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न्यूज क्लिपिंग्स् | माताप्रसाद की सादगी नेताओं के लिए आईना

माताप्रसाद की सादगी नेताओं के लिए आईना

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published Published on Aug 17, 2010   modified Modified on Aug 17, 2010

जौनपुर [योगेश श्रीवास्तव]। आज के दौर में जहां, एक बार विधायक या मंत्री बनते ही नेतागण गाड़ी-बंगले के साथ ही लाखों-करोड़ों में खेलने लगते हैं, वहीं पाच बार विधायक, 12 साल तक एमएलसी, मंत्री और साढ़े पाच साल तक राज्यपाल रहे माता प्रसाद को कंधे पर झोला लटकाए पैदल चलते तो कभी रिक्शे पर बैठे बाजार से खरीदे सामान को संभालते आते-जाते देख सकते हैं।

मास्टर साहब' से महामहिम' यानी जीवन में फर्श से अर्श तक का सफर किंतु सादगी ऐसी जिस पर हठात विश्वास करना कठिन कि यह इसी दौर का दृश्य है!

चमड़े का छोटा-मोटा व्यवसाय करने वाले मछलीशहर के कजियाना निवासी जगरूप राम की सात संतानों में दूसरे माता प्रसाद बचपन से ही मेधावी रहे। बाबू जगजीवन राम को आदर्श मानने वाले माता प्रसाद ने 1942-43 में मछलीशहर से हिंदी-उर्दू में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की। 1944-46 में गोरखपुर से नार्मल स्कूल की ट्रेनिंग के बाद मडिय़ाहूं क्षेत्र के प्राइमरी स्कूल बेलवा में सहायक अध्यापक हो गए।

46 से 54 तक सहायक अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए ही कोविद', विशारद' के अलावा राजनीतिक शास्त्र व हिन्दी साहित्य से साहित्य रत्‍‌न की परीक्षा पास की। अध्यापन काल से ही लोकगीत लिखना और गाना इनका शगल रहा जो कुछ बड़े नेताओं को भा गया।

1955 में माता प्रसाद जिला काग्रेस कमेटी के सचिव बने। 1957 में शाहगंज, 1962 में खुटहन व 1967, 69, 74 में शाहगंज से विधानसभा चुनाव जीतकर लगातार पाच बार विधायक बने। 1980 से 1992 तक लगातार 12 वषरें तक एमएलसी रहे। 88-89 में प्रदेश के राजस्व मंत्री बनाये गये।

कार्यकुशलता, प्रशासनिक क्षमता व पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए नरसिंह राव सरकार ने 21 अक्टूबर 1993 को उन्हें अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया। यह पद उन्होंने 13 मई 1999 तक संभाला। कहा जाता है, राच्यपाल पद से हटने के कुछ दिन पूर्व तत्कालीन राजग सरकार के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें पद छोड़ने को कहा था जिसे उन्होंने दरकिनार कर दिया।

साहित्यकार के रूप में भी कायम है रसूख

माता प्रसाद ने एकलव्य' खण्ड काव्य, भीम शतक' प्रबंध काव्य, राजनीति की अ‌र्द्धसतसई', परिचय सतसई' व दिग्विजयी रावण' जैसी काव्य-कृतियों ही नहीं, अछूत का बेटा', धर्म के नाम पर धोखा', वीरागना झलकारी बाई', वीरागना उदा देवी पासी', तड़प मुक्ति की', धर्म परिवर्तन', प्रतिशोध', हमए कहे', जातियों का जंजाल', अन्तहीन बेडिय़ा', दिल्ली की गद्दी पर खुशरो भंगी' जैसे नाटक भी रचे। मनोरम भूमि अरुणाचल', पूर्वोत्तर भारत के राज्य', झोपड़ी से राजभवन' आदि भी उनकी उल्लेखनीय कृतिया हैं।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_6654445.html
 

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