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न्यूज क्लिपिंग्स् | मुझे मिली एक मदद, मैं करूंगा दस की

मुझे मिली एक मदद, मैं करूंगा दस की

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published Published on Sep 16, 2015   modified Modified on Sep 16, 2015
बात उस समय की है, जब एक 14 वर्षीय बच्चे एन शिव कुमार के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना मुश्किल हो रहा था. आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए स्कूल में 15 हजार रुपये जमा करना जरूरी हो गया था. बेहतर शिक्षा देने की हर संभव कोशिश में मां ने अपने जेवर बेच कर किसी तरह शिव को आइसीएससी के स्कूल में दाखिला करा तो दिया था.

पिताजी एक लॉरी ड्राइवर थे, जिन्हें अब काम से हटा दिया गया था. परिवार में आय का कोई स्रोत नहीं था. परिवार के पालन-पोषण के लिए कोई विकल्प नहीं था. शिव रोज सुबह अखबार की 150 प्रतियां बांटता और इसी से परिवार का गुजारा होता था.

अपनी आमदनी से स्कूल में यह रकम जमा करना संभव नहीं था और न ही उसके मां-बाप के पास कोई विकल्प था. लेकिन वह किसी भी कीमत पर अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ना चाहता था. उसने सोचा कि वह जितने घरों में अखबार बांटता है, उनमें से कोई न कोई मदद कर सकता है.

इसलिए मदद मांगने में देर नहीं करनी चाहिए. उसने सभी घरों के बारे में सोचा. अंत में एक परिवार को चुना, जो उस जगह कुछ दिनों पहले ही आया था. उसे उम्मीद थी कि वे मदद जरूर करेंगे. पत्नी और एक छोटे बेटे के साथ रहने वाले कृष्णा वेदव्यास का था वह घर.

अगली सुबह अखबार बांटने के बाद शिव पूरी उम्मीद के साथ उनसे मिलने उनके घर गया. उसने देखा कि वे अपनी कार को साफ कर रहे हैं. वह चुपचाप खड़ा हो गया. कृष्णा ने जब उससे आने का कारण पूछा तो शिव ने कहा कि वह भी कार धोने का काम करता है और उनकी भी कार धो सकता है.

यह सुनकर कृष्णा ने कहा कि वह अभी बहुत छोटा है, अभी उसे पढ़ाई करनी चाहिए. इस पर शिव ने तुरंत कहा कि वह पढ़ना तो चाहता है लेकिन पैसे की समस्या के कारण स्कूल से उसका नाम काट दिया जायेगा, इसलिए वह चाहता है कि इस समय वे उसकी मदद करें. उसने कृष्णा से कहा कि वे उसके हाथों में पैसा ना देकर सीधे स्कूल जायें और वहां प्रिंसिपल से मिल कर स्कूल में ही पैसा जमा कर दें. उसके अंदर पढ़ने की ललक

देखकर कृष्णा ने निश्चय किया कि वह दूसरे दिन स्कूल जा कर पता करेंगे. अगले ही दिन कृष्णा शिव के स्कूल पहुंच गये और उनके प्रिंसिपल से मिले. उन्हें जब पता चला कि शिवा स्कूल का एक टॉपर स्टूडेंट है और हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता है तो, उसने उसी समय निर्णय लिया कि वह शिव की मदद जरूर करेंगे़ और उसने शिवा की पढ़ाई के लिए तुरंत ही 15 हजार रुपये स्कूल में जमा करा दिये.

शाम को जब धन्यवाद करने शिव उनके घर आया तो कृष्णा ने उससे कहा कि वह अब इस तरह के छोटे काम न करे और पूरा ध्यान पढ़ाई में लगाये, उसकी स्कूल का सारा खर्च वह खुद उठायेंगे. लेकिन शिव को अपने परिवार के भोजन और आवास सहित अन्य छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम तो करना ही था. उसने पढ़ाई के साथ-साथ अपना काम जारी रखा. अब दोनों के बीच एक नया रिश्ता बन चुका था. शिव उन्हें अंकल कहने लगा था. उनकी सलाह पर शिव ने उनसे अंगरेजी में बात करना शुरू कर दिया जिससे कि वह अच्छे से अंगरेजी में बोल सके, बात कर सके.

मां से मिली शिक्षा

आइसीएसइ बोर्ड की परीक्षा में शिव को अपने स्कूल में सबसे अच्छे नंबर आये और उसने टॉप किया. अंकल कृष्णा की सलाह पर उसने बारहवीं में विज्ञान की पढ़ाई शुरू की. उसी समय की बात है. एक बार स्कूल से सभी बच्चों को एजुकेशनल टूर पर कुर्ग जाना था. शिव की आर्थिक स्थिति को देखते हुए एक शिक्षक इस खर्च को उठाने को तैयार थे. खुशी-खुशी जब शिव ने अपनी मां को इस बारे में बताया तो, मां ने उसे टूर पर जाने से मना कर दिया.

मां ने सीधे कहा - औरों की मदद को इस तरह खर्च नहीं करना चाहिए. जब तुम में सामर्थ्य होगी तब इस तरह खर्च करना. (इनज्वाय योरसेल्फ वेन यू कैन एफोर्ड इट). मां की बात को आत्मसात करते हुए शिव ने एजुकेशनल टूूर छोड़ दिया. वह एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान में सेल्समैन के रूप में काम करने लगा.

जिस समय उसके दोस्त फिल्म, खेल आदि में अपना मनोरंजन किया करते थे, शिव का पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई और परिवार की देखरेख में लगा हुआ था. वह पूरी मेहनत करता. इंजीनियरिंग की परीक्षा में उसका चयन हो गया तो अंकल कृष्णा की ही सलाह पर उसने कंप्यूटर साइंस चुना. अपने बात के पक्के कृष्णा उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाते रहे. इंजीनियरिंग कॉलेज के एडमिशन फार्म में उन्होंने ही अभिभावक के रूप में हस्ताक्षर किया. अपनी कमाई को बढ़ाने के लिए शिव ने सेल्समैन की नौकरी छोड़ कर एक दोस्त के साथ कंप्यूटर रिपेयरिंग की दुकान शुरू की. उसे पहले से अधिक काम करना पड़ रहा था. उसके पास समय कम पड़ जाता था. इसकी वजह से वह क्लास में समय से नहीं जा पाता था.

कॉलेज में ही कैंपस इंटरव्यू में शिव को सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी के लिए चुना. लेकिन उसके अंकल कृष्णा ने सलाह दी कि उसे अभी और आगे जाना है. उन्होंने उसे आइआइएम के बारे में बताया और हौसला बढ़ाया कि वह आगे बढ़े. कृष्णा को पूरा विश्वास था कि शिव को सफलता जरूर मिलेगी. हमेशा से उनकी सलाह मानने वाले शिव ने इस बार भी उन्हें निराश नहीं किया और नौकरी छोड़ दी. उसने आइआइएम की प्रवेश परीक्षा (कैट) के लिए तैयारी शुरू कर दी. कोचिंग के लिए कृष्णा ने 25 हजार रुपये भी दिये.

शिव के लिए अपने काम के साथ कोचिंग में लेक्चर सुनने में परेशानी होने लगी. उसने एक सप्ताह बाद ही इसका हल निकाल लिया. वह नोट्स ले लेता और साथ ही पिछले कैट परीक्षा के प्रश्न-पत्रों से अपनी तैयारी करने लगा. उसकी लगन और मेहनत इस बार भी रंग लायी और वह लिखित परीक्षा में सफल हुआ. इसके बाद कृष्णा उसे इंटरव्यू की तैयारी कराने लगे. मॉक इंटरव्यू लेने लगे, साथ ही ग्रुप डिस्कशन के लिए भी उसके साथ लगातार मेहनत करने लगे. परिणामस्वरूप शिव का नाम छह आइआइएम के लिए सूचीबद्ध हुआ.

उसे एजुकेशन लोन मिला. और वह आइआइएम कोलकाता में आ गया. यह वर्ष 2013 की बात थी. इस बीच अखबार बांटने का काम काफी बड़ा हो चुका था. वह सब-एजेंट हो चुका था. उसके पास अब पहले से दस गुना अधिक कस्टमर हो चुके थे. उसने कोलकाता जाने से पहले इस व्यवसाय को अपने पिताजी को सौंप दिया. अब अखबार बांटने वाला वह लड़का इंजीनियरिंग करने के बाद एक मैनेजमेंट प्रोफेशनल बनने जा रहा था.

इस वर्ष वह प्रबंधन की पढ़ाई पूरी कर चुका है. उसने बड़े गर्व से अपने माता-पिता और बहन को बताया कि उसे एक ई-कॉमर्स कंपनी में नौकरी मिली है. उसे डिपुटी कंट्री मैनेजर के पद पर श्रीलंका में काम करना है. तीन महीने के काम के बाद उसे कंट्री हेड बना दिया जायेगा.

छह अंकों वाली सैलेरी सुन कर उसके परिवार के सदस्य भी विश्वास नहीं कर पाये. शिव सिर्फ एजुकेशन लोन को समाप्त करने के लिए ही कुछ सालों तक नौकरी करेगा. उसने अपनी खुद की एक कंपनी बना कर पूरी दुनिया में ले जाने का निर्णय कर रखा है. वह आज भी अपने अंकल कृष्णा वेदव्यास की मदद को नहीं भूल पाया है और उसी तरह दूसरे जरूरतमंदों को सलाह के साथ-साथ मदद देना ही उसके जीवन का लक्ष्य है.

(इनपुट: रीडर्स डाइजेस्ट)


http://www.prabhatkhabar.com/news/vishesh-aalekh/story/541275.html


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