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न्यूज क्लिपिंग्स् | महाराष्ट्र के कपास उत्पादक किसानों को खूब लुभा रहा ‘पीला सोना’

महाराष्ट्र के कपास उत्पादक किसानों को खूब लुभा रहा ‘पीला सोना’

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published Published on Oct 1, 2013   modified Modified on Oct 1, 2013
इंदौर। सोयाबीन या ‘पीले सोने’ की उपज से पसीने का बेहतर मोल मिलने की उम्मीदों के कारण महाराष्ट्र के कपास उत्पादक किसान तेजी से इसकी खेती की ओर मुड़ रहे हैं। पिछले तीन साल में महाराष्ट्र में सोयाबीन के रकबे में सिलसिलेवार इजाफा दर्ज किया गया है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बताया, ‘महाराष्ट्र में पारंपरिक रूप से कपास उगाने वाले ज्यादातर किसान अपेक्षाकृत बेहतर भाव की उम्मीद में सोयाबीन की खेती की ओर मुड़ रहे हैं। इससे देश के सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।’
अग्रवाल ने बताया कि सोयाबीन के उन्नत बीजों के इस्तेमाल में भी महाराष्ट्र देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले आगे है। यह भी महाराष्ट्र में सोयाबीन की उत्पादकता बढ़ने का अहम कारण है।
उन्होंने सोपा के ताजा आंकड़ों के हवाले से बताया कि देश के दूसरे सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक महाराष्ट्र में इस मौसम में सोयाबीन का रकबा वर्ष 2012 के खरीफ सत्र के मुकाबले 20.45 फीसद बढ़कर 38.70 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। यह मौजूदा सत्र में मुल्क के कुल सोयाबीन रकबे 120.33 लाख हेक्टेयर का लगभग 32 प्रतिशत है।
अग्रवाल ने बताया कि देश में इस खरीफ सत्र में सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता औसतन 1,079 किलोग्राम रहने का अनुमान है, जिससे इस तिलहन फसल की राष्ट्रीय पैदावार 129.83 लाख टन रह सकती है।
उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में इस मौसम के दौरान सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़कर 1,255 किलोग्राम के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच सकती है। इससे राज्य में सोयाबीन उत्पादन 48.57 लाख टन रह सकता है। अग्रवाल के मुताबिक महाराष्ट्र में कपास को सोयाबीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है और इस तिलहन फसल का रकबा लगातार बढ़ रहा है। सोपा के आंकड़े इस बात की तसदीक करते हैं।
ये आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2011 के खरीफ सत्र के दौरान महाराष्ट्र में 30.61 लाख हेक्टेयर सोयाबीन बोया गया और इस तिलहन फसल की पैदावार 35.61 लाख टन रही थी।
वर्ष 2012 के खरीफ सत्र में महाराष्ट्र में सोयाबीन का रकबा बढ़कर 32.13 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया, जबकि इस तिलहन फसल का उत्पादन 39.95 लाख टन रहा था।
आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक मध्यप्रदेश में इस तिलहन फसल के रकबे में इजाफे की दर महाराष्ट्र से काफी कम है। मध्यप्रदेश में सोयाबीन का रकबा धीरे..धीरे ठहराव की ओर बढ़ रहा है।
मौजूदा खरीफ सत्र के दौरान मध्यप्रदेश में सोयाबीन के बुआई क्षेत्र में केवल 7.7 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गयी और यह 62.61 लाख हेक्टेयर रहा।
बहरहाल, इस मौसम में मध्यप्रदेश में भारी मानसूनी वर्षा और खेतों में जल जमाव के चलते सोयाबीन की फसल को खासा नुकसान पहुंचा। नतीजनतन सूबे में सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता घटकर महज 950 किलोग्राम रह सकती है। इससे देश के सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य में तिलहन फसल की पैदावार पिछले सत्र के मुकाबले करीब 11 फीसद गिरकर 59.48 लाख टन पर सिमट सकती है।
खरीफ 2012 के दौरान मध्यप्रदेश में 58.13 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी, जबकि 1,150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता के साथ इस तिलहन फसल की पैदावार 66.85 लाख टन रही थी।
(भाषा)

http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/3-2009-08-27-03-36-02/52299-2013-09-30-10-12-08


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