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न्यूज क्लिपिंग्स् | रोजाना दो हजार बच्चों को बांटता था ‘मीठा जहर’

रोजाना दो हजार बच्चों को बांटता था ‘मीठा जहर’

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published Published on Apr 18, 2010   modified Modified on Apr 18, 2010
जयपुर. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की टीमों ने रविवार को दो आइसक्रीम फैक्ट्रियों पर छापा मारकर सैपल लिए। एक फैक्ट्री गंदगी के ढेर के बीच चल रही थी तो दूसरी में सैक्रीन का उपयोग किया जा रहा था। सैक्रीन शरीर के लिए घातक साबित हो सकती है, इसलिए आइसक्रीम या कोल्ड ड्रिंक्स बनाने में इसका इस्तेमाल करना गैरकानूनी है।कालवाड़ रोड स्थित कृष्णा आइसक्रीम फैक्ट्री में सफाई का कतई ध्यान नहीं रखा गया था। जिन आइसबॉक्स में आइसकैंडी जमा कर रखी गई थी, उनमें न केवल जंग लगी थी, बल्कि मक्खियां भिनभिना रही थीं। जिस पानी का उपयोग किया जा रहा था, वह भी साफ नहीं था।

आइसकैंडी भी खुली ही पड़ी थी। आइसक्रीम फैक्ट्री संचालक गिरिराज कुमावत ने बताया कि वह करीब दो साल से यह धंधा कर रहा है। उसके पास दस ठेले हैं, जिनमें से एक में रोजाना करीब दो सौ आइसक्रीम प्रति ठेला बिक्री के लिए जाते हैं। यह आसइक्रीम आसपास के करीब दो हजार बच्चों तक पहुंचती है।

चीनी की जगह सैक्रीन

मुरलीपुरा स्थित बॉम्बे आइसक्रीम फैक्ट्री में चीनी के बजाय सैक्रीन का इस्तेमाल किया जा रहा था। जानकारों के अनुसार थोड़ी सी सैक्रीन डालने से ही कोई भी खाद्य पदार्थ चीनी से भी ज्यादा मीठा हो जाता है। फूड इंस्पेक्टरों ने मौके से चार किलो सैक्रीन नष्ट कराई। यह सैक्रीन नॉन एडिबल पाउडर के पैकेटों में रखी गई थी।

7 सैंपल एकत्र किए

शहर और जिलेभर में विभाग की दोनों टीमों ने आइसक्रीम, पैकेज्ड ड्रिंकिंग वाटर आदि के 7 यैंपल एकत्र किए। इन्हें जांच के लिए राजकीय प्रयोगशाला भेजा जाएगा।

3 साल में सिर्फ 2 एफआईआर

मिलावटी खाद्य पदार्थो के मामले में सीधे एफआईआर का प्रावधान नहीं होने का फायदा मिलावटखारों को मिल रहा है। जयपुर में तीन सालों में एक भी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई है। सिर्फ सिंथेटिक दूध, नॉन एडिबल व पोस्टर कलर मिलाकर खाद्य पदार्थ तैयार करने के मामलों में ही सीधे एफआईआर दर्ज कर आरोपियों को पुलिस ने पकड़ा है।

प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्ट्रेशन एक्ट के तहत किसी भी खाद्य पदार्थ के नमून की जांच सरकारी लैब में होती है। इसकी रिपोर्ट 40 दिन में आती है। ऐसे में लंबी प्रक्रिया के बाद यदि सैंपल फेल हो जाता है तो कोर्ट में चालान पेश किया जाता है। मिलावट की पुष्टि की स्थिति में सीधे कार्रवाई या पेनल्टी का प्रावधान नहीं होने से दोषी बच जाते हैं। पूर्व फूड इंस्पेक्टरों की मानें फूड इंस्पेक्टर बस खराब खाद्य पदार्थ नष्ट करा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार पीएफए के तहत दर्ज किया गया मामला चाहे कितना भी संगीन हो, सीधे एफआईआर का प्रावधान नहीं है।

एक्ट की खामियां और न्यायिक प्रक्रिया में विलंब के कारण गुनहगार को समय पर सजा नहीं मिल पाती। कार्रवाई की प्रक्रिया इतनी लंबी है कि इसका लाभ आम आदमी को नहीं मिल पाता। एक्ट मंे आवश्यक संशोधन जरूरी है।

- देवेन्द्र मोहन माथुर, उपभोक्ता मामलों के वकील

http://www.bhaskar.com/2010/04/19/medical-and-health-department-887549.html


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