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न्यूज क्लिपिंग्स् | मोदी के बताए मार्ग से गांव की ओर मुड़ने को मजबूर हुए जेटली-- विनोद अग्निहोत्री

मोदी के बताए मार्ग से गांव की ओर मुड़ने को मजबूर हुए जेटली-- विनोद अग्निहोत्री

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published Published on Mar 3, 2016   modified Modified on Mar 3, 2016
अपने पिछले दो बजटों से उलट मोदी सरकार ने तीसरे बजट में सरकारी खजाने का पिटारा गांव और किसान की तरफ खोलते हुए अपनी सूट बूट की सरकार की छवि बदलने की जो कोशिश की है,वह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर की गई है। बजट भले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बनाया हो, लेकिन इस बजट के लिए विशेष इनपुट खुद प्रधानमंत्री ने अपने वित्त मंत्री को दिए,जो उन्होंने अपने तरीके से आम लोगों और विशेषज्ञों के बीच से जुटाए थे।

यह जानकारी देने वाले सरकार के उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है कि जिस तरह पूरी तरह शहरी माने जाने वाले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण की शुरुआत ही कृषि और ग्रामीण क्षेत्र को संबोधित करते हुए की उसके पीछे प्रधानमंत्री की वह पहल काम कर रही थी जिसके तहत यह तय हुआ था कि इस बार बजट का मुख्य फोकस ग्रामीण भारत के विकास पर होगा। इसीलिए कई आर्थिक विशेषज्ञ इस बजट को यूपीए-तीन का बजट भी कह रहे हैं।

यानी जिस तरह पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के ज्यादातर बजटों में (चाहे वो प्रणव मुखर्जी के हों या पी. चिदंबरम के) में ग्रामीण भारत और सामाजिक क्षेत्रों (शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क,दलित, आदिवासी) केलिए ज्यादा धन आवंटित किया जाता था,कुछ उसी तर्ज पर मोदी सरकार के तीसरे बजट में ज्यादा जोर ग्रामीण अवस्थापना सुविधाओं,मनरेगा, कृषि विकास, सिंचाई सुविधाओं के विस्तार आदि के लिए दिया गया है। बजट की पूरी ध्वनि चलो गांव की ओर वाली है।

गौरतलब है कि जब भाजपा विपक्ष में थी, तो उसका सबसे बड़ा ऐतराज था कि यूपीए सरकार की आर्थिक नीतियां दिशाहीन हैं और वह वोट बटोरने के लिए सिर्फ रेवडिय़ां बांट रही है। चाहे मनरेगा हो या खाद्य सुरक्षा कानून भाजपा का बड़ा ऐतराज यही था कि देश में उद्योग जगत के माफिक माहौल नहीं होने से अर्थव्यवस्था चरमराती जा रही है और देश में निवेश घटता जा रहा है।

खुद नरेंद्र मोदी ने गुजरात के आर्थिक विकास मॉडल को देश के सामने आदर्श विकास मॉडल की तरह पेश करते हुए कहा था कि अगर केंद्र में उनकी सरकार बनती है तो वह रेवडिय़ां बांटने की जगह अर्थव्यवस्था को मजबूत करके देश का विकास करेंगे। अपनी सरकार के दो शुरुआती बजटों में मोदी सरकार ने उद्योग जगत को खुश करने की ज्यादा कोशिश की।

दरअसल गुजरात के दिनों से ही नरेंद्र मोदी ने अपनी छवि एक विकास और सुशासन परक नेता की बनाकर सियासी सीढियां चढऩे में कामयाबी हासिल की। इसके लिए उन्होंने वाईब्रेंट गुजरात से लेकर राज्य के अपने करीब 14 वर्षों के शासन काल में जितने भी आयोजन किए सबके केंद्र में कार्पोरेट जगत को गुजरात में निवेश के लिए आकर्षित करना था।

यह अलग बात है कि लाखों करोड़ केहजारों सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर को खूब हुए पर उनका अमल कितना हुआ यह विवाद का विषय है। लेकिन इन आयोजनों ने मोदी को जहां जनता में एक विकास के प्रति समर्पित ईमानदार स्वच्छ प्रशासक के रूप में देखा वहीं देश विदेश केउद्योग और व्यवसायिक जगत ने उन्हें उदार आर्थिक नीतियों केएक ऐसे नेता के रूप में माना जो कांग्रेस और अन्य गैर भाजपा दलों की सब्सिडी आधारित समाजवादी नीतियों से उलट निवेश परक औद्योगिक और आर्थिक वातावरण बनाने में विश्वास रखते हुए देश को आगे ले जाने में विश्वास रखता है।

इसीलिए 2014 केलोकसभा चुनावों में एक तरफ आम आदमी ने मोदी को लाकर अपनी सारी समस्याओं का समाधान पाने का सपना अच्छे दिनों केउनके नारे के साथ देखते हुए उन्हें पूर्ण बहुमत दिया वहीं उद्योग जगत ने आर्थिक वातावरण में जबर्दस्त बदलाव की उम्मीद करते हुए मोदी सरकार बनवाने केलिए अपना भरपूर सहयोग और समर्थन दिया।

मोदी ने भी अपनी इस कामयाबी की बुनियाद में उद्योग जगत केसहयोग और समर्थन को प्रमुख माना और सरकार बनते ही सबसे पहला बड़ा कदम यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून में व्यापक बदलाव केलिए अध्यादेश जारी कर दिया। लेकिन मोदी सरकार के इस कदम का विपक्ष ही नहीं संघ परिवार के भीतर भी जबर्दस्त विरोध हुआ। सरकार तीन बार अध्यादेश लेकर आई।

लोकसभा से संशोधित विधेयक पारित भी करा लिया गया, लेकिन राज्यसभा में बहुमत के अभाव और विपक्ष के भारी विरोध केबाद सरकार को अपने कदम वापस लेने पड़े और यूपीए सरकार द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण कानून-2013 जिसे अध्यादेश द्वारा अस्तित्वहीन कर दिया गया था, फिर अस्तित्व में आ गया।

विपक्ष की यह पहली बड़ी जीत थी और मोदी सरकार की पहली बड़ी हार थी, जिसने सरकार की छवि किसान विरोधी बना दी। इसके साथ ही धान, आलू, कपास, गन्ना और गेहूं किसानों को उनकी फसलों की कीमत लागत से आधी मिलने से हुई तबाही ने सरकार की छवि और बिगाड़ी।

रही सही कसर प्याज और दाल के दामों की आसमान छूती कीमतों ने पूरी कर दी। जनमानस में यह धारणा पक्की हो गयी कि मोदी सरकार को सिर्फ अमीरों की चिंता है। इन परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार को सूट बूट की सरकार का तमगा दे दिया।

इसी दौर में पहले दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए और उसमें भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा चुनाव वाली लोकप्रिय छवि के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश की, लेकिन नतीजा यह निकला कि विधानसभा की कुल 70 सीटों में भाजपा सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी। इसके कुछ महीनों बाद बिहार विधानसभा के चुनावों में भी जद(यू),राजद,कांग्रेस केमहागठबंधन के हाथों भाजपा नीत एनडीए की करारी हार हुई। जबकि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दर्जन से ज्यादा चुनावी सभाओं समेत भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बाद गुजरात में नगर निकायों चुनावों में भाजपा के ज्यादातर वह गढ़ ढह गए जो ग्रामीण इलाकों केप्रभुत्व वाले थे।

लगातार मिली इन पराजयों से भाजपा केभीतर दबी जुबान से इन चर्चाओं को बल मिलने लगा कि जिस तरह सरकार उद्योग और शहर परक नीतियां अपना रही है और किसानों, गावों और गरीबों की उपेक्षा हो रही है, उससे पार्टी का ग्रामीण जनाधार खिसक रहा है और उसका संकेत चुनावी हार के जरिए जनता दे रही है।

भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी सरकार पर अपना दबाव बढ़ा दिया कि उसे अब गांव गरीब और किसान की चिंता करना चाहिए। इसी साल अप्रैल मई में प.बंगाल,असम,तमिलनाडु,केरलऔर पुद्दुचेरी विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसके बाद अगले साल फरवरी मार्च में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के चुनाव हंै। भाजपा को असम में जीत, पं.बंगाल और केरल में अपनी मजबूत उपस्थिति और फिर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में सत्ता वापसी और पंजाब व गोवा में अपनी सरकारें बचाने की फिक्र है।

इसके साथ ही भाजपा के सांसद भी सरकार की स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं और घोषणाओं को पार्टी की जीत की गारंटी मानने की जगह गांव देहात और किसानों के� पक्ष में नीतियां बनाने का दबाव डाल रहे थे। रही सही कसर गुजरात के पटेल और हरियाणा मे जाटों के आरक्षण आंदोलन ने पूरी कर दी। सियासी विश्लेषकों ने इसे कृषि क्षेत्र में लगातार आने वाली कठिनाईयों की वजह से किसान जातियों में बढ़ रहे असंतोष का प्रकटीकरण माना।

इन सारे दबावों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बजट की पहल अपने हाथ में लेने की वजह दी। उन्होंने इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए जनता से सुझाव मांगे। तमाम सुझावों को संकलित करके प्रधानमंत्री ने अपने वित्त मंत्री अरुण जेटली से चर्चा की और उन्हें अपनी सरकार की प्राथमिकताएं समझा दीं। इसके बाद वित्त मंत्री ने जो बजट बनाया वो मोदी सरकार की प्रचलित अवधारणा से अलग ग्रामीण परक और किसानों की चिंता करने वाला बजट बनकर सामने आया।

अब अपने इस ग्रामीण और किसान परक बजट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सारे मंत्री जनता के बीच जाएंगे। बताएंगे कि मोदी सरकार सिर्फ उद्योग जगत की नहीं गांव गरीब और देहात की भी चिंता करती है और अगर पिछले दो साल उसने उद्योगों को आगे बढ़ाने की योजनाएं और नीतियां बनाईं तो अब तीसरे साल उसने गांव किसान और गरीब के लिए सरकारी खजाना खोल दिया है।

किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थापना सुविधाओं, सिंचाई सुविधाओं, मनरेगा, कृषि केविकास, किसानों के लिए ऋण सुविधाओं के विस्तार आदि के लिए ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए कुल 1.87 लाख करोड़ रुपए का आवंटन का प्रचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केनेतृत्व में भाजपा आने वाले विधानसभा चुनावों में उतरेगी और विपक्षी दलों को चुनौती देगी।


http://www.amarujala.com/news/samachar/reflections/opinion/union-budget-2016-17-article-by-vinod-agnihotri-hindi/


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