Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | मनरेगा जरूरी या मजबूरी-7: शहरी श्रमिकों को भी देनी होगी रोजगार की गारंटी

मनरेगा जरूरी या मजबूरी-7: शहरी श्रमिकों को भी देनी होगी रोजगार की गारंटी

Share this article Share this article
published Published on Jul 10, 2020   modified Modified on Jul 11, 2020

-डाउन टू अर्थ,

2005 में शुरू हुई महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, योजना में विसंगतियां भी कम नहीं । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, - 100 दिन के रोजगार का सच । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा, 250 करोड़ मानव दिवस रोजगार हो रहा है पैदा, जबकि अगली कड़ी में आपने पढ़ा, 3.50 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता पड़ेगी । इसके बाद आपने शंकर सिंह और निखिल डे का लेख पढ़ा, आज पढ़ें, अमित बसोले व रक्षिता स्वामी का लेख-

दुनिया के सबसे बड़े लॉकडाउन को भारत ने कैसे झेला, इसका पता इस बात से चलेगा कि हमारे राज्य और समाज ने हमारे श्रमिकों के साथ क्या व्यवहार किया और इस समस्या से कैसे निपटा? बड़े पैमाने पर ये श्रमिक खुद के भरोसे छोड़ दिए गए। ये ऐसे लोग थे, जिन्होंने इन शहरों का निर्माण किया और उनकी सेवा की, चमकदार राजमार्गों और फ्लाईओवर का निर्माण किया और एक दिन उन्हीं चमकदार रास्तों से सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घर पैदल वापस आने के लिए मजबूर हो गए। स्ट्रीट वेंडर्स देखते रहे कि कैसे पुलिस की गाड़ियों ने उनके फलों और सब्जियों के ठेले उजाड़ दिए। ये वही ठेले थे, जिसके जरिए उन घरों तक डोर स्टेप डिलीवरी की जाती थी, जो “सोशल डिस्टेंसिंग” बनाए रखते हुए अपने लिए सुविधाएं तलाश रहे थे। नौकरी, आय और सामाजिक सुरक्षा न होने के बावजूद सफाईकर्मी, डिलिवरी एजेंट, टेम्पो और ट्रक चालक शहर और कस्बों का भारी बोझ अपने कंधों पर उठाते रहे।

ये संकट हमें फिर से याद दिलाता है कि हमारे अधिकतर नागरिकों का जीवन कितना अनिश्चित और कमजोर है। हालांकि भारत का ग्रामीण और कृषि संकट पहले से चल रहा था और इस वक्त शहरी श्रमिकों का जीवन भी सामाजिक सुरक्षा की कमी के कारण कठिन बन गया। ग्रामीण श्रमिकों की मनरेगा तक पहुंच है, लेकिन शहरी श्रमिकों के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है।

इसलिए, शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम की दिशा में काम करने का ये एक उपयुक्त समय है। शहरी श्रमिकों को रोजगार का कानूनी अधिकार प्रदान करने से शहरी अर्थव्यवस्था में कम आमदनी पर काम करने वाले श्रमिकों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उनके लिए रोजगार की कमी दूर होगी। सबसे महत्वपूर्ण यह कि कुछ शहरों में ही प्रवासी श्रमिकों के जुटान की गति में कमी आएगी।

इतना ही नहीं, ये शहरी बुनियादी ढांचे और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करेगा, शहरी संपत्तियों और पारिस्थितिकी तंत्र को फिर से बहाल करेगा, युवाओं में कौशल बहाल करेगा और शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता बढ़ाएगा। संक्षेप में, यह हमारे कस्बों और शहरों के सार्वजनिक और सामूहिक पहलुओं पर आवश्यक और प्रतिक्षित हस्तक्षेप को बढ़ाएगा। इस तरह का कार्यक्रम न केवल कोविड-19 के कारण शहरी अर्थव्यवस्था को पहुंचे झटके से उबरने के उपाय के रूप में काम करेगा, बल्कि यह भविष्य में आने वाले किसी और झटके को कम करने में महत्वपूर्ण साबित होगा। विशेष रूप से ये जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन होने वाले आर्थिक और पारिस्थितिक नुकसान से उबरने में काफी मदद करेगा। 

मनरेगा का ये शहरी संस्करण उन कार्यों की प्रकृति को व्यापक बना सकता है, जो रोजगार गारंटी के माध्यम से किए जा सकते हैं। खास कर, “ग्रीन जॉब्स” जैसे सामूहिक जल निकायों का निर्माण और मरम्मत, शहरी मैदान और आर्द्रभूमि का कायाकल्प, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, वनस्पति और पेड़ लगाना, सार्वजनिक पार्कों, खेल के मैदानों और फुटपाथों का निर्माण करना, आश्रय स्थलों, संगरोध सुविधाओं जैसे सामान्य बुनियादी ढांचे का निर्माण करना, किचन गार्डन बनाना, सर्वेक्षण करना आदि।

मनरेगा भी सफल कार्यान्वयन के लिए कई सबक सिखाता है। पिछले 15 वर्षों में कार्यान्वयन की व्यावहारिक प्रणाली विकसित की गई है। उदाहरण के लिए, काम की मांग करने वाले श्रमिकों को उनका अधिकार मिला है। जैसे, उन्हें कार्यस्थल पर न्यूनतम सुविधाएं, मजदूरी भुगतान में देरी के लिए मुआवजे का भुगतान, अपने गांवों में काम की योजना बनाने में भाग लेने और काम मांगने के 15 दिनों के अन्दर काम नहीं मिलने पर बेरोजगारी भत्ता दिए जाने जैसे अधिकार आदि मिले हैं। इसके अलावा, खर्च का लेखा परीक्षा का अधिकार और कार्यक्रम के कार्यान्वयन से संबंधित सभी सूचनाओं तक पहुंच का अधिकार ये बताता है कि शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम में इन बातों को अवश्य ही शामिल किया जाना चाहिए।

कई राज्यों ने इस दिशा में पहले ही कदम उठा लिए हैं। केरल, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश शहरी रोजगार कार्यक्रम चला रहे हैं। अन्य राज्य भी इसी दिशा में सोच रहे हैं। लेकिन, इस कार्यक्रम को वाकई प्रभावी बनाने के लिए केंद्र सरकार को अपने बड़े संसाधनों को आगे बढ़ाना चाहिए। ठीक से लागू किया जाए तो मनरेगा के साथ-साथ इस शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम की कुल लागत 5 लाख करोड़ या जीडीपी का 2.5 प्रतिशत होने की संभावना है। यह एक बड़ी संख्या है। लेकिन इसे बेरोजगार श्रमिकों के लिए “भत्ता” के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।


-डाउन टू अर्थ, https://www.downtoearth.org.in/hindistory/development/mgnrega/mgnrega-in-covid-19-period-part-seven-72202


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close