कि आने वाले समय में देश की कंपनियां भारी लाभ कमाएंगी और वे शेयर खरीदने को उत्सुक हैं।


तीसरा शुभ संकेत रुपये के मूल्य में स्थिरता का है। डालर के सामने रुपये का मूल्य पिछले 4-5 वर्षों से 64 से 66 के दायरे में बना हुआ है। हमें विदेशी मुद्रा मूल रूप से निर्यातों अथवा विदेशी निवेश से मिलती है। रुपये के मूल्य का अपनी जगह टिका रहना बताता है कि हमारे बाहर जाने वाले निर्यात एवं भीतर आने वाला विदेशी निवेश ठीकठाक है। इन तीनों शुभ संकेतों से भारतीय अर्थव्यवस्था की अच्छी तस्वीर उभर कर आती है।


लेकिन दूसरी तरफ संकट के भी संकेत मिल रहे हैं। बीते वर्ष 2016-17 में बैंकों द्वारा दिए गए लोन में मात्र 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। यह वृद्धि वास्तव में उदासी का द्योतक है। महंगाई से हमारी मुद्रा की कीमत अथवा माल खरीदने की शक्ति का ह्रास होता है। जैसे बीते वर्ष यदि किसी शर्ट का दाम 100 रुपये था तो इस वर्ष 5 प्रतिशत महंगाई जोड़ कर उसी शर्ट का दाम 105 रुपये हो जाता है। इसी प्रकार बैंकों द्वारा दिए गए लोन में भी महंगाई के बराबर वृद्धि सहज ही होनी चाहिए।


वर्ष 2016-17 में महंगाई में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसी वर्ष बैंकों द्वारा दिए गए लोन में भी 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। यानी बैंकों द्वारा दिए गए लोन में सच्ची वृद्धि तनिक भी नहीं हुई है। बल्कि खटाई में पड़ने वाले लोन में वृद्धि हो रही है। जिन्हें नॉन-परफार्मिंग एसेट कहा जाता है। संकट का दूसरा संकेत रोजगार न बनने का है। वर्ष 2015-16 में संगठित क्षेत्र में 2 लाख रोजगार बने थे। वर्ष 2011 के पहले हर वर्ष 8 लाख रोजगार बन रहे थे। हमारे सामने दो परस्पर विरोधी संकेत उपलब्ध हैं। एक तरफ जीडीपी वापस पटरी पर आ गया है, शेयर बाजार उछल रहा है और रुपया अपनी जगह टिका हुआ है। दूसरी तरफ बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन सपाट हैं और रोजगार घट रहे हैं।


इन परस्पर विरोधी संकेतों को समझने के लिए हमें तीनों शुभ संकेतों की तह में जाना होगा। पहला शुभ संकेत जीडीपी ग्रोथ रेट का है। शीर्ष स्तर पर वर्तमान एनडीए सरकार ईमानदार है। पंजाब नेशनल बैंक जैसे घोटाले नीचे के कर्मियों द्वारा किए गए हैं। आशा थी कि सरकार की ईमानदारी के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के ग्रोथ रेट में वृद्धि होगी। जैसे पूर्व में किसी भ्रष्ट मंत्री द्वारा 1000 करोड़ की रकम को विदेशी बैंकों में जमा कराने को बाहर भेजा जा रहा था। अब यह रकम घरेलू बैंकों में जमा हो रही है। इसलिए जीडीपी की ग्रोथ रेट में वृद्धि होनी चाहिए थी। ग्रोथ रेट का पुराने 7-8 प्रतिशत की दर पर वापस आना बताता है कि ईमानदारी के लाभ को गलत नीतियां स्वाहा कर गई हैं।


दूसरा शुभ संकेत शेयर बाजार में उछाल का है। यहां विचारणीय है कि जीडीपी की ग्रोथ रेट 7 प्रतिशत के आसपास टिकी होने के बावजूद शेयर बाजार में उछाल क्यों आ रहा है? जीडीपी की ग्रोथ रेट और शेयर बाजार को साथ-साथ चलना चाहिए जैसे गाड़ी के दो पहिए साथ-साथ चलते हैं। लेकिन वर्तमान में जीडीपी की ग्रोथ रेट स्थिर है जबकि शेयर बाजार उछल रहा है। इस विरोधाभासी चाल का रहस्य यह दिखता है कि एनडीए सरकार ने छोटे उद्यमों को समाप्त करके बड़ी कंपनियों को बढ़ावा दिया है। कुल उत्पादन पूर्ववत‍् है परन्तु अब यह बड़ी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है, जिससे इनके शेयर उछल रहे हैं, जैसे किचन में चाय पूर्व की तरह 2 प्याले ही बनें परन्तु इन दोनों प्यालों को एक ही व्यक्ति पिये तो उसकी ऊर्जा बढ़ जाती है।


नोटबंदी और जीएसटी ने छोटे उद्यमों का धंधा चौपट कर दिया है। अब पूरा बाजार बड़ी कंपनियों के हाथ में जा रहा है। छोटे उद्यमों के मरने से जीडीपी की ग्रोथ रेट शिथिल पड़ी हुई है जबकि बड़ी कंपनियों का उसी बाजार पर कब्जा होने से उनके शेयरों में उछाल आ रहा है। मान लीजिए पहले शहर में डबल रोटी बनाने के 10 छोटे कारखाने थे। अब ये बंद हो गए और उतनी ही डबल रोटी एक बड़ी कंपनी द्वारा बनाई जाने लगी। डबल रोटी का उत्पादन पूर्ववत‍् रहा। इसलिए जीडीपी की ग्रोथ रेट शिथिल है। लेकिन बड़ी कंपनी का धंधा बढ़ गया। इसलिए शेयर बाजार उछल रहा है। अतः शेयर बाजार में उछाल वास्तव में शुभ संकेत नहीं है बल्कि यह छोटे उद्योगों की मृत्यु का सूचक है। जैसे सूखे में गांव मरता है परन्तु साहूकार की बल्ले-बल्ले होती है वैसे ही नोटबंदी और जीएसटी के कारण अर्थव्यवस्था ठंडी है परन्तु शेयर बाजार उछल रहा है।


तीसरा शुभ संकेत बढ़े हुए सीधे विदेशी निवेश का है। सामान्य परिस्थिति में विदेशी निवेश में वृद्धि का अर्थ देश में नई फैक्टरियों की स्थापना होता है जैसे सुजुकी ने गुरुग्राम में कार बनाने की फैक्टरी लगाई। परन्तु इस समय सीधा विदेशी निवेश नई फैक्टरी लगाने में कम और पुरानी फैक्टरियों को खरीदने में ज्यादा आ रहा है। वर्ष 2015 में देश में 44 अरब डालर विदेशी निवेश आया था, जिसमें 34 अरब डालर नई फैक्टरियां लगाने में और 10 अरब डालर पुरानी फैक्टरियों को खरीदने में आया था।
वर्ष 2016 में उतना ही 44 अरब डालर विदेशी निवेश आया परन्तु नई फैक्टरियां लगाने में केवल 23 अरब डालर तथा पुरानी फैक्टरियां खरीदने में 21 अरब डालर। पुरानी फैक्टरियां खरीदने को आने वाला विदेशी निवेश दो गुणा हो गया। यह बताता है कि विदेशी निवेश का बढ़कर आना शुभ संकेत नहीं है बल्कि यह घरेलू उद्यमों के संकट को दिखा रहा है। जैसे मरीज को भोजन कराने के लिए एक के स्थान पर दो नर्सों की जरूरत पड़े और दो नर्सों की सहायता से वह कुछ खाने लगे तो शुभ संकेत नहीं होता है।


अंतिम आकलन है अर्थव्यवस्था ठीक नहीं है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन खटाई में पड़ रहे हैं। संगठित रोजगार का संकुचन हो रहा है। सरकार की ईमानदारी के बावजूद जीडीपी ग्रोथ रेट में वृद्धि नहीं हो रही है। छोटे उद्योगों का सफाया करके शेयर बाजार उछल रहा है। सीधा विदेशी निवेश हमारी संकटग्रस्त कंपनियों को खरीदने में आ रहा है। प्रधानमंत्री को चेतने की जरूरत है।

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।


http://dainiktribuneonline.com/2018/03/%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B5-%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%9C%E0%


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