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न्यूज क्लिपिंग्स् | यहां कुख्यात अपराधी के पांव छू कर दिन की शुरुआत करते हैं ग्रामीण

यहां कुख्यात अपराधी के पांव छू कर दिन की शुरुआत करते हैं ग्रामीण

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published Published on Jun 16, 2012   modified Modified on Jun 16, 2012
नवगछिया. बिहार के नवगछिया अनुमंडल के बिहपुर प्रखंड अन्तर्गत हरियो गांव के चौक पर एक प्रतिमा स्थापित है जिसके पैर छूकर अपनी दिनचर्या की शुरुआत करते हैं यहां के ग्रामीण। हैरानी की बात है कि यह प्रतिमा किसी संत पुरुष की नहीं बल्कि कुख्यात अपराधी सरगना तेतुली उर्फ तुतली सिंह की है। जिसकी आज से 14 साल पूर्व पुलिस मुठभेड़ में मौत हो गयी थी। ग्रामीणों की नजर में तुतली सिंह ने जाति नायक से उठकर गांव वालों की सेवा की है। ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा करने से उनकी कृपा गांव पर बनी रहेगी।

क्या है तुतली सिंह की कहानी ?

गरीब किसान परिवार में जन्मे कांति सिंह के छह पुत्रों में पांचवें नंबर पर था तुतली सिंह। पेशे से दहियार (पशु पालकों से दूध खरीद कर बेचने वाला) कांति सिंह अपने तीन पुत्र उत्तम सिंह, अनिरुद्ध सिंह और तुतली सिंह को इस कार्य में लगा रखा था। दूध खरीद-बिक्री करने के दौरान प्रतिद्वंदियों और दबंग किसानों द्वारा बार-बार प्रताडि़त किया जाता था। इस दौरान दबंग किसानों ने वर्ष 1993 में उत्तम सिंह की हत्या कर दी। फिर उन्हीं दबंगों द्वारा ठीक इसके एक साल बाद दूसरे भाई अनिरुद्ध सिंह की भी हत्या कर दी गई। दो वर्षों में दो भाईयों की हत्या ने तुतली सिंह को हिलाकर कर रख दिया और बदले की प्रतिशोध में तुतली सिंह ने वर्ष 1995 में हथियार उठा लिया और इसी वर्ष अपने पिता के नाम से 'क्रांतिवीरो फौज' नामक एक संगठन का गठन किया। गठन के ठीक एक महीने के भीतर ही दोनों भाईयों के हत्यारों का बदला लेने से इलाके में तुतली सिंह का दहशत फैल गई। हलांकि बाद में अपराधियों ने उसके छोटे भाई जय सिंह की भी हत्या कर दी। छह भाईयों में अब बहादुर सिंह और विवेक सिंह जीवित हैं।

इन जिलों में था आतंक

तुतली सिंह इलाके में दूसरा गब्बर सिंह जैसा चर्चित अपराधी था। उसने कुछ ही महीनों में खगडिय़ा, कटिहार, भागलपुर, मधेपुरा, सहरसा आदि जिलों में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया था। उसके एक क्षत्र राज स्थापित करने से इन जिलों के दियारा क्षेत्रों में किसानों के खेतों में लगे पंप सेट मशीन, पशु, बासा पर रखे आनाजों की चोरी नहीं होती थी। तुतली सिंह महिला के साथ दुष्कर्म की घटना को गंभीरता से लेता था और दुराचारियों को अपने हाथों से मौत की सजा देता था। तुतली सिंह हत्या या अन्य अपराध की घटना का अंजाम देने के बाद अपने सुरक्षित स्थान घघरी घाट से लेकर त्रिमुहान घाट तक फैले दियारा इलाके में छिप जाता था। इन इलाकों में पुलिस अब भी जाने से डरती है।

कैसे हुई मौत

हमेशा अपने साथियों के घेरे में रहने वाला तुतली सिंह वर्ष 1998 के 21 दिसंबर को परिवार से मिलने अपने घर आया हुआ था। लेकिन पुलिस को इसकी भनक लग गई और तत्कालीन एसपी अब्दुलगनी मीर के नेतृत्व में गांव में ताबड़तोड़ छापेमारी की गई। इस बीच एक झूठी खबर फैला दी गई कि अपने साथियों के साथ तुतली सिंह गांव से भाग निकला। दरअसल तुतली को छोड़ उसके सभी साथी गांव से भागे थे। इस खबर में तुतली हद तक कामयाब भी हो गया था। लेकिन एक मुखबिर ने गांव में उसकी मौजूद होने की सूचना पुलिस को दे दी। सूचना पर गांव की घेराबंदी कर दूसरे दिन 22 दिसंबर को पुलिस ने तुतली के घर के समीप ही उसे मुठभेड़ में मार गिराया।

भगवान मानते हैं ग्रामीण

बिहपुर प्रखंड के जिला परिषद व तुतली सिंह के भतीजे निरंजन सिंह का मानना है कि अपराध को किसी भी स्तर से जायज नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन तुतली सिंह गांव के देवतास्वरुप थे। गरीब, असहाय, दबे-कुचले लोगों का सहारा थे। उन्होंने बताया कि तुतली के मौत के बाद उनकी पत्नी कंचन सिंह दो बार जिला परिषद सदस्य रहीं और स्वंय भी जिला परिषद सदस्य हैं। निरंजन का कहना था कि लोग उन्हें भगवान नहीं मानते तो उनके परिवारों को जनसमर्थन नहीं मिलता।

प्रतिमा में लगा सरकारी फंड

ग्रामीणों की मानें तो तुतली सिंह की प्रतिमा में सरकारी फंड का इस्तेमाल हुआ हुआ है लेकिन बिहपुर बीडीओ अवध किशोर सिंह इसे सिरे से इंकार करते हैं। उन्होंने उनके पूर्व बीडीओ के बारे में कुछ भी बोलने से इंकार किया। हलांकि बीडीओ ने माना कि जिला परिषद फंड से प्रतिमा के समक्ष सोलर लाइट लगाया गया है।

http://www.bhaskar.com/article/BIH-people-start-their-life-here-by-touching-the-feet-of-notorious-criminal-3418929.html


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