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न्यूज क्लिपिंग्स् | मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनता झारखंड, खुद कर रहा 1.04 लाख टन मछली का उत्पादन

मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बनता झारखंड, खुद कर रहा 1.04 लाख टन मछली का उत्पादन

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published Published on Dec 16, 2014   modified Modified on Dec 16, 2014
प्रभात खबर,रांची: जल की रानी मछली अब झारखंड के लोगों की जिंदगानी बन रही है. पालने, खाने-खिलाने व बेचने की पसंदीदा चीज. सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य के करीब 60-65 फीसदी लोग मछली या इसके उत्पाद का सेवन करते हैं. मछली का उत्पादन झारखंड में लगातार बढ़ रहा है. यह सरकार व मत्स्य किसानों के मिले-जुले प्रयास का परिणाम है.

अभी मछली की घरेलू जरूरत प्रति वर्ष 1.40 लाख टन है, जबकि उत्पादन 1.04 लाख टन हो रहा है. इस तरह अभी 36 हजार टन मछली की कमी है. यह कमी आंध्र प्रदेश व पश्चिम बंगाल से मछली आयात कर पूरी की जा रही है. राज्य में मछली का उत्पादन बढ़ने से ही राजधानी सहित अन्य शहरों में स्थानीय मछलियां उपलब्ध हैं, जिन्हें झारखंड के लोग बड़े चाव से खाते हैं.

तालाब है उत्पादन केंद्र

झारखंड में करीब 1.77 लाख हेक्टेयर का जल क्षेत्र उपलब्ध है. इसमें राज्य की कुल 16 नदियों की करीब 1800 किमी लंबा जल क्षेत्र शामिल नहीं है. मछली का उत्पादन मुख्यत: तालाबों में हो रहा है. राज्य भर में 15496 सरकारी व 85849 निजी तालाब हैं. इनमें रोहू, कतला व अन्य मछलियों का पालन मत्स्य किसान कर रहे हैं. अन्य जलाशयों में भी मामूली तौर पर मत्स्य पालन हो रहा है.

जिंदा मछली की मांग ज्यादा

आयातित व मरी मछलियों की तुलना में जिंदा मछली की मांग ज्यादा है. जिंदा मछलियों का शौक कुछ ऐसा है कि लोग इसके लिए प्रति किलो 20-30 रु अधिक कीमत देने को तैयार रहते हैं.

रांची के मछली बाजार

लालपुर, कांटाटोली, शहीद मैदान एचइसी, डोरंडा (पोस्ट ऑफिस, खुखरी पेट्रोल पंप के सामने, मछली घर व डोरंडा बाजार), हिनू सब्जी बाजार, एचइसी टेक पोस्ट, सेक्टर दो, धुर्वा बस स्टैंड, देवी मंडप रोड, गोंदा, खादगढ़ा, हरमू बाजार, कडरू मोड़ व बूटी मोड़.

मछली उत्पादन में बाधा

ज्यादातर तालाब छोटे आकार के हैं, जो वर्षा आधारित व पुराने हैं. बड़े तालाब भी भराव की वजह से बेहतर परिणाम नहीं देते. वहीं राज्य में मछली के अंड बीज (स्पॉन) की भारी कमी है. मत्स्य निदेशक राजीव कुमार के अनुसार अंड बीज की वार्षिक जरूरत 500 करोड़ है. इनमें से 260 करोड़ रामसागर, बांकुड़ा से आता है. शेष की पूर्ति स्थानीय रूप से होती है.

निदेशालय मछली उत्पादन के हर प्रयास कर रहा है. बेरोजगार युवाओं के लिए संदेश हैं कि वे मछली पालन से जुड़ें. सबके सहयोग से ही मत्स्य जरूरत पूरी होगी. राजीव कुमार, निदेशक मत्स्य


http://www.prabhatkhabar.com/news/jharkhand/fish-production-self-sufficient-jharkhand-fish-production/227770.html


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