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न्यूज क्लिपिंग्स् | रोजगार बढ़ाने की बड़ी चुनौती-- भरत झुनझुनवाला

रोजगार बढ़ाने की बड़ी चुनौती-- भरत झुनझुनवाला

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published Published on Feb 18, 2016   modified Modified on Feb 18, 2016
आगामी बजट में रोजगार सृजन को प्रोत्साहन देने पर विचार हो रहा है। जिन उद्योगों द्वारा नए रोजगार सृजित किए जाएंगे, उन्हें आयकर में छूट दी जाएगी। यह खुशी की बात है। फिर भी सावधानी बरतने की जरूरत है अन्यथा रोजगार उत्पन्न् नहीं होंगे और उद्यमियों द्वारा इनकम टैक्स की छूट का दुरुपयोग कर लिया जाएगा। मान लीजिए एक उद्योग है जिसमें 1000 श्रमिक कार्यरत हैं। उद्योग द्वारा 10 करोड़ रुपए का आयकर हर वर्ष अदा किया जाता है। ऐसे में सरकार ने नीति बनाई कि रोजगार में दो प्रतिशत की वृद्धि करने पर आयकर में 30 फीसदी की छूट दी जाएगी। यानी 20 नए रोजगार बनाने पर इस उद्योग को 3 करोड़ रुपए की छूट आयकर में मिल जाएगी। इन 20 रोजगार बनाने का वार्षिक खर्च लगभग 24 लाख रुपए आएगा। इस प्रकार 24 लाख खर्च करके तीन करोड़ कमाए जा सकते हैं। उद्यमी अपने भाई, बेटे एवं बहू को कागजी रोजगार दे देंगे। 24 लाख की रकम भी घर में वापस आ जाएगी और तीन करोड़ का टैक्स भी बचेगा। सरकार को बेवकूफ बनाना आसान हो जाएगा।

रोजगार सृजन के लिए दिए जाने वाले इंसेंटिव का दुरुपयोग रोकना है। उपाय है कि संपूर्ण उद्योगों को दो क्षेत्रों में बांट दिया जाए। जिन उद्योगों द्वारा रोजगार कम सृजित होते हैं, उन्हें 'ग्रोथ" क्षेत्र में रखा जाए। जिन उद्योगों द्वारा रोजगार अधिक सृजित किए जाते हैं उन्हें 'रोजगार" क्षेत्र में रखा जाए। जैसे मान लीजिए देश के सभी उद्योगों के द्वारा औसतन एक करोड़ रुपए की वैल्यू जोड़ने में 10 रोजगार सृजित किए जाते हैं। कुछ उद्यम हैं जो एक करोड़ की वैल्यू जोड़ने में 10 से कम रोजगार सृजित करते हैं, जैसे स्टील और पेट्रोलियम क्षेत्र। इन्हें ग्रोथ क्षेत्र में रखा जाए। दूसरे उद्योग हैं जो एक करोड़ की वैल्यू जोड़ने में 10 से ज्यादा रोजगार सृजित करते हैं, जैसे बीड़ी एवं अगरबत्ती उद्योग। इन्हें 'रोजगार" क्षेत्र में रखा जाए। क्षेत्र के विभाजन के बाद 'ग्रोथ" क्षेत्र पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी जाए और 'रोजगार" क्षेत्र पर घटा दी जाए तो हर उद्यामी चाहेगा कि ग्रोथ क्षेत्र से कूदकर रोजगार क्षेत्र में आ जाए। ऐसा करने के लिए उसे औसत से अधिक रोजगार सृजित करने होंगे। उद्यमी के लिए यह लाभकारी हो जाएगा कि मशीन के स्थान पर वह श्रमिकों से काम ले। तब भारी मात्रा में रोजगार सृजित होंगे।

वर्तमान में अधिकतर रोजगार मध्यम एवं छोटे उद्योगों द्वारा सृजित किए जा रहे हैं। आज ये उद्योग बड़ी कंपनियों के आगे टिक नहीं पा रहे हैं। मसलन छोटे शहरों में ब्रेड या बिस्कुट बनाने के कारखाने लुप्तप्राय हो चले हैं। चारों ओर छोटे उद्योगों में हाहाकार मचा हुआ है। कारण कि सरकार की मेक इन इंडिया पॉलिसी इनके विरुद्ध खड़ी हुई है। सरकार चाहती है कि बिस्कुट तथा चश्मे के फ्रेम बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में बुलाया जाए व आधुनिकतम क्वालिटी के माल का उत्पादन किया जाए। मेक इन इंडिया को उन क्षेत्रों तक सीमित करना होगा, जहां छोटे उद्योगों से प्रतिस्पर्धा नहीं है। जैसे बोइंग विमान कंपनी द्वारा भारत में इंजन बनाए जाएं तो स्वागत है। इससे छोटे उद्योगों का नाश नहीं होगा। खबर है कि सरकार ने विदेशी निवेश के प्रस्तावों में रोजगार के पक्ष को देखने का निर्णय लिया है। यह ठीक है, लेकिन घरेलू बड़ी कंपनी द्वारा छोटे उद्योगों का नाश फिर भी जारी रहेगा। अत: विषय संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर रोजगारपरक नीतियों को लागू करने का है, न कि केवल विदेशी निवेश के प्रभाव को रोजगार पर देखने का।

इस परिप्रेक्ष्य में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। इस व्यवस्था के अंतर्गत छोटे उद्योगों को मिल रही छूट निरस्त हो जाएगी। ऐसे में रोजगार का भक्षण होगा। जरूरत है कि इन क्षेत्रों को छोटे उद्योगों के लिए संरक्षित कर दिया जाए, जिनमें रोजगार ज्यादा सृजित होते हैं। पिछले 20 वर्षों से सरकारें इस संरक्षण को घटाती जा रही हैं। कुछ क्षेत्रों में आधुनिकता की होड़ से पीछे हटना होगा, जैसे पिज्जा और बर्गर से पीछे हटा जा रहा है।

सरकार का मानना है कि स्किल डेवलपमेंट से हमारे कर्मियों की कुशलता बढ़ेगी और रोजगार उपजेंगे, लेकिन इसके विपरीत भी हो सकता है। मान लीजिए कि सरकार ने जेसीबी ड्राइवर की ट्रेनिंग एक हजार युवकों को दी। बाजार में जेसीबी ड्राइवरों की उपलब्धि बढ़ी। इनके वेतन वर्तमान में 12,000 से घटकर 8,000 रुपए प्रतिमाह हो गए। ड्राइवर की लागत कम आने से तालाब का निर्माण पूर्णतया जेसीबी से होने लगा। फावड़े से तालाब खोदने वाले तमाम श्रमिक बेरोजगार हो गए। तात्पर्य यह कि स्किल उन क्षेत्रों में बढ़ाई जानी चाहिए जहां रोजगार का सृजन होता है, न कि रोजगार का भक्षण। मूल बात यह है कि सर्वप्रथम अर्थव्यवस्था को ग्रोथ एवं रोजगार क्षेत्र में बांटना होगा। तत्पश्चात रोजगार क्षेत्र को टैक्स तथा श्रम कानून में छूट, बड़े उद्योगों में संरक्षण तथा स्किल डेवलपमेंट को प्रोत्साहन देना होगा। अन्यथा सरकार अनजाने में ही रोजगार भक्षण को प्रोत्साहन देगी।

इस नीति को लागू करने में विश्व व्यापार संगठन आड़े आता है। ग्रोथ क्षेत्र पर टैक्स बढ़ाने से मशीनों द्वारा निर्मित माल का आयात होने लगेगा। हमारे बड़े उद्योग पिटेंगे, क्योंकि उन पर टैक्स का बोझ ज्यादा होगा। छोटे उद्योग पिटेंगे, क्योंकि आयातित सस्ते माल का वे सामना नहीं कर सकेंगे। अत: डब्ल्यूटीओ में रहकर रोजगार सृजन असंभव है। सरकार को निर्णय लेना होगा कि वह जनता को रोजगार के खयाली पुलाव परोसेगी अथवा डब्ल्यूटीओ का सामना कर रोजगार पैदा करेगी। बजट से अपेक्षा है कि मशीनों द्वारा उत्पादित माल पर टैक्स बढ़ाया जाए और श्रम सघन घरेलू उद्योगों को टैक्स, श्रम कानून में छूट तथा स्किल डेवलपमेंट को प्रोत्साहन दिया जाए।

-लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं

 


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