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न्यूज क्लिपिंग्स् | मानसून सत्र में व्यवधान के चलते 45 करोड़ स्वाहा

मानसून सत्र में व्यवधान के चलते 45 करोड़ स्वाहा

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published Published on Aug 31, 2010   modified Modified on Aug 31, 2010

नई दिल्ली। संसद का मानसून सत्र परमाणु दायित्व विधेयक, सांसदों के वेतन भत्तों में वृद्धि संबंधी विधेयक, भोपाल गैस त्रासदी पर 26 साल बाद चर्चा आदि को लेकर काफी गहमागहमी भरा रहा। इस गहमागहमी में इस बात को अनदेखा कर दिया गया कि सांसदों द्वारा व्यवधान उत्पन्न किए जाने के कारण सरकारी खजाने की करीब 45 करोड़ रुपये की राशि पर पानी फिर गया।

महंगाई, किसानों पर फायरिंग, जाति आधारित जनगणना और सांसदों के वेतन भत्तों को लेकर न केवल संसद के छह बहुमूल्य दिनों का समय नष्ट हुआ, बल्कि करदाताओं की करीब 45 करोड़ रुपये की गाढ़ी कमाई मानसून सत्र में बहा दी गई। लोकसभा सचिवालय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, संसद की एक दिन की कार्यवाही पर करीब 7.65 करोड़ रुपये का खर्च आता है और सांसदों के हंगामे के कारण छह दिन से अधिक का समय नष्ट होने से 45 करोड़ रुपये से अधिक की राशि व्यर्थ चली गई।

गौरतलब है कि वर्ष 2010-11 के लिए संसद के दोनों सदनों और संसदीय कार्य मंत्रालय का कुल बजट अनुमानत: 535 करोड़ रुपये है और एक साल में संसद तीन बार यानी बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र के लिए बैठती है। पिछले पांच सालों में [2005-09] हर साल संसद की औसतन 70 बैठकें हुई हैं। इस लिहाज से एक सत्र की एक दिन की कार्यवाही पर 7.65 करोड़ रुपये का खर्च आता है। सचिवालय सूत्रों ने बताया कि संसद का यह बजट न सिर्फ बैठकों के लिए निर्धारित होता है, बल्कि इसमें लोकसभा और राज्यसभा सचिवालयों के सभी कर्मचारियों और अन्य संबंधित गतिविधियों पर आने वाला खर्च भी शामिल है।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 535 करोड़ रुपये के सालाना बजट में से लोकसभा के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के लिए 67 लाख, विपक्ष के नेता तथा उसके कार्यालय आदि के लिए 93 लाख, 545 सदस्यों के लिए 171 करोड़ रुपये तथा 175 करोड़ रुपये लोकसभा सचिवालय के लिए निर्धारित होते हैं। इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के मुख्य सचेतकों के कार्यालयों के लिए 29 लाख रुपये तथा 87 लाख रुपये अन्य मदों पर खर्च किए जाते हैं। इसी प्रकार राज्यसभा के सभापति तथा उप सभापति के लिए 72 लाख रुपये, विपक्ष के नेता तथा उनके कार्यालय के लिए 88 लाख रुपये, 250 सदस्यों के लिए 75 करोड़ रुपये, सचिवालय के लिए 96 करोड़ रुपये, राजनीतिक दलों के सचेतकों के लिए 17 लाख रुपये तथा अन्य मदों के लिए 61 लाख रुपये का प्रावधान रहता है।

संसद की कार्यवाही का सही तरीके से संचालन सुनिश्चित कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले संसदीय मामलों के मंत्रालय के लिए अलग से करीब साढ़े आठ करोड़ रुपये का बजट होता है। इस बार 26 जुलाई से शुरू मानसून सत्र में कुल 24 बैठकें होनी निर्धारित थीं, जिनमें से पहले पांच दिन हंगामे की भेंट चढ़ गए। इससे न केवल समय और धन बर्बाद हुआ, बल्कि महत्वपूर्ण कामकाज निपटाने के लिए 21 अगस्त शनिवार को भी संसद की बैठक बुलानी पड़ी और सत्र की अवधि को 30 और 31 अगस्त दो दिन के लिए विस्तार भी देना पड़ा।


http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_6689151.html


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