Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | यह खुशहाली का रास्ता नहीं है- सीताराम येचुरी

यह खुशहाली का रास्ता नहीं है- सीताराम येचुरी

Share this article Share this article
published Published on Mar 19, 2014   modified Modified on Mar 19, 2014
भारतीय उद्योग जगत के एक हिस्से ने तो जोश के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ दिए हैं। उद्योग जगत का यह जोश दहशत पैदा करने वाले तरीके से याद दिलाता है कि किस तरह पूंजीपति वर्ग के एक हिस्से ने 1930 के दशक में जर्मनी में हिटलर के उभार में मदद की थी। आज जब साल 2008 की आर्थिक मंदी के बाद से विश्व पूंजीवाद का संकट लगातार बना हुआ है, तब कॉरपोरेट भारत को अपने मुनाफे अधिकतम करने का सबसे अच्छा मौका नजर आ रहा है। इसीलिए आज वे ‘निर्णायक नेता’, ‘मजबूत नेता’ आदि की गुहार लगा रहे हैं। संकट के बावजूद भारतीय शेयर बाजारों में दर्ज हुआ उछाल इस तरह की राजनीतिक संभावना पर उत्सवधर्मी जोश का ही ताजातरीन उदाहरण है। फिलहाल सेंसेक्स नई ऊंचाइयां छू रहा है और निफ्टी ने भी नया रिकॉर्ड कायम किया है। भारतीय उद्योग जगत हमेशा ही शेयर बाजार में आने वाले उतार-चढ़ाव की व्याख्या के लिए आसान सतही कारणों का सहारा लेता आया है। मिसाल के तौर पर साल 1998 में जब सेंसेक्स लुढ़का था, तब इसके लिए जयललिता द्वारा वाजपेयी सरकार को समर्थन की चिट्ठी भेजने में देरी लगाने और प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी के शपथ-ग्रहण में देरी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था, जबकि ठीक उसी समय, पूर्वी-एशियाई अर्थव्यवस्थाएं लुढ़क रही थीं।

इसके चलते अंतरराष्ट्रीय वित्तीय जगत में उथल-पुथल मची थी। फिर साल 2004 में जब सेंसेक्स लुढ़का, उस समय दुनिया के वित्तीय बाजारों में चल रही उथल-पुथल की ओर से आंखें मूंद ली गईं। यूपीए-प्रथम की सरकार वामपंथ के महत्वपूर्ण समर्थन पर टिकी हुई थी। इसलिए शेयर बाजार के लुढ़कने के लिए वामपंथ को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा गया कि उसके कुछ नेताओं के ‘बाजार-विरोधी’ बयानों के कारण शेयर बाजार गिरा था। इसी तरह, आज इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि दुनिया के बाजारों में भारी अस्थिरता बनी हुई है। अमेरिकी वेतन भुगतानों के अच्छे  प्रदर्शन के बाद से शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। पिछले दो महीनों में अमेरिका में बड़ी तादाद में नई नौकरियां निकली हैं। इसके चलते अमेरिकी बाजारों में जो उछाल आया है, उससे दुनिया के दूसरे हिस्सों में निवेश के लिए फंड उन्मुक्त हो रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत में विदेशी संस्थागत निवेश का प्रवाह बढ़ा है। हालांकि, यह तेजी भी ज्यादा चलने वाली नहीं है, क्योंकि यूक्रेन संकट के चलते और चीन से अपेक्षाकृत कम उत्साहजनक घरेलू आर्थिक आंकड़े आने के कारण यूरोपीय और एशियाई बाजारों से नकारात्मक खबरें भी आनी शुरू हो गई हैं। दुनिया भर में इसका असर दिखाई  देने लगा है और जल्द ही इसका असर भारतीय बाजारों पर भी दिखाई पड़ने लगेगा।

इसके अलावा, शेयर बाजार घरेलू बुनियादी आर्थिक सच्चाइयों से भी प्रभावित होते हैं। वित्त मंत्री के अनुसार, 18 महीने के बाद बुनियादी आर्थिक पैमानों में सुधार दिखाई दे रहा है, डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है और चालू खाते की स्थिति में कुछ सुधार आया है। लेकिन यह सब ऐशो-आराम के आयात पर अंकुश लगाने से हुआ है, जिसकी वामपंथ लंबे अरसे से वकालत करता आ रहा था। वैसे तो हमारी जनता के विशाल बहुमत की जिंदगी पर शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव का शायद ही कोई असर पड़ता होगा। फिर भी यह उतार-चढ़ाव इसलिए महत्वपूर्ण है कि बाजार से ही तय होता है कि कॉरपोरेट खिलाड़ियों को किस हद तक वित्तीय संसाधन मिल पाते हैं। एक औसत कॉरपोरेट खिलाड़ी अपने संसाधनों में से मुश्किल से 20 फीसदी निवेश करता है, बाकी सारा निवेश वह वित्तीय बाजार से ही इकट्ठा करता है। इसलिए कॉरपोरेट दुनिया की अपने मुनाफे अधिकतम करने की मुहिम के लिए यह बहुत ही जरूरी है कि शेयर बाजारों में इस तरह का उछाल बना रहे। इससे तय होता है कि ‘दरबारी पूंजीवाद’ के बेतहाशा बढ़ते प्रभाव से वे शासन को किस हद तक अपने हिसाब से चला पाते हैं। एक मौके पर तो खुद प्रधानमंत्री को भी संसद में यह कहना पड़ा था कि ‘भारत दरबारी पूंजीवाद को झेल नहीं सकता।’ यह अलग बात है कि इसके बावजूद यूपीए-द्वितीय के राज में बराबर इसे बढ़ावा दिया जाता रहा।

इसकी पुष्टि एक बड़े बैंक के एमडी के बयान से होती है, जिसने कहा था कि ‘मंदी के हाल के पूरे दौर में ऐसा एक भी वर्ष नहीं गया, जब कुल मिलाकर (कॉरपोरेट) आय में गिरावट दर्ज हुई हो।’ कॉरपोरेट  क्षेत्र को सरकार जो भारी रियायतें देती हैं, उनके बिना यह किसी तरह से हो नहीं सकता। कॉरपोरेट घरानों को रियायतें देने का गुजरात का अभूतपूर्व रिकॉर्ड है। आरटीआई से इसका खुलासा भी हुआ है। वहां बहुत से उद्योगों को काफी सस्ती दर पर जमीन दी गई। उन्हें आसान कर्ज भी उपलब्ध करवाए गए, यहां तक कि विद्युत आपूर्ति भी बहुत सस्ती दरों पर की गई। बताया जाता है कि इन सबसे गुजरात के सरकारी खजाने पर 33,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ा है। यही है कथित ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की हकीकत, जहां योजना आयोग की तेंदुलकर कमेटी की गणना के हिसाब से गरीबी की दर देश भर में सबसे ज्यादा है। इस राज्य में चार लाख से ज्यादा किसानों को अर्जी देने के बावजूद बिजली के कनेक्शन नहीं मिल पाए हैं। पिछले कुछ साल में ही 9,829 मजदूरों, 5,447 किसानों और 919 ग्रामीण मजदूरों ने हताशा में आत्महत्याएं की हैं। हर गुजरने वाले वर्ष के साथ राज्य का कर्ज बढ़ता गया है। इस बीच मानव विकास सूचकांकों के पैमाने पर गुजरात का खराब और बद से बदतर होता प्रदर्शन इसी का तो सबूत है।

अगर यही सब हुआ, तो आने वाले समय में जनता की जिंदगी और बदतर हो जाएगी। इसलिए भारत को आज जरूरत है, एक वैकल्पिक नीतिगत रास्ते की। विकास के ऐसे रास्ते की जहां आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ हमारी समूची जनता की जिंदगियों में खुशहाली आए, न कि सिर्फ  आबादी के बहुत छोटे से हिस्से में खुशहाली की जगमग हो। इस तरह का विकल्प न सिर्फ संभव है, बल्कि पूरी तरह से व्यावहारिक भी है। आगामी आम चुनाव इसी को अमल में लाने का मौका है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-story-57-62-408591.html


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close