Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 150
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 151
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
न्यूज क्लिपिंग्स् | रोटी को तरसते लोग, गोदामों में सड़ते अनाज

रोटी को तरसते लोग, गोदामों में सड़ते अनाज

Share this article Share this article
published Published on May 31, 2010   modified Modified on May 31, 2010

नई दिल्ली [उमा श्रीराम]। करीब 70 वर्ष पहले चर्चित कवि सुब्रमण्यम भारती ने यह कहकर हलचल मचा दी थी कि यदि दुनिया में एक भी आदमी भूखा है तो इस विश्व को ही नष्ट कर दो। भारती जी ने तभी भारत की आजादी को देख लिया था और उन्होंने आधुनिक भारत, युवा वर्ग व महिलाओं को समर्पित करते हुए कई कविताएं रच डाली थी।

पर दुर्भाग्य से वे यह कल्पना भी नहीं कर सके कि भविष्य में लाखों भारतीय दाने-दाने के लिए तरसेंगे और एक जून कि रोटी के लिए संघर्ष करेंगे। देश की आजादी से आज तक गरीबी एक शाश्वत समस्या के रूप में बनी हुई है, जबकि हमारे संविधान में हर भारतीय को पौष्टिक आहार मिलने का प्रावधान है।

देश कि सर्वोच्च अदालत ने संविधान कि धारा 21 की याद दिलाते हुए अन्न के अधिकार का उल्लेख किया है- धारा 47 के तहत भारत सरकार को अपने देशवासियों के आहार की पौष्टिकता और गुणवत्ता सुधारते रहना जरूरी है।

ये भूख कब मिटेगी

135 करोड़ भारतीय नागरिकों में आज भी 37 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। इनमें से 22 फीसदी ग्रामीण और शेष 15 फीसदी शहरी आबादी शामिल है। हमारे देश में विभिन्न कारणों से भिन्न-भिन्न राज्यों में गरीबी का औसत भी अलग-अलग है। बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश में आधे से भी ज्यादा आबादी गरीब है, जबकि दिल्ली और पंजाब में बहुत कम गरीब हैं।

अभी तक इतनी बड़ी गरीब आबादी के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही राच्य सरकार ने कुछ किया है। हमारी पाच वर्षीय योजनाएं भी रोटी और मकान जैसी मूलभूत जरूरतों को हर भारतीय तक पहुंचने में नाकाम रही हैं। ये योजनाएं सिर्फ सरकारी फाइलों में ही दब कर रह गई हैं। ऐसी योजनाएं बनाने और लागू करने के बावजूद सरकार को अच्छी तरह पता है कि गरीबों तक ये योजनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली की यह सबसे बड़ी पराजय है। तो सरकार खाद्य सुरक्षा, कानून के तहत आखिर किस तरह भूखों को खाना खिला पाएगी?

खाद्य एवं कृषि संगठन के व‌र्ल्ड हंगर इंडेक्स के मुताबिक विश्व के 88 गरीब देशों की सूची में भारत 66वें स्थान पर है। अत: खाद्य सुरक्षा ढाचे में कानूनी सुधार की जरूरत आन पड़ी है।

संसद में राष्ट्रपति द्वारा की गई घोषणा के अनुसार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवारों को प्रति माह 25 किलो गेहू या चावल तीन रुपये प्रति किलो की दर से दिलाने का वादा किया गया है। इस कानून के लागू होने से सभी गरीबों को आहार की आपूर्ति का भरोसा मिल जाएगा। वर्तमान सरकार की यह सबसे पसंदीदा योजना है।

यह अलग बात है कि सरकार इस कानून को किस रफ्तार से बनाती है और उसे संसद में रखकर लागू करती है। सरकार को यह भलीभांति पता है कि सार्वजानिक वितरण प्रणाली से गरीबों की बहुत बड़ी आबादी छूट गई है। ग्रामीण क्षेत्र के आधे से अधिक दैनिक मजदूरों को अभी तक बीपीएल कार्ड नहीं मिला है।

बिहार और उत्तर प्रदेश के 71 और 73 फीसदी गरीब इससे वंचित हैं। क्या यह सरकार की सुस्ती और उदासीनता का परिणाम नहीं है?

गरीबी की पहचान का दोषपूर्ण तरीका, वितरण व्यवस्था में भ्रष्टाचार और सरकार की असफलता के चलते न तो गलतियां सुधर रही हैं और न ही भुखमरी दूर हो रही है। वर्ष 2005 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली का मूल्याकन करते हुए प्लानिंग कमीशन ने अंदाज लगाया है कि करीब 58 फीसदी भोजन गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों तक पहुंचा ही नहीं, लेकिन प्लानिंग कमीशन यह नहीं बता पाया की आखिर वह अनाज गया कहां?

बेलगाम नौकरशाही व राजनीति

हमारी नौकरशाही परंपराओं और व्यवस्थाओं का ज्यादा ख्याल रखती है। इस कारण नौकरशाह अक्सर वितरण व्यवस्था में कई अड़चनें पैदा कर देते हैं, क्योंकि वे लोकोपयोगी योजनाओं को लागू करने के दौरान जांच-पड़ताल की कई शर्ते लगा देते हैं। सरकारी बाबुओं को अब सरल वितरण व्यवस्था लागू करनी होगी। साथ ही भ्रष्टाचार में डूबी वर्तमान व्यवस्था को बदलना होगा। बाबुओं की लालफीताशाही भ्रष्टाचार की जड़ है। नेता जो हमेशा वोट बैंक के पीछे रहते हैं, अफसरशाही की मीठी भाषा में आ जाते हैं।

राजनीति और अफसरशाही के मेल ने न सिर्फ गरीबों को गरीब बनाए रखा है, बल्कि गरीबी को ओर बढ़ाया है। खाद्यान्नों की बढ़ती कीमतों पर सरकार रोक भी नहीं लगा पा रही है। महंगाई बढ़ती जा रही है। हमारे सत्ताधारी नेता अपने वेतन और भत्ते में तीन गुना बढ़ोतरी की माग कर रहे हैं।

दूसरी तरफ गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले गरीबों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अनियमित उत्पादन और असमानता समाज को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। क्या ऐसा एक भी नेता है, जिसने यह घोषित किया हो कि हम तब तक बढ़ा हुआ वेतन और भत्ता नहीं लेंगे, जब तक कि गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों की संख्या का औसत निम्नतम स्तर तक नहीं पहुंच जाता?

क्या देश के नौकरशाह वर्ष में एक महीने का वेतन अपने भूखे भारतीय के लिए छोड़ सकते हैं? विचारक मार्क ट्वेन ने कहा था, 'गरीबों को याद रखो। इसमें पैसा नहीं लगता।'

गरीबों को मिलेगा भोजन का हक

हमारी सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के द्वारा भूखे देशवासियों का पेट भरना चाहती है। वित्त मंत्री के नेतृत्व में इस कानून को तैयार किया जा रहा है। जनता और संचार माध्यमों के विचारों को भी सुना गया। परिणामत: केंद्र सरकार इसे लागू करने में अब भी संवेदनहीन बनी हुई है, जिसके चलते गरीबों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। भारतीय संविधान की धारा 47 के अनुसार, 'सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि आहारों की पौष्टिकता में वृद्धि करने तथा सभी का जीवन स्तर ऊपर उठाने व प्राथमिक स्वास्थ्य में सुधार लाने जैसे काम उसकी प्राथमिकताओं में होंगे। इसके तहत खाद्य सुरक्षा में पौष्टिक व कैलोरी युक्त खाद्यान्नों की आपूर्ति स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराई जाएगी।

केंद्र की तुलना में हमारे 10 राज्यों ने तो प्रस्तावित कानून से बेहतर खाद्य सुरक्षा योजनाओं को लागू भी कर दिया है। जब तक केंद्र का कानून पास होगा, तब तक कई और राज्य इसे लागू कर चुके होंगे।

गरीबों की उपेक्षा

खाद्य सुरक्षा कानून को तैयार करने के लिए नियुक्त मंत्रियों ने खाद्य सुरक्षा कानून के लिए प्राथमिक सूचनाओं के आधार पर सभी मुद्दों का अध्ययन किया। इसके लिए गेहूं और चावल को चुना और पौष्टिक व कैलोरी युक्त खाद्यान्नों की उपेक्षा कर दी। पाच सदस्यों वाले परिवार के लिए सिर्फ 25 किलो अन्न का प्रावधान किया, जबकि पाच सदस्यों वाले परिवार के लिए 60 किलो अन्न, पांच किलो दाल और चार लीटर खाद्य तेल की जरूरत पड़ती है। असल में दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों, विशेषकर छह माह तक के बच्चों को भी शामिल करते हुए उनका राशन भी तय करना चाहिए। यह उम्मीद की गई थी कि हर एक को पौष्टिक व कैलोरी युक्त खाद्यान्नों की पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति की जाएगी। इसी के साथ यह भी अपेक्षा की गई थी कि सभी को सम्मान के साथ भोजन की गारंटी मिलेगी। अत: कानून को भरोसा देना होगा कि सभी के लिए खाद्यान्नों की उपलब्धता तथा आपूर्ति नियमित तौर से उपलब्ध कराई जाएगी।


http://in.jagran.yahoo.com/news/business/general/1_12_6457858/


Related Articles

 

Write Comments

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Video Archives

Archives

share on Facebook
Twitter
RSS
Feedback
Read Later

Contact Form

Please enter security code
      Close