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न्यूज क्लिपिंग्स् | लागत भी कम, और फसल भी ज्यादा

लागत भी कम, और फसल भी ज्यादा

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published Published on Jan 3, 2011   modified Modified on Jan 3, 2011
जालंधर/अलावलपुर। जालंधर जिले के कुछ किसानों ने गेहूं की परंपरागत ढंग से बिजाई से किनारा कर लिया है। गेहूं की बिजाई के लिए पराली कोजलाने की बजाय इन्होंने इस पर ही बिजाई की है। जिले में इस बार 165 एकड़ पर गेहूं की बिजाई इस तरीके से की गई है। हालांकि अभी यह क्षेत्र कम है, लेकिन खेती के माहिर इसे अच्छी शुरुआत बता रहे हैं।

जिले में हर साल में दो लाख एकड़ रकबे पर गेहूं की बिजाई की जाती है। खेतीबाड़ी माहिरों का कहना है कि अगर बाकी किसान भी अपनी जमीन पर पराली को हटाए बिना या जलाए बिना ही गेहूं की बिजाई करें, तो गेहूं की खेती में यह एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा। इससे ढंग से पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से तो निजात मिलेगी, साथ ही किसानों को भी लाभ होगा। यह पराली गेहूं के लिए खाद का काम करेगी। गेहूं बिजाई के मामले में अभी तक किसान धान की कटाई के बाद बचने वाली पराली को या तो लेबर लगाकर साफ करवाते या जला देते हैं।

विभाग की तरफ से ऐसा न करने के बार-बार आग्रह करने के बावजूद किसान यही तरीका अपनाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इससे जहां हर साल बढ़े स्तर पर प्रदूषण होता है, वहीं जमीन की उपजाऊ शक्ति भी कम होती है। इससे मिट्टी के जरूरी तत्व नष्ट हो जाते हैं और इसमें बीजी जाने वाले गेहूं की उत्पादन कम हो जाता है। इस ट्रेंड को बदलने के लिए पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी (पीएयू) लुधियाना और खेतीबाड़ी विभाग ने मशीन (हैप्पी सीडर) से पराली समेत ही गेहूं की बिजाई का काम शुरू करवाया था। इस प्रक्रिया में पराली को खेत से हटाने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि मशीन पराली के साथ ही गेहूं की बिजाई कर देती है। पिछले साल इस ढंग से जिले में 75 एकड़ रकबे पर गेहूं बीजी गई थी, जबकि इस साल यह बढ़कर 165 एकड़ हो गई है।

खेतीबाड़ी विभाग जालंधर में सहायक इंजीनियर नवदीप सिंह का कहना है कि इस तरह से बिजाई का यह शुरुआती दौर है, लेकिन सभी किसान इसे लागू करते हैं तो उन्हें काफी लाभ होगा। उन्होंने बताया कि इस ढंग से बिजाई से पराली भी मिट्टी में मिक्स हो जाती है। इससे मिट्टी में ऑर्गेनिक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे उत्पादन बढ़ जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले साल जिन खेतों में इस ढंग से बिजाई की गई थी, उनमें गेहूं का उत्पादन प्रति एकड़ ५क् किलो तक बढ़ा है। जब किसान हर साल इस तरह से ही बिजाई करेंगे, तो हर साल पराली से मिलने से आर्गेनिक तत्वों की मात्रा बढ़ती जाएगी। इससे उत्पादन और बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस ढंग से राज्य में एक तरह से ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत हो रही है।

अमृतसर है आगे

इस मामले में अमृतसर के किसान दूसरे जिलों के किसानों से आगे हैं। इस साल अमृतसर के किसानों ने डेढ़ हजार एकड़ पर इस ढंग से गेहूं की बिजाई की है।

लागत हो जाती है 50 फीसदी कम

अलावलपुर के किसान बलविंदर सिंह का कहना है कि वह पिछले तीन वर्षो से इस ढंग से गेहूं की बिजाई कर रहे हैं। इस बार उन्होंने 20 एकड़ पर इसकी बिजाई की है। इससे उनकी लागत ५क् फीसदी तक कम हो जाती है। उत्पादन भी बढ़ जाता है। गांव दोलीके के किसान सरबजीत सिंह साबा का कहना है कि इससे समय की बचत होती है। पराली को जलाने, उसके बाद खेत की बहाई और उसमें गेहूं की बिजाई करने में उनके 15 से 20 दिन तक लग जाते हैं। जबकि इस ढंग में बिना पराली को हटाए ही गेहूं बीज देते हैं। इससे उनकी गेहूं 20 दिन अगेती हो जाती है।
दोलीके के किसान जसवाल सिंह जस्सा और गोल पिंड के किसान प्रद्मून सिंह भी मानते हैं कि बिजाई का यह बढ़िया ढंग है। इन्होंने लगातार तीसरे साल इस तरीके से बिजाई की है। इसके फायदों को देखते हुए अब इसे पक्के तौर पर अपना लिया है।

आस्ट्रेलिया ने की तकनीकी मदद

बिजाई के इस ढंग के लिए आस्ट्रेलियन काउंसिल आफ इंटरनेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च ने तकनीकी मदद की है। पराली समेत गेहूं की बिजाई करने वाली मशीन का माडल 2002 में काउंसिल ने ही पीएयू को उपलब्ध करवाया था। पीएयू ने इस पर रिसर्च करके इस माडल को संशोधित किया और इसे यहां की खेतीबाड़ी परिस्थितियों के अनुकूल तैयार किया। इस संशोधित माडल के आधार पर मशीन तैयार करवाकर साल 2007-08 से इसे किसानों को उपलब्ध करवाया जा रहा है। खेतीबाड़ी विभाग की रेकमंडेंशन पर यह मशीन को-आपरेटिव सोसायटीज को दी जाती है। इन सोसायटीज से किसान किराये पर इस मशीन को बिजाई के लिए लेते हैं। एक एकड़ बिजाई के लिए ६क्क् रुपए लिए जाते हैं। इस साल १२ सोसायटीज को 12 मशीनें दी गई हैं।

किसानों को जागरूक करने की कोशिश

खेतीबाड़ी इंजीनियर डीआर कटारिया और जिले के मुख्य खेतीबाड़ी अफसर डा. कुलबीर सिंह देओल का कहना है कि किसानों को इस बारे मंे जागरूक किया जा रहा है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान बिजाई के इस ढंग को अपना सकें। इसके लिए ट्रेनिंग कैंप लगाए जा रहे हैं, जिनमंे किसानों को इस मशीन के इस्तेमाल और इसके फायदों के बारे मंे बताया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक इससे किसानों की पराली को खेत से हटाने पर आने वाले लेबर खर्च की बचत होगी। ट्रैक्टर की घिसाई नहीं होगी। उत्पादन बढ़ेगा और किसान को लाभ होगा।

http://www.bhaskar.com/article/PUN-LUD-cost-less-and-more-crop-1717747.html


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