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न्यूज क्लिपिंग्स् | रास नहीं आ रहा बड़े लोगों को सूचना अधिकार: शैलेश गांधी

रास नहीं आ रहा बड़े लोगों को सूचना अधिकार: शैलेश गांधी

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published Published on Jul 5, 2012   modified Modified on Jul 5, 2012
सरकारी अधिकारियों को ट्रेनिंग में सिखाया जाता है कि कैसे जवाब देने से बचा जाए. यह कहना है शैलेश गांधी का जो छह जुलाई को सूचना आयुक्त के पद से सेवानिवृत हो रहे हैं.

उनका कहना है कि सूचना अधिकार बड़े और ताकतवर लोगों को पसंद नहीं आ रहा है.
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शैलेश गांधी का यह भी कहना है कि सूचना अधिकार आने वाले सालों में बेमतलब हो सकता है और देश भर के सूचना आयोग ही सूचना के अधिकार की राह में सबसे बड़े रोड़ा हैं.

बीबीसी से बातचीत और फेसबुक पर बीबीसी के पाठकों के सवालों के जवाब में सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि वे सूचना के अधिकार को लेकर तीन मुख्य खतरे देखते हैं.

उन्होंने कहा, "पहला खतरा सरकार से है क्योंकि सूचना का अधिकार ताकतवर लोगों को चुनौती दे रहा है और उन्हें यह पसंद नहीं आ रहा है. अधिकारियों के दिमाग में यह रहता है कि कैसे जवाब देने से बचा जा सकता है."

वे कहते हैं, ''कई ट्रेनिंग कोर्स हकीकत में यह बताते हैं कि किस तरह जवाब देने से बचा जा सकता है.''

शैलेश गांधी कहते हैं कि सरकार के शीर्ष अधिकारियों और प्रधानमंत्री समेत कई लोगों के बयान भी आए हैं कि यह कानून कुछ ज्यादा ही तकलीफ दे रहा है.

उनका कहना है कि इस कानून का असर कम करने के लिए इसमें संशोधन किए जा रहे हैं.
न्यायिक प्रणाली

शैलेश गांधी का कहना है कि दूसरा खतरा न्यायिक प्रणाली से है जहां कई सालों तक फैसले नहीं हो पाते.

उन्होंने कहा, ''सरकारी अधिकारी 'स्टे' के लिए अदालतों में जाते हैं जहां या तो आम आदमी मुकदमा हार जाता है या फिर अगर मामला स्थगित हो जाए तो कई साल ऐसे ही निकल जाते हैं. इससे सूचना का अधिकार का सारा मकसद ही खत्म हो जाता है.''

उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकार को सबसे बड़ा खतरा सूचना आयोगों से है.

गांधी कहते हैं कि सूचना आयोग मामलों का समय पर निपटारा नहीं कर रहे हैं. कई जगह 2010 के मामलों की सुनवाई हो रही है.

उनके अनुसार, ''पांच सालों में मुमकिन यह है कि स्थिति ऐसी हो जाए कि छह सात साल पुराने मामले भी लंबित पड़े हों. फिर यह अपनी न्याय प्रणाली जैसी हो जाएगी. ऐसे में ये आयोग चलते रहते हैं लेकिन आम आदमी के लिए बेमतलब हो जाते हैं.''

गांधी ने कहा कि पिछले साल उन्होंने 5,900 मामलों का निपटारा किया जो कि सबके लिए मुमकिन है. लेकिन आम तौर पर सूचना आयुक्त केवल 1000-2000 मामलों का ही साल भर में निपटारा करते हैं.

कुछ आंकड़े देते हुए उन्होंने कहा कि केंद्रीय सूचना आयोग में 20,000 मामले चल रहे हैं जबकि महाराष्ट्र में 24,000 और उत्तर प्रदेश में 40,000 से अधिक मामले निपटाए जाने बाकी हैं.
क्या किया जाए?

शैलेश गांधी के अनुसार देश की जनता को सूचना आयोगों पर दबाव डालना होगा लेकिन ऐसा लगता है कि जनता या तो सो गई है या मायूस हो गई है.

आयुक्त बनने से पहले खुद आरटीआई कार्यकर्ता रहे शैलेश गांधी का कहना है कि वे लोगों को जागरुक करने का काम जारी रखेंगे.

फेसबुक पर बीबीसी के पन्ने पर एक पाठक मृणाल कुमार के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ''कानून को कमजोर करने का काम कोई जानबूझ कर नहीं कर रहा है. लेकिन सत्ता में लोगों की प्रतिक्रिया यह है कि मजा नहीं आ रहा.''

जब एक पाठक आचार्य पंकज त्रिपाठी ने पूछा कि क्या आरटीआई भी भ्रष्टाचार की चपेट में है, तो उन्होंने कहा कि इसका जवाब साफ देना मुश्किल है.

गांधी ने कहा, ''मेरे पास नहीं आंकड़े नहीं हैं. जिस देश में भ्रष्टाचार इतना हो, वहां कोई प्रक्रिया पूरी तरह से इससे परे रहेगी यह मानना मुश्किल होता है.''

http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/07/120704_rti_gandhi_ac.shtml


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