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न्यूज क्लिपिंग्स् | रेत और रोड़ा- अतुल चौरसिया

रेत और रोड़ा- अतुल चौरसिया

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published Published on Aug 23, 2013   modified Modified on Aug 23, 2013

उत्तर प्रदेश में आइएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के खिलाफ कार्रवाई एक तीर से दो शिकार करने की कवायद है. इसका पहला मकसद है अवैध रेत खनन का कारोबार बचाना और दूसरा, सियासी फायदे के लिए धार्मिक भावनाएं भुनाना. अतुल चौरसिया की रिपोर्ट.

28 जुलाई से पहले कादलपुर और दुर्गा शक्ति नागपाल का नाम देश-प्रदेश तो क्या गौतमबुद्ध नगर जिले के भी ज्यादातर लोगों ने नहीं सुना था. गांवों के लिए आप जो छवि अपने मन में बना सकते हैं, कादलपुर एकदम वैसा ही है. 27 जुलाई को सुबह से ही गांव में थोड़ी हलचल थी. रबूपुरा के थानाध्यक्ष अजय कुमार यादव दल-बल के साथ वहां एक मस्जिद की दीवार को ढहाने पहुंचे थे. गांववाले उनसे जिरह कर रहे थे कि रमजान खत्म होने तक रुक जाएं, इसके बाद कार्रवाई की जाए. थानेदार अड़े रहे. बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी. करीब घंटे भर बाद इलाके के सर्किल ऑफिसर (सीओ) वसीम खान भी मौके पर पहुंच कर गांववालों को समझाने लगे कि मस्जिद का निर्माण 2012 में आए सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय के विरुद्ध है जिसके मुताबिक कोई भी धार्मिक स्थल बिना प्रशासन की पूर्व अनुमति के नहीं बन सकता. इसी गतिरोध के दौरान दोपहर करीब 12 बजे सदर इलाके की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल मौके पर पहुंचीं. गांव की प्रधान अफरोज बेगम के पति शफीक खान बताते हैं, 'एसडीएम अड़ गई कि निर्माण के लिए प्रशासन से अनुमति नहीं ली गई है इसलिए दीवार गिरानी पड़ेगी. कोई चारा न देखकर हम दीवार गिराने के लिए राजी हो गए. गांववालों ने इस काम में पुलिस की मदद की.' तीन बजे के करीब दीवार को गिरा दिया गया.

जिस जमीन पर मस्जिद बन रही थी, वह कादलपुर ग्रामसभा की जमीन है. करीब डेढ़ साल पहले इस जमीन पर मस्जिद बनाने का फैसला गांव के हिंदू-मुसलमानों ने मिलकर किया था. जिस पश्चिमी दीवार को गिराया गया है, वह भी आज से करीब छह महीने पहले बन गई थी. 15 जून को इलाके के समाजवादी पार्टी के नेता और लोकसभा के घोषित उम्मीदवार नरेंद्र भाटी ने इस मस्जिद का उद्घाटन किया था. उस समय उन्होंने मस्जिद को 51,000 रुपये देने का वादा किया था. यह बात महत्वपूर्ण है क्योंकि कई खबरों में कहा गया कि उन्होंने 51,000 रुपये का चंदा दिया था. शफीक खान बताते हैं, 'भाटी जी ने 51,000 देने का वादा किया था लेकिन अभी तक पैसा मिला नहीं है. उनके साथ ही गौतमबुद्ध नगर जिले के बसपा सांसद सुरेंद्र नागर ने भी एक लाख का चंदा देने का वादा किया था.'

सवाल यह है कि छह महीने पहले जो दीवार बन गई थी उसे ढहाने के लिए पुलिस इतने दिनों बाद अचानक क्यों पहुंची थी? किसकी शिकायत पर पुलिस पहुंची यह अब तक स्पष्ट नहीं हो सका है. यहां तक कि शासन को भेजी गई इंटेलीजेंस की रिपोर्ट में भी शिकायतकर्ता का कोई जिक्र नहीं है. तहलका ने मौके पर जो पाया उसके मुताबिक ग्राम सभा की जिस जमीन पर मस्जिद का निर्माण हो रहा था उसी से सटी हुई एक जमीन कांग्रेसी नेता विदित चौधरी की है. विदित चौधरी उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस, पश्चिमी क्षेत्र के उपाध्यक्ष हैं और उन्होंने गौतमबुद्धनगर के डीएम रविकांत के यहां मौखिक शिकायत की थी कि मस्जिद का एक बड़ा हिस्सा उनकी जमीन में बन रहा है. विदित चौधरी ने फिलहाल अपना फोन बंद कर रखा है और वे किसी के संपर्क में नहीं हैं. लेकिन गांववाले इस बात की पुष्टि करते हैं. शफीक खान कहते हैं, 'चौधरी साहब की शिकायत पर हमने पंचायत बुलाई. पटवारी से दोनों जमीनों की नापजोख करवाई. नापजोख में मस्जिद की जमीन और विदित चौधरी की जमीन के बीच 8.5 फीट का रास्ता अलग से पाया गया. यह मामला इसके बाद खत्म हो गया था.' एक अनुमान यह है कि इसी विवाद के बाद यह मामला प्रशासन की नजर में आया होगा.

27 जुलाई को दुर्गा शक्ति नागपाल की देखरेख में मस्जिद की दीवार गिराई गई और उसी दिन शाम होते-होते राज्य सरकार ने उनका निलंबन कर दिया. वजह बताई गई कि उनका आचरण अदूरदर्शी और सांप्रदायिक सद्भाव के विपरीत है. इसका खंडनगांव वाले तत्काल कर देते हैं. गांव में परचून की दुकान चलाने वाले जीशान कहते हैं, 'हमारे यहां न तो पहले कभी कोई तनाव था न दीवार गिरने के बाद कोई तनाव हुआ. हम बड़े प्रेम से रहते हैं. यह तो पुलिस का निर्णय था, हम आपस में क्यों लड़ें.' कादलपुर की आबादी करीब चार हजार है जिसमें 70 प्रतिशत मुस्लिम और 30 प्रतिशत हिंदू हैं.

दरअसल ऊपरी तौर पर यह मामला जितना सपाट नजर आता है, गहरे जाने पर इसमें उतनी ही जटिल और ओछी राजनीति के दर्शन होते हैं. इसके पीछे जिले में मुफ्त का सोना उगलने वाला रेत का अवैध कारोबार है और धर्म की राजनीति करने वाले नेताओं की महत्वाकांक्षा भी. नरेंद्र भाटी, जिन्होंने 28 जुलाई को कादलपुर में अपना बहुचर्चित '41 मिनट में काम-तमाम' वाला भाषण दिया था, की भूमिका हर तरफ से संदेह के दायरे में आती है. गांव के लोग बताते हैं कि 27 तारीख को वे लगातार भाटी को फोन किए जा रहे थे. उनसे गुहार कर रहे थे कि वे मौके पर आ जाएं और पुलिस अधिकारियों को समझाएं. लेकिन भाटी सुबह से लेकर शाम तक मामले को टालते रहे, वे कादलपुर नहीं गए. वे कादलपुर अगले दिन पहुंचे, वह भी निलंबन का श्रेय लेने के लिए. जबकि अगर वे उसी समय पहुंच जाते तो पिछले एक पखवाड़े से उनकी और उत्तर प्रदेश सरकार की जो किरकिरी हो रही है उससे बचा जा सकता था. लेकिन वे नहीं पहुंचे क्योंकि ऐसा करना उनकी राजनीति के माकूल नहीं बैठता.

गौतमबुद्ध नगर सपा के एक वरिष्ठ नेता गोपनीयता की शर्त पर बताते हैं कि नरेंद्र भाटी का खनन का पुराना काम है. जिस सदर क्षेत्र की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल थीं, उसी इलाके में उनका सबसे ज्यादा कारोबार फैला हुआ था. खुद  भाटी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि दुर्गा शक्ति नागपाल के क्षेत्र में खनन का काम लंबे समय से चलता आ रहा है. वे कहते हैं, 'नोएडा के रायपुर में वैध खनन का एकमात्र पट्टा है जो हमारे आदमी के पास है.' यानी नरेंद्र भाटी का खनन के धंधे से जुड़ाव है. यहीं से दुर्गा शक्ति नागपाल के साथ उनकी अदावत  की बुनियाद का संकेत मिलता है. दुर्गा ने ग्रेटर नोएडा में नियुक्ति के बाद से ही अवैध खनन के इस कारोबार पर नकेल कसना शुरू कर दिया था. साल 2013 के आंकड़े इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे किस तरह से अवैध खनन कारोबारियों पर भारी पड़ रही थीं. इस दौरान नोएडा पुलिस के विभिन्न थानों में नागपाल की निगरानी में 66 एफआईआर दर्ज हुई, 104 लोगों को हिरासत में भेजा गया और 274 वाहनों को जब्त किया गया. इससे अवैध खनन करने वालों में जबरदस्त बेचैनी थी.

नोएडा और ग्रेटर नोएडा उत्तर प्रदेश सरकार के ताज का नगीना हैं. यहां शहरीकरण की रफ्तार सबसे तेज है. पिछले डेढ़ दशक के दौरान यहां अनगिनत रिहाइशी और कारोबारी भवनों का निर्माण हुआ है और चल रहा है. निर्माण की यह रफ्तार लगातार तेज हुई है. इसमें इस्तेमाल होने वाली रेत की मांग भी इस दौरान कई-कई गुना बढ़ गई है. इस मांग ने अवैध खनन के कारोबार को बढ़ावा दिया है. नदियों के किनारे बसे लगभग सभी गांवों की हालत कादलपुर जैसी ही है. वहां से दिन-रात रेत से भरे ट्रक गुजरते रहते हैं. सूत्र बताते हैं कि जहां वैध खनन के पट्टे हैं वहां भी एक वैध ट्रक की आड़ में पांच ट्रक अवैध रेत निकाली जाती है. अवैध खनन का धंधा हर्र-फिटकरी के बिना रंग चोखा होने जैसा है. एक ट्रक रेत खनन माफिया फुटकर विक्रेताओं को 8,000 रु. में बेचता है. फुटकर विक्रेता इसे 10,000 रु. में निर्माणकर्ता कंपनियों को बेचते हैं. एक ट्रक रेत की लागत का आंकड़ा खनन माफिया के लिए दो से तीन हजार रुपये तक आता है जिसमें ढुलाई से लेकर मजदूरी तक शामिल है. इस लिहाज से माफिया को प्रति ट्रक पांच से छह हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा होता है.

सूत्र बताते हैं कि अवैध खनन के इस कारोबार पर एक सिंडिकेट के माध्यम से नियंत्रण रखा जाता है. इसमें अदने बीट कांस्टेबल से लेकर लखनऊ में बैठे सरकार के कुछ बड़े राजनेताओं तक का हिस्सा बंधा होता है. यही राजनेता खनन माफिया को राजनीतिक संरक्षण देने से लेकर किसी भी तरह की ऊंच-नीच से बचाए रखने का काम करते हैं.     

अब नरेंद्र भाटी की दुर्गा नागपाल से अदावत की बात. ओमेंद्र खारी गौतमबुद्ध नगर जिले के एक बड़े खनन ठेकेदार हैं. खारी, नरेंद्र भाटी के दूर के रिश्तेदार और करीबी सहयोगी हैं. खुद भाटी स्वीकार करते हैं, 'खारी दूर के रिश्तेदार हैं. उनके पिता जी हमारे बहुत अच्छे साथी रहे हैं. हमारी ही विधानसभा में चीपी गांव के रहने वाले हैं.' जुलाई के पहले हफ्ते में गौतमबुद्ध नगर जिले में अवैध खनन करने वालों से जब्त की गई रेत की नीलामी आयोजित की गई थी. इसकी निगरानी दुर्गा शक्ति नागपाल कर रही थीं. यह नीलामी आठ करोड़ रुपये में ओमेंद्र खारी ने हासिल की. उसी शाम उन्हें कुल कीमत की एक चौथाई राशि यानी दो करोड़ रुपये खनन विभाग के पास जमा करने थे. लेकिन खारी ने वह रकम जमा नहीं की. जवाब में नागपाल ने खनन विभाग को खारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने को कहा. सूत्र बताते हैं कि नरेंद्र भाटी ने खारी  के खिलाफ एफआईआर रोकने की तमाम कोशिशें की. इसके बावजूद 11 जुलाई को नागपाल ने खारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. पुलिस जब खारी को गिरफ्तार करने पहुंची तो वे फरार हो गए. फिर वे 25 जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट से अपनी गिरफ्तारी पर स्टे लगवाने के बाद ही नजर आए. बताते हैं कि इस घटना ने नागपाल से भाटी की अनबन काफी बढ़ गई थी. अवैध खनन के कारोबार पर रोक से पहले ही भाटी के लिए परेशानी पैदा हो गई थी. दो दिन बाद 27 जुलाई को कादलपुर प्रकरण के बहाने उन्हें हिसाब बराबर करने का मनचाहा अवसर मिल गया.

इस अवसर के पीछे इलाके के राजनीतिक गणित की भी बड़ी भूमिका है. गौतमबुद्ध नगर संसदीय क्षेत्र में करीब तीन लाख मुसलिम मतदाता हैं. इन पर कब्जे के लिए कांग्रेस, सपा और बसपा में होड़ रहती आई है. लेकिन सबसे बड़ी हिस्सेदार सपा ही है. नरेंद्र भाटी इस संसदीय क्षेत्र से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा के घोषित उम्मीदवार हैं. उनकी राजनीतिक सफलता के लिए इस मुसलिम वोट का एकमुश्त साथ आना बहुत जरूरी है वरना यह क्षेत्र लंबे समय से कभी बसपा तो कभी भाजपा को संसद में भेजता आ रहा है.

यहां राज्य सरकार और सपा के उस तर्क की पड़ताल कर लेना भी जरूरी है कि क्या नागपाल ने वास्तव में कोई ऐसी गंभीर चूक की है जिसके लिए उन्हें निलंबन जैसी सजा दी जाए. इसके लिए उनके बाकी के कामकाज पर भी नजर दौड़ानी होगी. अपने निलंबन से एक हफ्ते पहले नागपाल ने ग्रेटर नोएडा के बीटा सेक्टर और रबूपुरा के सायपुर गांव में दो अवैध मंदिरों को ध्वस्त करवाया था.

नरेंद्र भाटी उनकी इन कार्रवाइयों को ताकत का नशा करार देते हैं. इसके अलावा अवैध खनन के खिलाफ उनकी कार्रवाइयों से लगता है कि कादलपुर में उन्होंने जो किया वह किसी दुर्भावना या जिद के कारण नहीं बल्कि अपना कर्तव्य निभाते हुए किया. यह एक ऐसा गुण है जो इन दिनों सार्वजनिक जीवन के लगभग हर पक्ष से ओझल हो चुका है. ऐसा कोई भी व्यक्ति जो नियम-कानूनों के मुताबिक कुछ करने की कोशिश करता है वह मौजूदा खांचे में फिट नहीं बैठता.  मुंबई पुलिस के एसीपी वसंत डोबले के मामले में भी हमने देखा कि अगर कोई सिर्फ उन्हीं नियम-कानूनों को लागू करवाने की कोशिश करता है जो सरकारी फाइलों और किताबों का हिस्सा बन गए हैं तो वह राजनीतिक वर्ग के निशाने पर आ जाता है.

सूत्र बताते हैं कि अवैध खनन के इस कारोबार पर एक सिंडिकेट के माध्यम से नियंत्रण रखा जाता है. इसमें अदने बीट कांस्टेबल से लेकर लखनऊ में बैठे सरकार के कुछ बड़े राजनेताओं तक का हिस्सा बंधा होता है. यही राजनेता खनन माफिया को राजनीतिक संरक्षण देने से लेकर किसी भी तरह की ऊंच-नीच से बचाए रखने का काम करते हैं.     

अब नरेंद्र भाटी की दुर्गा नागपाल से अदावत की बात. ओमेंद्र खारी गौतमबुद्ध नगर जिले के एक बड़े खनन ठेकेदार हैं. खारी, नरेंद्र भाटी के दूर के रिश्तेदार और करीबी सहयोगी हैं. खुद भाटी स्वीकार करते हैं, 'खारी दूर के रिश्तेदार हैं. उनके पिता जी हमारे बहुत अच्छे साथी रहे हैं. हमारी ही विधानसभा में चीपी गांव के रहने वाले हैं.' जुलाई के पहले हफ्ते में गौतमबुद्ध नगर जिले में अवैध खनन करने वालों से जब्त की गई रेत की नीलामी आयोजित की गई थी. इसकी निगरानी दुर्गा शक्ति नागपाल कर रही थीं. यह नीलामी आठ करोड़ रुपये में ओमेंद्र खारी ने हासिल की. उसी शाम उन्हें कुल कीमत की एक चौथाई राशि यानी दो करोड़ रुपये खनन विभाग के पास जमा करने थे. लेकिन खारी ने वह रकम जमा नहीं की. जवाब में नागपाल ने खनन विभाग को खारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने को कहा. सूत्र बताते हैं कि नरेंद्र भाटी ने खारी  के खिलाफ एफआईआर रोकने की तमाम कोशिशें की. इसके बावजूद 11 जुलाई को नागपाल ने खारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. पुलिस जब खारी को गिरफ्तार करने पहुंची तो वे फरार हो गए. फिर वे 25 जुलाई को इलाहाबाद हाई कोर्ट से अपनी गिरफ्तारी पर स्टे लगवाने के बाद ही नजर आए. बताते हैं कि इस घटना ने नागपाल से भाटी की अनबन काफी बढ़ गई थी. अवैध खनन के कारोबार पर रोक से पहले ही भाटी के लिए परेशानी पैदा हो गई थी. दो दिन बाद 27 जुलाई को कादलपुर प्रकरण के बहाने उन्हें हिसाब बराबर करने का मनचाहा अवसर मिल गया.

इस अवसर के पीछे इलाके के राजनीतिक गणित की भी बड़ी भूमिका है. गौतमबुद्ध नगर संसदीय क्षेत्र में करीब तीन लाख मुसलिम मतदाता हैं. इन पर कब्जे के लिए कांग्रेस, सपा और बसपा में होड़ रहती आई है. लेकिन सबसे बड़ी हिस्सेदार सपा ही है. नरेंद्र भाटी इस संसदीय क्षेत्र से आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सपा के घोषित उम्मीदवार हैं. उनकी राजनीतिक सफलता के लिए इस मुसलिम वोट का एकमुश्त साथ आना बहुत जरूरी है वरना यह क्षेत्र लंबे समय से कभी बसपा तो कभी भाजपा को संसद में भेजता आ रहा है.

यहां राज्य सरकार और सपा के उस तर्क की पड़ताल कर लेना भी जरूरी है कि क्या नागपाल ने वास्तव में कोई ऐसी गंभीर चूक की है जिसके लिए उन्हें निलंबन जैसी सजा दी जाए. इसके लिए उनके बाकी के कामकाज पर भी नजर दौड़ानी होगी. अपने निलंबन से एक हफ्ते पहले नागपाल ने ग्रेटर नोएडा के बीटा सेक्टर और रबूपुरा के सायपुर गांव में दो अवैध मंदिरों को ध्वस्त करवाया था.

नरेंद्र भाटी उनकी इन कार्रवाइयों को ताकत का नशा करार देते हैं. इसके अलावा अवैध खनन के खिलाफ उनकी कार्रवाइयों से लगता है कि कादलपुर में उन्होंने जो किया वह किसी दुर्भावना या जिद के कारण नहीं बल्कि अपना कर्तव्य निभाते हुए किया. यह एक ऐसा गुण है जो इन दिनों सार्वजनिक जीवन के लगभग हर पक्ष से ओझल हो चुका है. ऐसा कोई भी व्यक्ति जो नियम-कानूनों के मुताबिक कुछ करने की कोशिश करता है वह मौजूदा खांचे में फिट नहीं बैठता.  मुंबई पुलिस के एसीपी वसंत डोबले के मामले में भी हमने देखा कि अगर कोई सिर्फ उन्हीं नियम-कानूनों को लागू करवाने की कोशिश करता है जो सरकारी फाइलों और किताबों का हिस्सा बन गए हैं तो वह राजनीतिक वर्ग के निशाने पर आ जाता है.


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