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न्यूज क्लिपिंग्स् | मायापुरी में फिर मिला कोबाल्ट-60

मायापुरी में फिर मिला कोबाल्ट-60

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published Published on Apr 14, 2010   modified Modified on Apr 14, 2010

पश्चिमी दिल्ली, जागरण संवाददाता : मायापुरी कबाड़ मार्केट में मंगलवार को जिस दूसरी दुकान में रेडिएशन का मामला सामने आया था, वहां भी रेडिएशन कोबाल्ट-60 से ही हुआ। इस बार यह रेडियोधर्मी आइसोटोप सिलेंडर-नुमा दो रॉडों में मिला है। इस तरह एक हफ्ते के अंदर दूसरी बार मार्केट में कोबाल्ट-60 पाया गया है। पांच संस्थानों के 25 सदस्यों वाली विशेषज्ञों की टीम ने आधी रात से छह घंटे के अभियान के बाद दोनों रॉडों को सीसे के फ्लास्क में सुरक्षित सील करके नरोरा एटामिक पावर प्लांट में जांच के लिए भेज दिया। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने एक बार फिर से क्षेत्र को सुरक्षित घोषित कर दिया है।

मायापुरी कबाड़ मार्केट में पहली बार आठ अप्रैल को रेडिएशन फैलने की घटना सामने आई थी। इसकी चपेट में आकर छह लोग बीमार हो गए थे। नौ अप्रैल को वैज्ञानिकों ने 12 घंटा के अभियान में आठ गठ्ठरों में कोबाल्ट-60 आइसोटॉप पाया। यह सभी वायर के रूप में था। इसके पांच दिन बाद छह अप्रैल को पहली दुकान से करीब 200 मीटर दूर स्थित दुकान (डी-127) में रेडिएशन का मामला सामने आया।

एईआरबी (परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड) को जानकारी मिलने के बाद पांच संस्थानों के वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों की एक टीम ने मंगलवार आधी रात से सुबह छह बजे तक 'ऑपरेशन अगेंस्ट रेडिएशन चलाया।'

केंद्र सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक इस संयुक्त अभियान में मुंबई से बार्क (भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान), नरोरा पावर स्टेशन, एईआरबी, भारतीय पर्यावरण रेडिएशन मॉनीटरिंग कमेटी और एनडीएमए (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के विशेषज्ञ शामिल थे। जांच के दौरान डी-127 दुकान के पास रेडिएशन का स्तर अधिक पाया गया।

ऊर्जा विभाग के एक वैज्ञानिक ने बताया कि पहली बार वायर के गठ्ठरों में पाया गया कोबाल्ट-60 रेडिएशन काफी शक्तिशाली था। इस बार सिलेंडर के आकार के दो रॉड में कोबाल्ट-60 पाया गया है। एक रॉड की लंबाई करीब 30 सेंटीमीटर और व्यास दो सेंटीमीटर है। जबकि दूसरे की लंबाई करीब 20 सेंटीमीटर और चौड़ाई दस सेंटीमीटर है।

हालांकि इन दो रॉडों में कोबाल्ट-60 पाया गया है, वह पहले की तुलना में कम शक्तिशाली है। फिर भी यह घातक हो सकता था। गनीमत है कि कोबाल्ट-60 दुकान के अंदर कबाड़ में मिला, जिसके समीप कोई नहीं रहता था। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति इसके पास अधिक देर तक रहता तो पहले की तरह गंभीर घटना हो सकती थी।

यह कोबाल्ट कहां से आया रहस्य बना हुआ है। पुलिस ने मामले में अभी तक अलग से कोई एफआईआर दर्ज नहीं की है। पश्चिमी जिला पुलिस उपायुक्त शरद अग्रवाल ने बताया कि पूछताछ चल रही है। कबाड़ दुकानों में कई महीनों से रखे रहते हैं। इसलिए इसके स्त्रोत का पता लगाना मुश्किल है।

दैनिक जागरण के साथ बातचीत में परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रवक्ता स्वप्नेश कुमार मल्होत्रा ने कहा कि आज मिले सिलेंडर की सील टूटे होने के कारण इसकी वास्तविक जगह का अनुमान लगा पाना मुश्किल है। वैसे बार्क जो कोबाल्ट-60 बनाता है, उससे इसका आकार काफी अलग है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले इस तरह का कोबाल्ट-60 नहीं देखा गया है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/delhi/4_3_6337764/
 

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