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न्यूज क्लिपिंग्स् | मप्र में लोकायुक्त को और अधिकारों की जरूरत

मप्र में लोकायुक्त को और अधिकारों की जरूरत

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published Published on Aug 24, 2011   modified Modified on Aug 24, 2011

धर्मेद्र पैगवार, भोपाल। जब पूरे देश में जनलोकपाल को लेकर आम जनता सड़कों पर है, तब सूबों में तैनात लोकायुक्त संगठनों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। मप्र में लोकायुक्त संगठन तो है, लेकिन खुद यहां के लोकायुक्त कई साल पहले इस संगठन को बिना दांत का शेर कह चुके हैं। लोकायुक्त जस्टिस प्रकाश प्रभाकर नावलेकर कहते हैं कि यहां संगठन तो है, लेकिन कुछ ऐसे अधिकारों की जरूरत है जिससे भ्रष्टाचारियों पर जल्दी और सख्त कार्रवाई हो सके।

अभियोजन स्वीकृति में देरी, सरकारी वकीलों की व्यस्तता, छापों के लिए कोर्ट की मंजूरी जैसे कई विषय हैं, जिनके कारण लोकायुक्त की कार्रवाई में देरी होती है और बाद में ये मामले लंबी कानूनी प्रक्रिया में फंस जाते हैं। इससे भ्रष्टों को समय पर सजा नहीं मिल पाती। लोकायुक्त नावलेकर कहते हैं कि वैसे तो अन्य राज्यों से बेहतर संगठन और अधिकार मप्र में हैं, लेकिन कई ऐसे अधिकार हैं जिनकी जरूरत महसूस की जा रही है।

वे कहते हैं कि मौजूदा कानून में अभियोजन स्वीकृति के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। इसके लिए एक निश्चित समय सीमा होना चाहिए। इसके बाद लोकायुक्त संगठन बिना अनुमति के भी चालान पेश कर सके। दूसरा, संगठन को भ्रष्ट नौकरशाहों की संपत्ति जब्त करने का अधिकार मिलना भी जरूरी है। छापे के लिए अदालत की अनुमति खत्म कर इसके अधिकार लोकायुक्त को मिलें तो काम में आसानी होगी। वे कहते हैं भ्रष्टाचार के मामलों में सरकारी वकीलों पर निर्भरता खत्म होनी चाहिए। लोकायुक्त संगठन के अपने वकील और भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए अलग अदालत होने से मामलों का निपटारा जल्दी हो सकेगा। अभी सरकारी वकीलों के पास दूसरे मामले भी होते हैं। फैसलों में देरी से भ्रष्टों के खिलाफ समाज में समय पर संदेश नहीं जा पाता।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहे नावलेकर कहते हैं कि इन मुद्दों पर लोकपाल कांफ्रेंस में बात हो चुकी है। दिल्ली के लोकायुक्त मनमोहन सरीन की अध्यक्षता में बनी एक कमेटी ने एक मसौदा भी तैयार किया है।

बड़े अफसरों के खिलाफ देरी

प्रदेश में मौजूदा सरकार ने अपने तीन आईएएस अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृत नहीं दी और दो के खिलाफ तो चालान पेश होने के बाद भी सरकार कार्रवाई नहीं कर पाई।

वर्ष 1982 में बने लोकायुक्त संगठन ने समय के साथ कई परिवर्तन देखे, लेकिन यहां का संगठन कोई इतनी बड़ी कार्रवाई नहीं कर पाया, जैसी की कर्नाटक में हुई। यहां की सरकारें भी इस मामले में संगठन से असहयोग करती नजर आई हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव रेंक के अफसर यूके सामल के खिलाफ सरकार ने लंबे समय तक अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी। इस कारण संगठन को उनके रिटायर होने का इंतजार करना पड़ा।

आईएएस अफसर विनोद सेमवाल और संजय शुक्ला के खिलाफ जब बिना सरकार की अनुमति के चालान पेश किए गए तो सरकार चार साल बीतने के बाद भी कार्रवाई नहीं कर पाई।

7 मंत्रियों की जांच लंबित

प्रदेश सरकार के सात मंत्रियों के खिलाफ भी लोकायुक्त में शिकायतें हुई हैं। ये शिकायतें अभी जांच में लंबित हैं। इससे पहले दिग्विजय सरकार के दो मंत्रियों बीआर यादव और राजेंद्र सिंह के खिलाफ प्रकरण दर्ज हुए थे। ये दोनों मामले अभी लंबित हैं। इनको मिलाकर अभी अदालतों में 274 मामले लंबित हैं।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/madhyapradesh/4_7_6330800.html


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